महात्मा गांधी के मर्डर की योजना मुंबई में रची गई थी ,ग्वालियर से कोई लेना-देना नहीं था

 

2 अक्टूबर गांधी जयंती पर विशेष

ग्वालियर शहर का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ा हुआ है यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण विषय है। इस कारण ही ग्वालियर केंद्रीय सत्ता की आंखों में खटकता रहा और विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया। अब बात शुरू करता हूं ग्वालियर रियासत के अंतिम शासक जॉर्ज जीवाजीराव से। एक बार चर्चा के दौरान मैंने प्रोफेसर प्रकाश दीक्षित से गांधी जी की चर्चा छेड़ दी तब उन्होंने कहा कि सुना जाता है कि महात्मा गांधी ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर आए थे लेकिन ग्वालियर के तत्कालीन राजा ने उनको बैरंग वापस कर दिया था। उन्होंने कहा गांधीजी मैं भी खादी पहनता हूं और उन्होंने अपनी रेशमी पोशाक के ऊपर पहनी हुई खादी वस्त्र दिखा दिया ।

गांधीजी जीते जी ग्वालियर में नहीं आ सके । 30 जनवरी 1948 को दुर्भाग्यपूर्ण घटना में गांधीजी की हत्या हो गई । उसके चार-पांच दिन बाद गांधी की अस्थियां चांदी के कलश में भरकर ग्वालियर लाई गई ।

अस्थि कलश को स्थानीय टाउन हॉल में दर्शन के लिए रखा गया था। इस दौरान बहुत बड़ा जुलूस अस्थि कलश के साथ बाजारों से निकाला गया था और उस समय के बड़े नेताओं ने उनको श्रद्धांजलि दी थी। यहां से अस्थि कलश उज्जैन के लिए रवाना हो गया था।

रियासत काल में ग्वालियर में हथियारों की खुली बिक्री होती थी। लोग सब्जी की तरह हथियार खरीदते थे क्योंकि लाइसेंस प्रणाली नहीं थी।

मात्र थाने में इसकी सूचना दे दी जाती थी इसका भी लोग पालन कम ही करते थे क्योंकि हथियार खरीदने वाले लोग सरदार ,जमींदार और श्रीमंत हुआ करते थे।

देश के बंटवारे के दौरान बहुत मारकाट मची लाखों लोग विस्थापित हुए उधर से हिंदू आए और कथित मुसलमान उधर गए अपने वतन को छोड़ कर। लगभग 90 हजार लोगों का कत्लेआम हुआ अमानुष अत्याचार हुए। देश में दंगे भड़क गए पाकिस्तान से जो हिंदू लोग हिंदुस्तान में आए। उनके रहने के लिए कोई इंतजाम नहीं था।

लिहाजा वे लोग दिल्ली की मस्जिदों में अपने बच्चों के साथ शरणार्थी के रूप में रहने लगे। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी ओढ़ने बिछाने को कुछ नहीं था। सारी मस्जिदें दिल्ली की भर गई थी। गांधी के एक वक्तव्य ने मुसीबत के मारों की मुसीबत और बढ़ा दी। गांधी के फरमान पर उन गरीबों को मस्जिदों से बाहर निकाल दिया गया।

शरणार्थी लोग ठंड में पेड़ों की छाया में पड़े रहे। इसमें एक था युवा मदनलाल पाहवा।

मदनलाल ने 20 जनवरी 1948 को गांधी जी की सभा में बिरला हाउस में बम फेंका था । काफी धुआं उठा लेकिन कोई घायल नहीं हुआ। उस दौरान मदनलाल को पकड़ लिया गया उसके साथ चार-पांच साथी और थे।

मदनलाल ने कहा कि वह मानेंगे नहीं और महात्मा गांधी पर फिर से हमला करेंगे। पुलिस ने उनके इस बयान को गंभीरता से नहीं लिया वरना गांधी गोडसे की गोली से नहीं मारे जाते और ग्वालियर की बदनामी नहीं होती।

यहां गांधी हत्या के बारे में बहुत सारी भ्रांतियां फैली हुई है। गांधी जी को मारने की प्लानिंग मुंबई में रची गई थी ग्वालियर से उसका कोई लेना-देना नहीं था।

ग्वालियर हिंदू सभा के नेता डॉक्टर एस डी परचुरे का महाराष्ट्र कनेक्शन था। वह हिंदू सम्मेलन में वहां जाया करते थे नाथूराम गोडसे से उनकी मुलाकात वह होती रहती थी।

गांधी पर अनेक स्थानों पर कई हमले किए गए लाठियों से भी उनको मारा गया लेकिन वह बचते रहे। नाथूराम गोडसे कुछ समय तक फौज में भी रहे थे बाद में उन्होंने अखबार निकाला।

आखरी बार गोडसे ने गांधी हत्या की योजना को स्वयं ही अंजाम देने का निश्चय किया। क्योंकि वह भारत और पाकिस्तान को विभक्त करने की खिलाफ थे।

ग्वालियर उस समय हिंदू सभा का गढ़ हुआ करता था अंतःडॉक्टर परचुरे के संपर्क के कारण गोडसे अपने साथी नारायण आप्टे के साथ पंजाब मेल से ग्वालियर आए ।

प्लेटफार्म नंबर एक के बाहर गरीबा तांगे वाले के तांगे में बैठकर वह लश्कर की तरफ चल दिए। कुछ समय ग्वालियर में सवारी वाहन एकमात्र तांगे ही हुआ करते थे वहीं बैलगाड़ी भी चलती थी।

शिंदे की छावनी स्थित गोपाल धर्मशाला के पास डॉक्टर परचुरे का निवास हुआ करता था। दोनों लोग डॉक्टर साहब के निवास पर गये। गोडसे चाय नहीं पीता था वह कॉफी पीता था। रात को उन लोगों में कोई चर्चा नहीं हुई।

सुबह होने के बाद डॉ परचुरे ने अपने साथी और हिंदू नेता गंगाधर राव दंडवते को बुलवाया और गोडसे से परिचय कराया। गोडसे ने एक अच्छी क्वालिटी की पिस्तौल की आवश्यकता बताई।

इटली मैड पॉइंट 9 रिवाल्वर को जगदीश गोयल ने मात्र 500 में सौदा कराया और 300 पहले दिए । इसके बाद 200 बाद में देने का वचन दिया। आज से सात दशक पूर्व ग्वालियर के चारों तरफ घनी झाड़ियां और जंगल ही हुआ करता था। परचुरे के निवास के पिछवाड़े जंगल जैसा ही एक मैदान था पास ही में स्वर्ण रेखा नदी साफ पानी के साथ बहती थी।

वहां एक पीपल के पेड़ के ऊपर नाथूराम गोडसे ने पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग ली और गांधी जी के चित्र पर उसने कई बार गोलियां चलाई और ट्रेनिंग ली। नाथूराम और आप्टे ने घोड़ा गाड़ी से ग्वालियर का भ्रमण किया। 4 दिन बाद नाथूराम और उसके साथी पंजाब मेल से ग्वालियर से रवाना हो गए।

सुरक्षा की दृष्टि से भूरा बाल्मिक जो कि दबंग हुआ करता था वह स्टेशन पर उनके साथ गया। नाथूराम की गांधी से कोई जाती दुश्मनी नहीं थी। गांधी के अनावश्यक मुसलमानों के पक्षपात के कारण नाथूराम ने गांधी को तो समाप्त कर ही दिया लेकिन इसके बाद उसका परिवार भी बर्बाद हो गया। उसके एक भाई को आजीवन कारावास हुआ। परिवार और बच्चों पर बहुत अत्याचार हुए।

इधर षड्यंत्र में शामिल डॉक्टर परचुरे को ग्वालियर किले में बंद रखा गया था। ग्वालियर के और भी लोग ग्वालियर गांधी हत्याकांड में आरोपी बनाए गए थे । जिनमें सूर्य देव शर्मा, गंगाधर राव दंडवते शामिल थे। सूर्य देव शर्मा बाद में एमएलए भी रहे। जगदीश गोयल को बहुत यातना दी गई उसको झांसी से गिरफ्तार किया था। बरी किए जाने के बाद भी उसे थाने में हाजिरी देनी पड़ती थी।

कई लोग बताते हैं की महात्मा गांधी को मारने वाली पिस्तौल महल से गई थी और उस पर ग्वालियर स्टेट की सील लगी हुई थी। लेकिन यह कहीं भी प्रमाणित नहीं है। भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल जो उप प्रधानमंत्री भी हुआ करते थे वह तत्कालीन नरेश को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में गिरफ्तार कर सकते थे, लेकिन उनका इस हत्याकांड में कोई हाथ नहीं था।

ग्वालियर से सिर्फ पिस्तौल खरीदी गई थी और कुछ ही राउंड की ट्रेनिंग नाथूराम गोडसे ने ली थी लेकिन गांधी हत्याकांड का ग्वालियर से कोई संबंध नहीं है।

माता प्रसाद शुक्ला
(लेखक ग्वालियर के वरिष्ठ साहित्यकार हैं और इतिहास पर कुछ किताब लिख चुके हैं)

संदर्भ = अप्रकाशित पुस्तक गांधी मर्डर और ग्वालियर
लेखक माता प्रसाद शुक्ल ग्वालियर

 

11 Replies to “महात्मा गांधी के मर्डर की योजना मुंबई में रची गई थी ,ग्वालियर से कोई लेना-देना नहीं था”

  1. Hi, just required you to know I he added your site to my Google bookmarks due to your layout. But seriously, I believe your internet site has 1 in the freshest theme I??ve came across.Seo Paketi Skype: By_uMuT@KRaLBenim.Com -_- live:by_umut

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *