इंफोर्समेंट ऑफिसर की व्यक्तिगत जानकारी, वेतन-खरीदी संपत्ति की RTI की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज; कहा-निजी जीवन में हस्तक्षेप करना कतई उचित नहीं

 

ग्वालियर।  सुप्रीम कोर्ट ने आवेदक द्वारा दूसरे पक्ष के एक अधिकारी की व्यक्तिगत जानकारी जैसे वेतन, संपत्ति और अन्य के सम्बंध में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी माँगी थी।सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सूचना के अधिकार के तहत किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सूचना के बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती है, इसलिए याचिका को ख़ारिज किया जाता है।प्रधुम्न सिंह, मुख्य क़ानूनी सलाहकार संघर्ष समूह व ज्वाला शक्ति संगठन अधिवक्ता उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय ने जानकारी देते हुए बताया कि गिरीश रामचंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना कमिश्नर व अन्य सुप्रीम कोर्ट जजमेंट स्पेशल लीव पिटिशन नंबर 27734/2012 इस न्यायदृष्टांत के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस विषय पर अपनी राय दी गई थी कि क्या सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत यदि किसी व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत जानकारी जैसे उसके सर्विस रिकॉर्ड, उसकी तनख्वाह, उसके द्वारा खरीदी गई संपत्ति या लिया गया लोन या चल या अचल संपत्ति की यदि जानकारी उसके नियुक्तिकर्ता से मांगी जाती है तो क्या उपरोक्त जानकारी सूचना के अधिकार के तहत व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में आएगी या नही जैसा अधिनियम की धारा 8 की उप धारा 1 में उल्लेखित है ।
याचिका के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि आवेदक के द्वारा एक आवेदन 27 अगस्त 2008 को रीजनल प्रोविडेंट फंड कमिश्नर श्रम मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत आता है। एक व्यक्ति विशेष से संबंधित जानकारी, जो एक इंफोर्समेंट ऑफिसर के रूप में सब रीजनल ऑफिस अकोला में पदस्थ था के संदर्भ में 15 बिंदुवार जानकारी प्रदान करने की मांग की गई, जिस पर रीजनल प्रोविडेंट फंड कमिश्नर नागपुर के द्वारा अपने जवाब के माध्यम से अधिकतर जानकारी व्यक्ति विशेष की निजी जानकारी होने से का हवाला देते हुए आवेदनकर्ता को जानकारी देने से इंकार कर दिया गया ।
उक्त आवेदनकर्ता के द्वारा उपरोक्त संबंध में एक अपील अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गई जिसको भी अपीलीय अधिकारी के द्वारा निरस्त कर दिया गया व उपरांत उपरोक्त जानकारी हेतु आवेदक के द्वारा केंद्रीय सूचना विभाग के कमिश्नर के समक्ष अपनी अपील प्रस्तुत की गई जिसको भी निरस्त कर दिया गया ।
निरस्ती के चलते आवेदक के द्वारा एक रिट याचिका  4221/2009 में दाखिल की गई थी जिसको सिंगल बेंच के द्वारा भी निरस्त कर दिया गया।इसके विरुद्ध आवेदक के द्वारा एक स्पेशल लीव पिटिशन उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई ।
सुनवाई के दौरान आवेदक के अधिवक्ता के द्वारा यह व्यक्त किया गया की मांगी गई जानकारी तृतीय व्यक्ति के प्रमोशन, अपॉइंटमेंट आदि की जानकारी से संबंधित है जिसको निजी या व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में नहीं लिया जा सकता है एवं उक्त जानकारी आवेदक को प्रदाय की जानी चाहिए थी । आवेदक के अधिवक्ता के द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 6 उप धारा 2 की और न्यायालय का ध्यानाकर्षण किया गया एवं बताया गया कि आवेदक को इसके तहत भी यह स्पष्टीकरण देने की भी आवश्यकता नहीं है कि उसको वह उपरोक्त जानकारी तृतीय पक्ष की किस संदर्भ में आवश्यक है । आवेदक के अधिवक्ता के द्वारा न्यायालय का ध्यान न्यायदृष्टांत सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन व अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय एवं अन्य 2011 (8) एसीसी 497 का हवाला देते हुए बताया गया की न्यायदृष्टांत में माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा यह मत दिया गया था की धारा 8 के अधीन हर किसी को कॉपियों के अवलोकन करने की अनुमति दी जा सकती है ।
उच्चतम न्यायालय के द्वारा इस विषय पर अपना मत रखते हुए कहा गया है कि हमें यह देखना है कि क्या धारा 8 उपधारा 1 के अंतर्गत क्या उपरोक्त जानकारी व्यक्तिगत जानकारी के रूप में मानी जा सकती है जिसके तहत उसको दिए जाने से इनकार करने पर अधिनियम का प्रभाव प्रभावित नहीं होगा । न्यायालय के द्वारा पाया गया कि आवेदक के द्वारा सभी मेमो, शोकॉज नोटिस, सजा जो तृतीय पक्ष को उसके नियुक्तिकर्ता के द्वारा दी गई हो एवं साथ ही उसकी चल व अचल संपत्ति के संबंधित समस्त जानकारी जिसमें उसके द्वारा कहां पर निवेश किया गया है, किससे उधार लिया गया है एवं उसके बैंक व वित्तीय संस्थानों से संबंधित जानकारी मांगी गई थी । साथ ही उसके द्वारा तोहफे जो उसको अपने परिवार के सदस्यों या मित्रों या रिश्तेदारों के माध्यम से उसके बेटे की शादी में मिले थे की जानकारी मांगी गई एवं उसके द्वारा जो इनकम टैक्स रिटर्न भरा गया था उसकी भी जानकारी मांगी गई ।

अवलोकन के उपरांत उच्चतम न्यायालय के द्वारा पाया गया की समस्त जानकारी एक नियुक्तिकर्ता व नियुक्त कर्मचारी के मध्य की जानकारी है जिस के संदर्भ में स्पष्टरूप से सर्विस रुल्स के तहत बनाए गए नियमों के अनुरूप उक्त जानकारी सिर्फ नियुक्तिकर्ता व नियुक्त कर्मचारी के मध्य ही रखी जा सकती है जो उसको एक व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में लाती है । यदि उपरोक्त जानकारी किसी को दे दी जाती है तो जनहित से संबंधित ना हो तो यह कृत्य उक्त कर्मचारी के निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप की परिस्थिति को निर्मित करेगा जिसके चलते उपरोक्त जानकारी प्रदाय किए जाना उचित नहीं होगा जैसा अधीनस्थ विभागों के द्वारा भी किया गया ।

यदि केंद्रीय जन सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है की उपरोक्त जानकारी जनहित से संबंधित है जिसका खुलासा किया जाना आवश्यक है तो ऐसी अवस्था में वह उपरोक्त जानकारी प्रदाय किए जाने के आदेश पारित कर सकता है परंतु आवेदक इसको अपने संवैधानिक अधिकार के रूप में दर्शित करते हुए जानकारी नहीं माँग सकता है ।

किसी भी व्यक्ति के द्वारा अपने इनकम टैक्स रिटर्न में दी गई जानकारी उसकी व्यक्तिगत और निजी जानकारी होती है जो अधिनियम की धारा 8 उप धारा 1 के तहत प्रतिबंधित है आवेदक के द्वारा वर्तमान आवेदन में यह कहीं पर भी दर्शित किया गया कि उसको उपरोक्त जानकारी किस प्रकार से जनहित हेतु आवश्यक है जिसके चलते यह न्यायालय भी आवेदक की याचिका को निरस्त करती है ।

 

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