पत्नी का पति के चरित्र पर शक करना और सहकर्मियों के सामने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना क्रूरता के समान, हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक़ का दिया आदेश

मद्रास हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर एक पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी करते हुए हाल ही में कहा कि पत्नी का अपने पति के चरित्र पर संदेह करना और उसके सहयोगियों की उपस्थिति में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान है। जस्टिस वीएम वेलुमणि और जस्टिस एस सौंथर की पीठ ने कहा किः ”प्रतिवादी/पत्नी उस कॉलेज में गई जिसमें अपीलकर्ता/पति काम करता है और उसने अन्य स्टाफ सदस्यों और छात्रों की उपस्थिति में अपीलकर्ता का नाम एक अन्य महिला शिक्षिका के साथ जोड़कर वहां काफी तमाशा किया। निश्चित रूप से प्रतिवादी का यह कृत्य हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के अर्थ के भीतर मानसिक क्रूरता के समान होगा, जैसा कि ए.जयचंद्र बनाम एनल कौर सुप्रा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समझाया गया है। हम यह भी जोड़ रहे हैं कि प्रतिवादी के इस कृत्य ने निश्चित रूप से अपीलकर्ता के सहयोगियों और छात्रों के मन में अपीलकर्ता की छवि को गंभीर और अपूरणीय क्षति पहुंचाई होगी।”

.. अदालत ने यह भी नोट किया कि प्रतिवादी पत्नी ने विशेष रूप से किसी का नाम लिए बिना ही अपीलकर्ता पति का नाम उसकी महिला सहयोगियों के साथ जोड़ते हुए एक पुलिस शिकायत भी दी थी। इसलिए अगर ऐसी पुलिस शिकायत किसी सबूत से प्रमाणित नहीं होती है तो यह भी क्रूरता की श्रेणी में आती है। प्रतिवादी ने अवैध अंतरंगता का अनुमान केवल इसलिए लगाया क्योंकि अपीलकर्ता अपनी महिला सहयोगियों के साथ फोन पर बात करता था। इस प्रकार, प्रतिवादी के मन में पैदा हुआ संदेह बिना किसी उचित आधार के एक धारणा के अलावा और कुछ नहीं है। इसे मानसिक क्रूरता के रूप में देखते हुए, अदालत ने के. श्रीनिवास राव बनाम डी.ए. दीपा के मामले में दिए गए फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था किः दलीलों में पति या उसके रिश्तेदारों के खिलाफ निराधार अशोभनीय मानहानि के आरोप लगाना, शिकायतें दर्ज करना या ऐसे नोटिस या समाचार जारी करना जो जीवनसाथी के व्यवसाय की संभावना या नौकरी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और जीवनसाथी के खिलाफ बार-बार झूठी शिकायतें और अदालत में केस दायर करना, मामले के तथ्यों के आधार पर, दूसरे पति या पत्नी के साथ मानसिक क्रूरता का कारण बनते हैं।” अदालत ने नरेंद्र बनाम के.मीणा के मामले में दिए गए फैसले पर भी विचार किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिल्कुल झूठे आरोप लगाना और वह भी,एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के संबंध में काफी गंभीर है और यह निश्चित रूप से मानसिक क्रूरता का कारण हो सकते हैं।

अदालत ने तर्क दिया कि उसने केवल पुनर्मिलन की मांग के अच्छे इरादे से शिकायत की थी और इसलिए इसे मानसिक क्रूरता का कारण नहीं कहा जा सकता है। यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता ने विशेष रूप से उस तारीख का उल्लेख नहीं किया था जिस दिन प्रतिवादी ने उसके कॉलेज का दौरा किया था और तमाश किया था। इसलिए उस तथ्य के संबंध में सबूत स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह दोहराया गया कि प्रतिवादी का इरादा केवल अपने पति के साथ रहने का था और इसलिए तलाक देने का कोई मामला नहीं बनता है। हालांकि अदालत इस विचार को मानने को तैयार नहीं थी।

अदालत ने पाया कि अलगाव के समय प्रतिवादी ने अपना मंगलसूत्र (थाली चेन) उतार दिया था। अदालत ने कहा कि शादी समारोह में थाली चेन बांधना एक आवश्यक अनुष्ठान होता है और इसे उतारना एक अनौपचारिक कार्य था। हाईकोर्ट ने कहा किः थाली चेन को हटाने को अक्सर एक अनौपचारिक या तुच्छ कार्य के रूप में माना जाता है। हम एक पल के लिए भी यह नहीं कह रहे हैं कि थाली चेन को उतारना वैवाहिक बंधन को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन प्रतिवादी का उक्त कृत्य पक्षों के इरादों के बारे में अनुमान लगाने में सबूत का एक टुकड़ा है। रिकॉर्ड पर उपलब्ध विभिन्न अन्य साक्ष्यों के साथ अलगाव के समय थाली चेन को उतारने का प्रतिवादी का कार्य, हमें एक निश्चित निष्कर्ष पर आने के लिए मजबूर करता है कि पार्टियों का वैवाहिक बंधन में सुलह करने और उसे जारी रखने का कोई इरादा नहीं है। अदालत ने कहा कि वल्लभी बनाम आर. राजसबाही मामले में एक समन्वय पीठ ने इसी तरह के उदाहरण पर कहा था कि याचिकाकर्ता / पत्नी द्वारा ”थाली चेन” को उतारने को एक ऐसा कार्य कहा जा सकता है जो उच्चतम स्तर की मानसिक क्रूरता को दर्शाता है क्योंकि यह प्रतिवादी को पीड़ा और उसकी भावनाओं को आहत पहुंचा सकता है।” इस प्रकार, अदालत ने फैमिली कोर्ट के जज के आदेश को रद्द कर दिया और अपीलकर्ता पति के पक्ष में तलाक का आदेश दे दिया।