क्या वाकई में ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक जमीन दरक रही है?

राजेश शुक्ला, ग्वालियर। ‘महल और मिल’ मध्य प्रदेश की राजनीति का मुख्य केंद्र माने जाते थे। चुनाव  किसके पक्ष में जाएगा यह ‘महल और मिल’ ही तय करते थे। मिल तो समाप्त हो गई और अब महल अपनी राजनीतिक विरासत को बचा पाएगा, यह आने वाले विधानसभा चुनाव में बखूबी तय हो जाएगा। हम बात कर रहे हैं ग्वालियर के कैलाशवासी महाराजा माधवराव सिंधिया के सुपुत्र वर्तमान में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक जमीन की। मार्च 2020 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार की खासमखास ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था, इतना ही नहीं सिंधिया के समर्थन में 22 विधायकों ने मिलकर कमलनाथ सरकार को गिरा दिया था। सरकार गिराने के बाद सिंधिया समेत सभी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कराया।

कमलनाथ की सरकार गिराने से लेकर अब तक मध्य प्रदेश की सियासत में काफी बदलाव आया है। सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए बीजेपी पार्टी को जमकर कोसते थे।अब उन्हीं के नेता सिंधिया के साथ बैठे दिखाई देते हैं। और-तो-और ग्वालियर चंबल संभाग के भाजपा के नेता महल के खिलाफ हमेशा आग उगलते थे उनके घर भी सिंधिया जा चुके हैं। 2018 में ग्वालियर चंबल में 34 में से 26 विधानसभा सीट सिंधिया के अथक प्रयास और मेहनत के चलते ही कांग्रेस को मिली थी लेकिन अब सिंधिया की जमीन भाजपा की हो गई है कई राजनीतिक समीकरण बनते बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं। क्या सिंधिया ग्वालियर चंबल संभाग में 34 में से 26 सीट का इतिहास फिर से दोहरा सकेंगे इस पर संशय है?

ग्वालियर के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि कमलनाथ की सरकार गिराने के बाद सिंधिया अगर अपनी स्वयं की पार्टी बना लेते और इस चुनाव में पूरी दामखम के साथ उतरते तो उनकी बात कुछ अलग होती। यद्यपि आज की वर्तमान स्थिति में वह ना पार्टी बना सकते हैं और ना ही कांग्रेस में जा सकते हैं ।

खास बात यह भी है कि कांग्रेस में रहते हुए ग्वालियर चंबल में टिकट वितरण का काम महल से ही तय होता था। 2019 में अपने ही सेवादार से गुना लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद सिंधिया का कांग्रेस पार्टी से मोहभंग होने लगा था।गुना से चुनाव हारने के बाद सिंधिया बिना चुनाव जीते वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं , लेकिन जो इज्जत पहले सिंधिया को मिलती थी वह उन्हें अब ग्वालियर चंबल संभाग की जनता देने से गुरेज कर रही है।इधर महल से जुड़े समर्थक भी अब समझ गए हैं कि सिंधिया अपनी राजनीतिक विरासत को खो बैठे हैं।

Byline24.com के एडिटर इन चीफ़ राजेश शुक्ला से चर्चा के दौरान महल से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने दबी जबान से बताया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कितनी भी ताकत लगा लें, उनकी राजनीतिक जमीन धरकती ही जा रही है। इसका कारण भी वह बताते हैं ।उनका कहना है कि अहंकार अच्छे-अच्छे राजाओं को धूल में मिला देता है। सिंधिया ने ईमानदार लोगों को छोड़ दिया और उनकी जी हजूरी करने वाले उन नेताओं को अपने साथ रखा जो राजनीति में होकर भी राजनीति नहीं करते हैं। यह वह कथित नेता है जो संपत्ति कारोबारी ,खदान कारोबारी,बड़े सड़क ठेकेदार, होटल संचालक पेट्रोल पंप संचालक समेत अन्य लोग हैं।

कैलाश वासी माधवराव सिंधिया के कट्टर समर्थक एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम न देने की शर्त पर बताया कि जब सिंधिया ने सरकार गिराई थी तो मतदाताओं का अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं बाकी छोड़ी ।ना उन्होंने कभी बीमारों समर्थकों की मदद की। वह मानवता भूल चुके हैं और ऐसे नेताओं को ग्वालियर चंबल की जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी।

कांग्रेस के नेता और पूर्व संगठन प्रभारी लतीफ खान मल्लू ने बताया कि सिंधिया को लोग भगवान की तरह पूजते थे। उन्हें श्रीमंत और महाराज कहते नहीं थकते थे ।भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद वह भाई साहब हो गए हैं। भाजपा ने उनका मान-सम्मान समाप्त कर दिया है ।इतना ही नहीं जो चंद लोग सिंधिया के साथ गए थे उन्हें तो मंत्री पद मिल गया और वह जमकर पैसा कमा रहे हैं , लेकिन जो कार्यकर्ता थे वह अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं और इसका ख़ामियाज़ा सिंधिया और उनके सभी समर्थकों को आने वाले विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा।

आज स्थिति यह है कि सिंधिया समर्थक कई नेता उनसे किनारा कर चुके हैं। कांग्रेस में शामिल हो चुके कई नेताओं ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि जिस सम्मान के लिए हम सिंधिया जी के साथ गए थे वह हमें बीजेपी पार्टी ने नहीं दिया ,उलट हमारा शोषण किया।

ज्योतिराज सिंधिया की इतनी खराब स्थिति उनके भाजपा में जाने के बाद ही ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल रही है। कहां लोगों में उनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं होती थी ।आज सोशल मीडिया पर सिंधिया को गरियाने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं। युवा कांग्रेस के कई नेताओं ने सार्वजनिक स्थान पर गद्दार कहने और लिखने की पुरजोर हिम्मत दिखाई।

नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में सिंधिया की क्या स्थिति रहेगी यह तो समय ही बताएगा।कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सिंधिया के पार्टी छोड़ने और सरकार गिराने की बात को भूल नहीं है राजनीतिक रेलियों के सार्वजनिक मंच पर वह सिंधिया के खिलाफ भाषण देने से चूकते भी नहीं हैं।

महल और मिल दोनों ही ग्वालियर चंबल संभाग की धुरी मानी जाती थी। मिल तो अब रही नहीं लेकिन महल की राजनीतिक विरासत अपनी जड़े मजबूत करेगी या और खोखली हो जाएगी या समय ही बता सकेगा।

पुनश्च#
ग्वालियर में सूती कपड़े की तीन महत्वपूर्ण मील थी इनमें जीवाजी राव कॉटन मिल्स, दी मोतीलाल अग्रवाल मिल और आदर्श क्लॉथ मिल्स । इसके साथ ही ग्वालियर रेयान सिल्क मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ विश्व युद्ध के दौरान वस्त्र निर्माण मशीनों की पूर्ति की कमी को पूरा करने के लिए टैक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन बिरला बंधुओं द्वारा स्थापित किया गया था।कईं दशक पहले इन उ उद्योगों के साथ ग्वालियर के जितने भी (स्टेट समय) उद्योग है वह समाप्त हो चुके हैं।