महिला आरक्षण का दिखेगा मप्र में दिखेगा प्रभाव, विधानसभा चुनाव में भाजपा नारी शक्ति वंदन अधिनियम को भुनाएगी

भोपाल । गणेश चतुर्थी से संसद की कार्यवाही नए भवन से शुरू हो गई है। पहले दिन सरकार ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल सदन में पेश कर दिया है। सरकार ने इस बिल का नाम नारी शक्ति अधिनियम दिया है। महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। यह बिल भले ही अगले चुनाव में ही लागू होगा, लेकिन भाजपा इस बार के विधानसभा चुनाव में भी इसका भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करेगी।
महिला आरक्षण बिल के तहत विधानसभा की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसके अलावा लोकसभा में भी महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। यानी 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। साथ ही दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा।
मप्र में ऐसी हो सकती है स्थिति
राजनीति में आधी आबादी की 33 प्रतिशत भागीदारी यदि सुनिश्चित हो गई तो मप्र के अगले विधानसभा में 76 महिला विधायकों की जीत तय है। साल 2018 के चुनाव में मप्र में महिला विधायकों की संख्या सिर्फ 21 थी। इस चुनाव में भाजपा ने सिर्फ 10 प्रतिशत, तो कांग्रेस 12 प्रतिशत महिलाओं को ही टिकट दिया था, जबकि सूबे में महिला वोटरों की संख्या तकरीबन 48 प्रतिशत हैं। अगर संसद के विशेष सत्र में लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल पास होता है तो इसका असर मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पड़ेगा। मप्र में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू होने के बाद जो फार्मूला तय होगा, उस हिसाब से 230 में से 76 महिला विधायक विधानसभा तक पहुंचेंगी। अभी प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों की तरफ से सिर्फ 21 महिला विधायक हैं। इनमें भाजपा की 11, कांग्रेस की 9 और एक बसपा से हैं। अब आधी आबादी के वोट को हासिल करने के लिए राजनीतिक लड़ाई और तेज होगी। राजनीतिक दल लाडली बहन और नारी सम्मान जैसी अपनी योजनाओं पर तीखा प्रचार अभियान शुरू करेंगे।
ये भी जानना जरूरी
चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भाजपा ने साल 2003 में 18 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 15 को जीत मिली थी। 2008 के चुनाव में पार्टी ने 23 महिलाओं को टिकट दिया, जिनमें से 15 जीत कर विधानसभा पहुंचीं। साल 2013 के चुनाव में भाजपा ने फिर से 23 महिलाओं को टिकट दिया, जिनमें से 17 ने जीत हासिल की। साल 2018 के चुनाव में भाजपा ने 24 महिलाओं को टिकट दिया और उनमें से 11 ने जीत हासिल की, जबकि 13 पराजित हो गईं। कांग्रेस ने साल 2003 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 34 महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन इनमें से सिर्फ तीन ही जीत हासिल कर सकीं। साल 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने 28 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 6 को विजय हासिल हुई। साल 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने महिला उम्मीदवारों की संख्या घटाते हुए 23 को टिकट दिया और फिर से 6 महिला उम्मीदवार जीत कर विधानसभा पहुंचीं। 2018 के चुनाव में एक बार फिर महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाते हुए कांग्रेस ने 28 महिलाओं को टिकट दिया जिनमें से 9 ने जीत हासिल की।
मप्र में 77 सीटें हो सकती हैं आरक्षित
यदि देश में महिला आरक्षण आगामी दिनों में लागू हो जाता है तो मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से 77 सीटें आरक्षित होंगी। प्रदेश में एसटी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। इनमें 15 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इसी तरह एससी वर्ग के लिए सुरक्षित 35 सीटों में से 11 सीटें महिलाओं को मिलेंगी। शेष 51 सीटें अनारक्षित वर्ग की महिलाओं के लिए होंगी। लोकसभा की 29 सीटों में दस सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। प्रदेश में भाजपा हो या कांग्रेस, महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात तो दोनों दल करते हैं पर विधानसभा चुनाव में इसके अनुरूप उनकी भागीदारी दिखाई नहीं देती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 24 सीटों पर महिलाओं को प्रत्याशी बनाया। इसमें से 11 ने जीत प्राप्त की। वहीं, कांग्रेस ने 28 सीटों पर महिलाओं को मौका दिया, इनमें से नौ जीत हासिल कर सकीं। पथरिया सीट बसपा की रामबाई ने जीती। वर्तमान विधानसभा में 21 महिला विधायक हैं। इसी तरह 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने 23-23 महिला प्रत्याशी को उतारा। इनमें से भाजपा की 12 और कांग्रेस की नौ प्रत्याशी चुनाव जीतीं। 2008 में कांग्रेस ने 28 और भाजपा ने 23 टिकट महिलाओं को दिए। भाजपा की 15 और कांग्रेस की छह उम्मीदवार जीती थीं। इसी तरह प्रत्याशियों की स्थिति देखें तो वर्ष 2008 में 221, 2013 में 200 और 2018 में 255 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। महिला आरक्षण की स्थिति को देखते हुए अब भाजपा और कांग्रेस को महिला नेतृत्व भी तैयार करना होगा।