कांग्रेस के वरिष्ठ नेतृत्व को विद्रोह की संभावना; रोकी सूची, आचार संहिता लागू होने के वक्त जारी करेगी प्रत्याशियों की सूची

भोपाल/ ग्वालियर। मप्र में इस बार कांग्रेस चुनाव के कारण फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर बार प्रत्याशियों की सबसे पहले घोषणा करने वाली कांग्रेस अभी शांत बैठी है। हालांकि पार्टी ने तकरीबन 100 सीटों की पहली सूची पर नाम तय कर दिया है। लेकिन उसे बगावत का डर सता रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि 230 विधानसभा सीटों के लिए 5 हजार से अधिक लोगों ने दावेदारी पेश की है। ऐसे में पार्टी हड़बड़ी में कोई कदम उठाना नहीं चाहती है। उधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने साफ कर दिया है कि आचार संहिता लागू होने के वक्त ही कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची जारी करेगी।
गौरतलब है कि भाजपा ने करीब एक माह पहले ही 39 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है। वहीं दूसरी सूची जारी करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस अब तक एक भी विधानसभा सीट पर प्रत्याशी घोषित नहीं कर सकी है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यह तो स्वीकार कर रहे हैं कि आधे से अधिक सीटों पर प्रत्याशी तय हो चुके हैं, लेकिन इनके नामों की सूची जारी करने में कांग्रेस कतरा रही है। कांग्रेस को आशंका है कि पहली सूची घोषित होने के बाद टिकट के दूसरे दावेदार बगावत कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस प्रत्याशी को बड़ा नुकसान हो सकता है। इस बार विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी के 20 से 50 तक दावेदार मौजूद हैं। कई दावेदार अपनी दम पर पार्टी प्रत्याशी को चुनाव हराने की स्थिति में हैं। इन सीटों पर टिकट घोषित होते ही यह न केवल निर्दलीय चुनाव मैदान में दिखेंगे, बल्कि सपा, बसपा और आप जैसी पार्टियों से टिकट लेकर मैदान संभाल सकते हैं। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व का विचार है कि यहां आचार संहिता लागू होने के बाद आखिरी समय में टिकट घोषित किए जाएं। हालांकि अघोषित प्रत्याशी को चुनाव मैदान में पहले ही उतार दिया जाएगा। जानकारों का कहना है की भाजपा की पहली सूची जारी होने के बाद जिस तरह प्रत्याशियों का विरोध हो रहा है, उसे देखते हुए कांग्रेस सहमी हुई है। कांग्रेस को भी डर है की सूची जारी होते ही बगावत और विरोध शुरू हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि मप्र विधानसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में विगत दो दिनों में हुई कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में एक-एक सीट पर प्रत्याशी चयन को लेकर मंथन हुआ। स्क्रीनिंग कमेटी में उन एक-एक नामों पर चर्चा हुई, जो नाम प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से भेजे गए हैं। हालांकि कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेताओं ने कमेटी को अपने समर्थकों की सूची अलग से सौंपी है। वे चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में टिकट उनकी मर्जी के हिसाब से एवं उनके समर्थकों को दिए जाएं। प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के 5 हजार से अधिक टिकट दावेदार मौजूद हैं, जिनमें आधे से अधिक सीटों पर पार्टी के अधिकांश पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक ही टिकट की दावेदारी कर रहे हैं और अधिकांश को टिकट मिलेगा भी। जबकि करीब दो दर्जन विधायकों के टिकटों पर सर्वे के आधार पर कैंची चल सकती है। ऐसी स्थिति में हर सीट पर कांग्रेस के कई बागियों के चुनाव मैदान में उतरकर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ बगावत करने की संभावना है। कांग्रेस पार्टी चाहती है कि प्रत्याशी के साथ-साथ बागियों को भी विरोध का समय कम ही मिले। इसलिए एक सैकड़ा से अधिक प्रत्याशियों की पहली सूची तैयार तो कर ली गई है, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया है।
विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों को लेकर कांग्रेस में मंथन चल रहा है। भोपाल में लंबे विचार-विमर्श के बाद दिल्ली में भी दो दिनों तक चर्चा हुई। पार्टी नेताओं ने तय किया है कि अभी उम्मीदवार घोषित नहीं करेंगे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने बताया कि समय आने पर आचार संहिता लगने के आसपास ही टिकट वितरण का काम होगा। हमारे टिकट लगभग तय हैं। समय आने पर घोषित होंगे। वहीं कांग्रेस को आशंका है कि लोकसभा के विशेष सत्र के माध्यम से एक राष्ट्र- एक कानून की प्रक्रिया लागू हुई तो मप्र सहित अन्य राज्य राज्यों के विधानसभा चुनाव कुछ माह स्थगित हो सकते हैं। कांग्रेस ने अगर अभी से प्रत्याशी घोषित कर दिए तो न केवल पार्टी के ही बागियों को मजबूत होने का अधिक समय मिलेगा। बल्कि घोषित प्रत्याशियों का पर भी चुनावी खर्च का बोझ बढ़ जाएगा। कांग्रेस ने प्रत्याशियों के नामों की सूची भले जारी नहीं की है, लेकिन अधिकांश प्रत्याशियों का चयन हो चुका है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पार्टी के भावी लेकिन अघोषित प्रत्याशियों को उनके विधानसभा क्षेत्र में पहुंचकर चुनाव अभियान में जुटने का इशारा भी कर दिया है। इधर, दूसरे दावेदार अभी अपने बायोडाटा ही कभी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को कभी स्क्रीनिंग कमेटी के पदाधिकारियों को सौंप रहे हैं।