ग्वालियर की सुंदरता पर दाग, स्वर्णं रेखा नदी को पहले करो स्मार्ट

अब नदी नहीं नाला के नाम से जानी जाती है ऐतिहासिक शहर ग्वालियर की पहचान
राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी से बदहाल हालत

राजेश शुक्ला। जहां कभी हरसु हरियाली नजर आती है।
जहां देखो वहां बदहाली नजर आती है।
साहित्यकार माताप्रसाद शुक्ला का यह शेर मप्र के ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी (अब नाला) पर मुफीद साबित हो रहा है। इसकी बदहाली ,लाचारी और दुर्दशा का आलम यह है कि स्वर्ण रेखा नदी अपनी ऐतिहासिक पहचान को भी मिटा चुकी है। अब शहर में इसे नाला ही कहा जाता है। शायद ही कोई हो जो इस नदी के रूप में संबोधित करता हो। यह नाला ग्वालियर की सुंदरता पर एक ऐसा दाग है जो करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी साफ नहीं हो सका है और इसके जिम्मेदार मौन हैं। इसका कारण साफ है प्रशासन और राजनैतिक दलों के लोगों में अपने शहर की पहचान को वापस लाने की इच्छाशक्ति का न होना। जानकार बताते हैं कि आज से 6 दशक पहले करीब 15 किलोमीटर शहर के मध्य से निकली इस नदी में कलकल करता साफ पानी दिखाई देता था। बुजुर्ग बताते हैं कि हम इस नदी में पानी भरने और नहाने के लिए आते थे। 1970 के बाद इस नाले की दुर्दशा होना शुरू हो गई। गौरतलब है कि स्वर्ण रेखा नदी सिंधिया रियासत के समय लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनाई गई थी। ग्वालियर की पहचान स्वर्ण रेखा नदी अब अपना आस्तित्व खो चुकी है। बता दें कि जीवाजीगंज से शुरू होकर यह नाला मुरार नदी तक कई किलोमीटर तक शहर के मध्य से निकला है। आज के समय ग्वालियर में स्मार्ट सिटी कारपोरेशन करोड़ों रुपए के स्मार्ट वर्क करा रही है। जिसमें सड़क, बिजली, पार्क का संधारण, हाट बाजार और चौपाटी का कायाकल्प लेकिन इस कवायद से ग्वालियर स्मार्ट सिटी बन पाएगा इसपर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। जब तक स्वर्ण रेखा नदी का कल्याण नहीं होगा तब तक ग्वालियर स्मार्ट सिटी कभी नहीं बन सकता है।  बायलाइन24.कॉम स्वर्ण रेखा (अब नदी नहीं) नाले पर प्रशासन और जिम्मेदारों को यह बता रहा है कि आखिर क्या कारण है कि हमारी सोच अब तक स्मार्ट नहीं हो पाई है।

करोड़ों रुपए हुए खर्च लेकिन स्वरूप नहीं बदला
बता दें कि स्वर्ण रेखा नदी हनुमान बांध से शुरू होकर शर्मा फॉर्म मल्लगढ़ा चौराहा पर जाकर बड़े नाले में मिलती है। नदी में लश्कर और उपनगर ग्वालियर के 89 छोटे-बड़े नाले मिले हैं। नालों में बारिश, सीवर और घरों का पानी आता था। करीब 22 साल पहले केन्द्र सरकार ने इसके सौंदर्यीकरण के लिए 46 और बाद में 30 करोड़ रुपए स्वीकृत किए। निगम प्रशासन ने सीवर की लाइन बिछाकर सीवर का गंदा पानी बहने से रोकने का प्रयास किया। लेकिन नाले चौक होने पर सीवर का पानी नदी में आ जाता है। पिछले कई महीनों से यह गंदा पानी स्वर्ण रेखा नदी में बह रहा है। ऊपर से तुर्रा यह है कि इसको रोकने के लिए नगर-निगम ने कोई प्रयास नहीं किए हैं।

अतिक्रमण से छोटा हुआ नाला
शहर के मध्य से निकला लगभग 14 किलोमीटर स्वर्ण रेखा नाला अब सिकुड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। गंदगी, सीवर का मलबा और बदबू से लबरेज यह नाला अब शहर की पहचान बनता जा रहा है। तारागंज, मामा का बाजार ,लाला का बाजार गैंडे वाली सड़क, जीवाजीगंज, शिन्दे की छावनी और अन्य स्थानों पर नाले का स्वरूप अतिक्रमण से लगातार छोटा होता जा रहा है। दबंगों ने नाले की जमीन पर बेजा कब्जे कर अपने आशियाने बना दिए हैं। कई स्थानों पर नगर-निगम ने नाले को पाटकर रोड़ बना दी है।

नदी में नाव का सपना अब सिर्फ सपना साबित
स्वर्ण रेखा नदी सिंधिया काल में लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनाई गई थी। उस काल में यह भीषण गर्मी के चलते पीने के पानी का मुख्य आधार थी। आलम यह है कि नदी में शहर का गंदा पानी बह रहा है। कमोवेश पूरे शहर का कचरा भी जमा हो गया है। कभी ऐसी कवायद थी कि साफ पानी में यहां नाव चलाई जाएं लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।

सबसे ज्यादा मानसून की बारिश से खतरा
अभी जून माह चल रहा है। ग्वालियर जिले में मानसून दस्तक देने वाला है। नाले की स्थिति ऐसे में सबसे खराब होना तय है,क्योंकि नगर-निगम ने अधिकांश स्थानों पर बारिश पूर्व की सफाई नहीं कराई है। बायलाइन24.कॉम की टीम ने स्वर्ण रेखा नाला भैंस मंडी, गैंडे वाली सड़क ,छप्पर वाला पुल,शिन्दे की छावनी और फूलबाग का जाएजा लिया तो हालत खराब देखे गए।

फैक्ट फाइल—
– व्यवसायिक प्रतिष्ठान और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी लगातार इस स्वर्णरेखा रेखा नदी में मिल रही है जिससे यह प्रदूषित नाला बन कर रह गया है।
– राजनीतिक रसूख रखने वाले नेता-मंत्री और अधिकारियों ने स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ो रुपए खर्च किये लेकिन स्थित जस की तस बनी हुई है।
– स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ों रुपए खर्च करके नीदरलैंड की तकनीकी से निखारने का काम भी किया लेकिन यह योजना भी पूरी तरह से फेल हो गई।
– वर्ष 2006 में 60 करोड़ रुपए खर्च कर स्वर्ण रेखा को पक्का कराया गया था जिससे बरसात का पानी जमा होता रहे है। वहीं कम बरसात के चलते पानी जमा नहीं हो पाया लेकिन गंदा पानी जमा होना शुरू हो गया।
-उच्च न्यायालय की ग्वलियर खण्डपीठ में स्वर्ण रेखा नदी की बदहाली को लेकर पीआईएल (जनहित याचिका) लगी हुई हैं। सुनवाई के दौरान जजों ने शासन ,प्रशासन को कड़ी फटकार भी लगाई है लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा या निर्णय निकलकर सामने नहीं आया है।

हमें याद है जब हम पाकिस्तान विभाजित हुआ तब ग्वालियर आए थे तो यहां स्वर्ण रेखा नदी में साफ पानी बहता था। कई स्थानों पर धोबी घाट बने थे और पशु भी पानी पीते थे। अब नदी नहीं नाला शहर की पहचान बन चुका है। सरकार को इस धरोहर को बचाना चाहिए।
घनश्यामदास आहूजा
व्यापारी

मेरा निवास नाले से कुछ दूरी पर ही है। हमारे पिता ने यहां साफ पानी देखा बहते देखा था। अब हम नाले में सीवर और गंदगी देख रहे हैं। बदबू से यहां रहना मुश्किल है। पर क्या करें। बारिश में नाले का पानी सीवर के साथ मिलकर घरों में आ जाता है।
विजय गुप्ता
समाजसेवी

नाले में नहर पट्टर पर रहने वाले लोगों ने सीधे सीवर लाइन डाल रखी हैं। नगर-निगम ने अब तक नाला साफ नहीं कराया है। बारिश आने के बाद यहां की हालत सबसे ज्यादा खराब हो जाती है।
विकास गुप्ता
शिक्षाविद्

नोट- इस रपट में किसी भी प्रशासनिक या राजनैतिक जिम्मेदार का वर्जन इसलिए नहीं लिया गया है कि वह कहेंगे भी क्या ?

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