दो बालिग शादी या लिव इन में साथ रह सकते हैं, मोरल पुलिसिंग की ज़रूरत नहींः हाईकोर्ट

जबलपुर के एक व्यक्ति ने एक याचिका में कहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र की एक हिंदू महिला से शादी की और महिला ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपनाया पर उनके माता-पिता ने जबरन उन्हें ले जाकर क़ैद कर लिया. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें साथ रहने की इजाज़त देते हुए कहा कि बिना किसी दबाव के साथ रहने के इच्छुक बालिगों के मामले में किसी तरह की नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती.

  मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि दो व्यस्क शादी या लिव इन रिलेशनशिप के जरिये साथ रहना चाहते हैं तो किसी को भी मॉरल पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती.

जस्टिस नंदिता दुबे की एकल पीठ ने 28 जनवरी को जबलपुर निवासी गुलजार खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की.

याचिका में खान ने कहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र में आरती साहू (19) से शादी की थी और आरती ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपना लिया है. खान ने आरोप लगाया है, ‘आरती को उनके माता-पिता जबरन वाराणसी ले गए और कैद में रखा.’

आरती साहू को 28 जनवरी को महाधिवक्ता कार्यालय से वीडियो काॉन्फ्रेसिंग के जरिये अदालत में पेश किया गया.

अदालत ने इस तथ्य का जिक्र किया कि राज्य ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 के प्रावधानों के मद्देनजर आपत्ति जताई है.

सुनवाई के दौरान सरकार ने पुरजोर दलील दी कि मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून की धारा तीन का उल्लंघन कर संपन्न हुआ कोई भी विवाह अमान्य और शून्य माना जायेगा. बल का उपयोग कर अनुचित प्रभाव, जबरन विवाह या धोखाधड़ी कर किसी अन्य व्यक्ति के धर्मांतरण का प्रयास नहीं करेगा.

अदालत ने कहा, ‘ऐसे मामलों में किसी भी नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है जिसमें बगैर किसी दबाव के अपनी मर्जी से दो वयस्क शादी के माध्यम से या लिव इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने के इच्छुक हैं.’

अदालत ने कहा कि महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्होंने याचिकाकर्ता से शादी की है और वह उनके साथ रहना चाहती है. अदालत ने कहा, ‘आरती बालिग है और उनकी उम्र को लेकर कोई विवाद नहीं है.’

अदालत ने कहा, ‘संविधान इस देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीने का अधिकार देता है.’

अदालत ने कहा, ‘इन परिस्थितियों के मद्देनजर सरकारी वकील की आपत्तियां और इस युवती को नारी निकेतन भेजने की अपील खारिज की जाती है. महिला को उसके पति को सौंपने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया जाता है कि दोनों सुरक्षित अपने घर पहुंचे.’

अदालत ने पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि भविष्य में भी महिला और उसके पति को उसके माता-पिता से किसी तरह का कोई खतरा नहीं हो.