सीबीआई के नए निदेशक का कार्यकाल बदलने का कारण बताने से केंद्र का इनकार

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने यह बताने से इनकार कर दिया है कि उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के नए निदेशक के कार्यकाल में मनमाने ढंग से ‘अगले आदेश तक’ लिखकर बदलाव क्यों किया. उनका यह कार्यकाल कम से कम दो साल का होने वाला था.

सीबीआई के नए निदेशक के तौर पर सुबोध कुमार जायसवाल की नियुक्ति से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व के मानदंडों पर तीन पूर्व सीबीआई प्रमुखों अनिल सिन्हा, आलोक वर्मा और ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति की थी.

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की ओर से 25 मई को जारी नोट में कहा गया, ‘मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने समिति द्वारा अनुशंसित पैनल के आधार पर सुबोध कुमार जायसवाल को कार्यकाल संभालने की तारीख से दो साल तक की अवधि के लिए ‘या अगले आदेश तक जो भी पहले हो’, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दी.’

इस आदेश के जवाब में हरियाणा के वकील और आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत कुमार ने चार जून को डीओपीटी में आरटीआई याचिका दायर की थी, जिसमें मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के सचिवालय द्वारा जारी आदेश में ‘अगले आदेश तक या जो भी पहले हो’ के इस्तेमाल के संबंध में जानकारी मांगी थी.

कुमार ने याचिका में लिखा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 4 बी (1) के अनुरूप सीबीआई निदेशक अपनी सेवा की शर्तों से संबंधित नियमों से कुछ भी विपरीत होने के बावजूद पदग्रहण करने की तारीख से कम से कम दो वर्ष की अवधि के लिए पद पर बने रहेंगे.

इस सवाल के जवाब में डीओपीटी ने 14 जून के अपने पत्र में कहा, ‘आपके द्वारा मांगी गई जानकारी प्रश्न/स्पष्टीकरण मांगने के स्वरूप में हैं और आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत स्पष्ट या व्याख्या करने के लिए दायरे से बाहर हैं.’

कुमार ने जवाब पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने कभी स्पष्टीकरण नहीं मांगा. उन्होंने सीबीआई निदेशक के कार्यकाल को निर्दिष्ट करने के लिए विभाग के आदेश में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर केवल विवरण मांगा था.

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