सांसदों-विधायकों के खिलाफ देशभर की अदालतों में 4984 आपराधिक दर्ज

सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी गई है कि पूर्व और मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ कुल 4984 आपराधिक मुकदमे देश भर की विभिन्न सत्र और मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित हैं। पिछले तीन वर्षों में 862 मामलों की वृद्धि हुई है।

न्याय मित्र वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत की ओर से कई निर्देशों और निरंतर निगरानी के बावजूद 4984 मामले लंबित हैं, जिनमें से 1899 मामले पांच वर्ष से अधिक पुराने हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चार दिसंबर 2018 के बाद 2775 मामलों के निपटारे के बाद भी सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामले 4122 से बढ़कर 4984 हो गए हैं। इन मामलों में से 3322 मजिस्ट्रियल मामले हैं जबकि 1651 सत्र मामले हैं।

यह रिपोर्ट वकील और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से साल 2016 में दायर उस याचिका पर आई है जिसमें कानून निर्माताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की मांग की गई थी।

न्याय मित्र ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक से अधिक लोग संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों पर ‘कब्जा’ कर रहे हैं। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान के लिए तत्काल और कड़े कदम उठाए जाएं।

अपनी रिपोर्ट में न्याय मित्र ने कई सुझाव भी दिए हैं। उन्होंने कहा है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमों को देख रही अदालतें सिर्फ और सिर्फ इन्हीं मामलों को देखें। अन्य मामलों की सुनवाई ऐसे मामलों की सुनवाई पूरी होने के बाद ही की जाए।

उन्होंने यह सुझाव भी दिया गया है कि अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों ही मामले की सुनवाई में सहयोग करेंगे और कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा। यदि अभियोजन पक्ष त्वरित सुनवाई में सहयोग करने में विफल रहता है तो मामले की सूचना राज्य के मुख्य सचिव को दी जाएगी जो आवश्यक उपचारात्मक उपाय करेंगे। यदि अभियुक्त मुकदमे में देरी करता है तो उसकी जमानत रद्द कर दी जाए।