मामले का विचाराधीन होना आरटीआई के तहत सूचना देने से मना करने का आधार नहीं: सीआईसी

 

नई दिल्ली। सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत राजनीतिक दलों को लाने से संबंधित एक मामले में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने हाल ही में आरटीआई मामलों के लिए केंद्र सरकार के नोडल विभाग कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को याद दिलाया कि न्यायालय के विचाराधीन मामलों को आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (बी) के तहत इनकार नहीं किया जा सकता है.

मामले में आरटीआई आवेदन यश पॉल मानवी द्वारा 17 जुलाई, 2019 को दायर किया गया था. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिट (सिविल) संख्या 333/2015 के संबंध में डीओपीटी द्वारा दायर जवाब की एक प्रति मांगी थी.

उसी वर्ष मार्च के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) और आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा संयुक्त रूप से दायर एक याचिका को आरटीआई अधिनियम के तहत राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को जवाबदेह ठहराने के लिए संज्ञान में लिया था.

केंद्रीय सूचना आयोग ने पहले जून 2013 में फैसला सुनाया था कि राजनीतिक दल पारदर्शिता कानून के दायरे में आते हैं, लेकिन दलों ने जोर देकर कहा कि उन्हें अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं माना जा सकता है.

केंद्र ने जनवरी 2018 में शीर्ष अदालत कहा था कि राजनीतिक दलों को च्सार्वजनिक प्राधिकरणज् कहकर उन्हें आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल उनके सुचारू कामकाज में बाधा आएगी बल्कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को भी सूचना मांगने की आड़ में दुर्भावनापूर्ण मंशा के तहत याचिका दायर करने में मदद मिलेगी.

मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. दिसंबर 2020 में केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिसमें उसने कहा था कि यह मुद्दा कि क्या राजनीतिक दल आरटीआई अधिनियम, 2005 के दायरे में हैं, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निर्णय/विचार लंबित है.

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