मप्र में सीधे जांच नहीं कर पाएगी EOW और लोकायुक्त, अधिकारी पर कार्रवाई से पहले सीएम से अनुमति लेना अनिवार्य

भोपाल । मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को एक और सुरक्षा कवच मिल गया है। प्रदेश में अब भ्रष्टाचार से जुड़े किसी मामले में कोई भी पुलिस अधिकारी, लोकायुक्त संगठन या ईओडब्ल्यू जैसी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं सीधे जांच या अधिकारी के खिलाफ एफआइआर अथवा किसी भी तरह की पूछताछ नहीं कर सकती हैं। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए में यह प्रावधान करने के बाद अब अखिल भारतीय सेवा या वर्ग एक के किसी भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मुख्यमंत्री से अनुमति अनिवार्य होगी। मप्र सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने नए नियम के तहत प्रविधान किया है कि वर्ग-दो से लेकर वर्ग-चार तक के अधिकारी और कर्मचारियों के मामले में प्रशासकीय विभाग की अनुमति अनिवार्य होगी। इस अनुमति के बाद ही कोई पुलिस अधिकारी आगे की कार्रवाई कर सकता है। यह नियम भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) के निर्देशों के तहत जारी किए गए हैं, जो देशभर में लागू होंगे। राज्य सरकार द्वारा पांच मई को जारी नियमों के तहत अखिल भारतीय सेवा या वर्ग-एक के अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामलों में प्रशासकीय विभाग उन्हें जांचेगा, परखेगा और फिर उसे मुख्यमंत्री समन्वय में भेजेगा। मुख्यमंत्री के स्तर पर जो निर्णय होगा, प्रशासकीय विभाग उससे संबंधित जांच एजेंसी को अवगत कराएगा। लाचार हो जाएंगी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां : नए नियमों के तहत भ्रष्टाचार नियंत्रण की जांच में लगी एजेंसियां जैसे लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना या आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) जैसी संस्थाएं पंगु बनकर रह जाएंगी। इन संस्थाओं के पास भ्रष्टाचार की जांच का भी अधिकार नहीं होगा। इस बारे में मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एससी त्रिपाठी का कहना है कि जब किसी के हाथ बांध दिए जाएंगे तो क्या होगा। भ्रष्टाचार तो बढ़ेगा ही, कानून तो पहले बन गया था, अब उसे और स्प्ष्ट किया गया होगा। जाहिर है जो सरकार होगी, उसकी जांच नहीं होगी।