MP पहली बार जीते विधायकों के सामने अपने क्षेत्र को जिताने की बड़ी चुनौती

भोपाल।  करीब तीन पहले चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने नेताओं के अब अपने इलाके से सांसद प्रत्याशियों को जीताने की परीक्षा से गुजरना होगा। भाजपा ने तो इसको लेकर पहले से ही विधायकों को जिम्मा सौंप दिया है। इनमें से कई विधायक तो ऐसे हैं, जो अभी विधायक का कामकाज समझ ही रहे हैं। यह बात अलग है कि प्रदेश में मोदी लहर चल रही है, जिसकी वजह से उनके लिए यह परीक्षा कुछ आसान नजर आ रही है। इसके बाद भी नए नवेले विधायकों को चिंता है कि अगर उनके इलाके से पार्टी प्रत्याशी को कम मत मिलते हैं, उनके पार्टी में नंबर कम हो जाएंगे। दरअसल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन कई सीटें ऐसी भी हैं, जहां पर अन्य दलों का भी प्रभाव है, जिसमें खासतौर पर बसपा शामिल है। ऐसे में पहली बार जीते विधायकों के सामने अपने क्षेत्र को जिताने की बड़ी चुनौती बन गई है। इस दौरान भाजपा विधायकों ने जनता के बीच विकास के नाम पर वोट मांगने की रणनीति बनाई है। यह बात अलग है कि विधानसभा चुनाव हुए चंद माह ही हुए हैं, जिसकी वजह से अभी वे विकास का भरोसा ही देने की स्थिति में हैं। इसके उलट कांग्रेस में 18 सीटज्ञें पर तो प्रत्याशी ही तय नहीं हुए हैं, ऐसे में कांग्रेस विधायक असमंजस की स्थिति में हैं।
उधर कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती बनी हुई है, वह है कार्यकर्ताओं को जुटाने और उनमें उत्साह भरने की। अगर विकास की बात की जाए तो प्रदेश में इस मार्च माह में ही जल संसाधन, लोक निर्माण और नगरीय विकास विभाग ने अकेले मार्च में 5 हजार करोड़ के काम मंजूर किए हैं। भाजपा संगठन से निर्देश हैं कि हर विधायक अपने क्षेत्र को जिताए। जहां भाजपा विधायक नहीं है वहां कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम होगी।
बताएंगे सरकार नहीं कर रही मदद: बडामलहरा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार कांग्रेस से जीती रामसिया भारती का कहना है कि लोकसभा चुनाव में वे प्रचार के दौरान अपने क्षेत्र की जनता को बताएंगी कि सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा। विकास के नाम पर जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में एमपी की 29 सीटों पर चुनाव, एमपी के नए सीएम डॉ. मोहन यादव का भी इम्तेहान है। इम्तेहान इन मायनों में कि 2004 के बाद से ये पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें सत्ता के चेहरे के तौर पर शिवराज नहीं होंगे। विधानसभा चुनाव में जीत के साथ ही शिवराज ने 29 सीटों पर जीत के लिए जो अभियान छेड़ा था अब उस अधूरे अभियान को पूरा करने की अघोषित जवाबदारी भी मोहन यादव के कंधों पर ही होगी।
क्या कहते है विधायक

चाचौड़ा से पहली बार भाजपा से विधानसभा चुनाव जीतीं प्रियंका मीणा कहती हैं कि तीन माह के भीतर उनके क्षेत्र में मंजूर काली- सिंध परियोजना चुनाव में वरदान साबित होगी। सीएम राइस स्कूल मंजूर हुए हैं। हम अपनी सरकार के काम पूरी ताकत से बताएंगे ।
डेढ़ माह में 16 करोड़ के काम मंजूरमहाराजपुर विधानसभा से पहली बार जीते कामाख्या प्रताप सिंह कहते हैं कि डेढ़ माह में 16 करोड़ के काम मंजूर हुए हैं। महाराजपुर और गढ़ीमलहरा में नलजल योजना स्वीकृत हुई है। सडक़ें, स्टेडियम, एम्बुलेंस आदि मेरे विधायक काल में ही मंजूर हुए हैं।
सीएम की साख भी दांव पर
प्रदेश में 2009 से लेकर 2014 तक लोकसभा चुनाव में सीएम बतौर शिवराज सिंह चौहान ही रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन बीजेपी ने तीन महीने बाद हुए चुनाव में एकदम उलट नतीजे दिए और और एमपी में 29 में से 28 सीटों पर कमल खिल गया। 400 पार के नारे का दम भर रही बीजेपी एमपी में इस बार 29 सीटों पर कमल खिलाने का टारगेट रख चुकी है। इसमें दो राय नहीं कि बूथ स्तर तक की संगठन की प्लानिंग से ये टारगेट इतना मुश्किल भी नहीं लेकिन, साख केवल संगठन नहीं सीएम मोहन यादव की भी दांव पर है। सत्ता संभालने के तीन माह बाद ही मोहन यादव को इस परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। यह बात अलग है कि बीजेपी की एक खासियत है कि वो अपने नेता तैयार कर लेती है, तो मोहन यादव तैयार हो रहे हैं और मुझे लगता है कि 29 सीटों के चुनाव नतीजे उन्हें और मजबूत चेहरा बनकर उभार देंगे।मकाज समझ ही रहे हैं। यह बात अलग है कि प्रदेश में मोदी लहर चल रही है, जिसकी वजह से उनके लिए यह परीक्षा कुछ आसान नजर आ रही है। इसके बाद भी नए नवेले विधायकों को चिंता है कि अगर उनके इलाके से पार्टी प्रत्याशी को कम मत मिलते हैं, उनके पार्टी में नंबर कम हो जाएंगे। दरअसल प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन कई सीटें ऐसी भी हैं, जहां पर अन्य दलों का भी प्रभाव है, जिसमें खासतौर पर बसपा शामिल है। ऐसे में पहली बार जीते विधायकों के सामने अपने क्षेत्र को जिताने की बड़ी चुनौती बन गई है। इस दौरान भाजपा विधायकों ने जनता के बीच विकास के नाम पर वोट मांगने की रणनीति बनाई है। यह बात अलग है कि विधानसभा चुनाव हुए चंद माह ही हुए हैं, जिसकी वजह से अभी वे विकास का भरोसा ही देने की स्थिति में हैं। इसके उलट कांग्रेस में 18 सीटज्ञें पर तो प्रत्याशी ही तय नहीं हुए हैं, ऐसे में कांग्रेस विधायक असमंजस की स्थिति में हैं।
उधर कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती बनी हुई है, वह है कार्यकर्ताओं को जुटाने और उनमें उत्साह भरने की। अगर विकास की बात की जाए तो प्रदेश में इस मार्च माह में ही जल संसाधन, लोक निर्माण और नगरीय विकास विभाग ने अकेले मार्च में 5 हजार करोड़ के काम मंजूर किए हैं। भाजपा संगठन से निर्देश हैं कि हर विधायक अपने क्षेत्र को जिताए। जहां भाजपा विधायक नहीं है वहां कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम होगी।
बताएंगे सरकार नहीं कर रही मदद: बडामलहरा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार कांग्रेस से जीती रामसिया भारती का कहना है कि लोकसभा चुनाव में वे प्रचार के दौरान अपने क्षेत्र की जनता को बताएंगी कि सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा। विकास के नाम पर जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में एमपी की 29 सीटों पर चुनाव, एमपी के नए सीएम डॉ. मोहन यादव का भी इम्तेहान है। इम्तेहान इन मायनों में कि 2004 के बाद से ये पहला लोकसभा चुनाव होगा जिसमें सत्ता के चेहरे के तौर पर शिवराज नहीं होंगे। विधानसभा चुनाव में जीत के साथ ही शिवराज ने 29 सीटों पर जीत के लिए जो अभियान छेड़ा था अब उस अधूरे अभियान को पूरा करने की अघोषित जवाबदारी भी मोहन यादव के कंधों पर ही होगी।
क्या कहते है विधायक
स्वीकृत कामों की देंगे जानकारी
चाचौड़ा से पहली बार भाजपा से विधानसभा चुनाव जीतीं प्रियंका मीणा कहती हैं कि तीन माह के भीतर उनके क्षेत्र में मंजूर काली- सिंध परियोजना चुनाव में वरदान साबित होगी। सीएम राइस स्कूल मंजूर हुए हैं। हम अपनी सरकार के काम पूरी ताकत से बताएंगे ।
डेढ़ माह में 16 करोड़ के काम मंजूरमहाराजपुर विधानसभा से पहली बार जीते कामाख्या प्रताप सिंह कहते हैं कि डेढ़ माह में 16 करोड़ के काम मंजूर हुए हैं। महाराजपुर और गढ़ीमलहरा में नलजल योजना स्वीकृत हुई है। सडक़ें, स्टेडियम, एम्बुलेंस आदि मेरे विधायक काल में ही मंजूर हुए हैं।
सीएम की साख भी दांव पर
प्रदेश में 2009 से लेकर 2014 तक लोकसभा चुनाव में सीएम बतौर शिवराज सिंह चौहान ही रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन बीजेपी ने तीन महीने बाद हुए चुनाव में एकदम उलट नतीजे दिए और और एमपी में 29 में से 28 सीटों पर कमल खिल गया। 400 पार के नारे का दम भर रही बीजेपी एमपी में इस बार 29 सीटों पर कमल खिलाने का टारगेट रख चुकी है। इसमें दो राय नहीं कि बूथ स्तर तक की संगठन की प्लानिंग से ये टारगेट इतना मुश्किल भी नहीं लेकिन, साख केवल संगठन नहीं सीएम मोहन यादव की भी दांव पर है। सत्ता संभालने के तीन माह बाद ही मोहन यादव को इस परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। यह बात अलग है कि बीजेपी की एक खासियत है कि वो अपने नेता तैयार कर लेती है, तो मोहन यादव तैयार हो रहे हैं और मुझे लगता है कि 29 सीटों के चुनाव नतीजे उन्हें और मजबूत चेहरा बनकर उभार देंगे।