दिव्यांग सदस्यों के लिए आजीवन रहेगी परिवार पेंशन की पात्रता, केंद्र ने हितों को ध्यान में रखते हुए पेंशन नियम में किए कई बदलाव

 

ग्वालियर। मध्य प्रदेश में शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त हुए पेंशनर के लिए बनाए नियमों में परिवर्तन होगा। अभी पेंशनर की मृत्यु होने पर पति या पत्नी को परिवार पेंशन की पात्रता होती है। इनकी मृत्यु होने पर परिवार में आश्रित दिव्यांग है तो उसे आजीवन परिवार पेंशन की पात्रता होती है लेकिन दिव्यांगता 25 वर्ष की आयु के पूर्व की होनी चाहिए। अब आयु सीमा के इस प्रविधान को समाप्त किया जा रहा है यानी आश्रित 25 वर्ष की आयु के बाद दिव्यांग हो जाता है तो भी परिवार पेंशन मिलेगी। इसके साथ ही पेंशन नियम में यह प्रविधान भी किया जा रहा है कि आश्रित विधवा परित्याक्ता और तलाकशुदा बेटी को भी परिवार पेंशन की पात्रता रहेगी।
केंद्र सरकार ने पेंशनर के हितों को ध्यान में रखते हुए पेंशन नियम में कई बदलाव किए हैं। शिवराज सरकार भी मध्य प्रदेश सिविल सर्विस पेंशन नियम 1976 में परिवर्तन करने जा रही है। अभी आश्रित बेटा या बेटी की दिव्यांगता 25 वर्ष की आयु के पूर्व होती है तो ही उसे परिवार पेंशन की आजीवन पात्रता रहती है। इस आयु सीमा के बाद दिव्यांग होने पर लाभ नहीं मिलता था। इसे देखते हुए अब आयु सीमा के बंधन को समाप्त किया जा रहा है। इसी तरह आश्रित बेटी को 25 वर्ष की आयु तक परिवार पेंशन की पात्रता नियमों में दी गई है लेकिन विधवा तलाकशुदा या परित्याक्ता के लिए कोई प्रविधान नहीं है। जबकि केंद्र सरकार नियमों में संशोधन कर चुकी है।
अब प्रदेश सरकार भी आश्रित विधवा तलाकशुदा या परित्याक्ता को परिवार पेंशन के दायरे में लाने जा रही है। साथ ही यह भी प्रविधान किया जा रहा है कि उसी वसूली प्रकरण में पेंशन से राशि काटी जा सकती है जिसकी सूचना सेवानिवृत्ति से पहले दी गई हो। इसके बाद यदि कोई वसूली निकलती है तो पेंशन से राशि नहीं ली जा सकेगी। पेंशन प्रकरण कर्मचारी सेवानिवृत्ति के पहले स्वयं तैयार करेगा। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कर्मचारी आयोग ने पेंशन नियम 1976 में संशोधन का प्रारूप तैयार कर लिया है। अब इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपा जाएगा। उनकी अनुमति मिलते ही कैबिनेट में प्रस्तुत करके अंतिम निर्णय हो जाएगा।
व्यावहारिक हैं सुधार
पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेशदत्त जोशी का कहना है कि दिव्यांग विधवा परित्याक्ता या तलाकशुदा के प्रकरण बहुत कम होते हैं। परिवार पेंशन की पात्रता में आने वाले दिव्यांगों की संख्या पांच सौ से ज्यादा नहीं होगी। सरकार ने एक विलंब से ही सही पर पेंशन नियम में संशोधन का सही कदम उठाया है। केंद्र सरकार पहले ही नियमों में संशोधिन कर चुकी है। पेंशनर से जुड़े संगठन लगातार सरकार से पेंशन नियम में इन व्यावहारिक सुधारों की मांग करते आ रहे हैं। वैसे भी इन प्रविधानों से खजाने पर ज्यादा वित्तीय भार नहीं आना है लेकिन एक संदेश जरूर जाता है।केंद्र सरकार ने पेंशनर के हितों को ध्यान में रखते हुए पेंशन नियम में कई बदलाव किए हैं। शिवराज सरकार भी मध्य प्रदेश सिविल सर्विस पेंशन नियम 1976 में परिवर्तन करने जा रही है। अभी आश्रित बेटा या बेटी की दिव्यांगता 25 वर्ष की आयु के पूर्व होती है तो ही उसे परिवार पेंशन की आजीवन पात्रता रहती है। इस आयु सीमा के बाद दिव्यांग होने पर लाभ नहीं मिलता था। इसे देखते हुए अब आयु सीमा के बंधन को समाप्त किया जा रहा है। इसी तरह आश्रित बेटी को 25 वर्ष की आयु तक परिवार पेंशन की पात्रता नियमों में दी गई है लेकिन विधवा तलाकशुदा या परित्याक्ता के लिए कोई प्रविधान नहीं है। जबकि केंद्र सरकार नियमों में संशोधन कर चुकी है।

अब प्रदेश सरकार भी आश्रित विधवा तलाकशुदा या परित्याक्ता को परिवार पेंशन के दायरे में लाने जा रही है। साथ ही यह भी प्रविधान किया जा रहा है कि उसी वसूली प्रकरण में पेंशन से राशि काटी जा सकती है जिसकी सूचना सेवानिवृत्ति से पहले दी गई हो। इसके बाद यदि कोई वसूली निकलती है तो पेंशन से राशि नहीं ली जा सकेगी। पेंशन प्रकरण कर्मचारी सेवानिवृत्ति के पहले स्वयं तैयार करेगा। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कर्मचारी आयोग ने पेंशन नियम 1976 में संशोधन का प्रारूप तैयार कर लिया है। अब इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपा जाएगा। उनकी अनुमति मिलते ही कैबिनेट में प्रस्तुत करके अंतिम निर्णय हो जाएगा।
व्यावहारिक हैं सुधार
पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेशदत्त जोशी का कहना है कि दिव्यांग विधवा परित्याक्ता या तलाकशुदा के प्रकरण बहुत कम होते हैं। परिवार पेंशन की पात्रता में आने वाले दिव्यांगों की संख्या पांच सौ से ज्यादा नहीं होगी। सरकार ने एक विलंब से ही सही पर पेंशन नियम में संशोधन का सही कदम उठाया है। केंद्र सरकार पहले ही नियमों में संशोधिन कर चुकी है। पेंशनर से जुड़े संगठन लगातार सरकार से पेंशन नियम में इन व्यावहारिक सुधारों की मांग करते आ रहे हैं। वैसे भी इन प्रविधानों से खजाने पर ज्यादा वित्तीय भार नहीं आना है लेकिन एक संदेश जरूर जाता है।