अब ऊर्जा विभाग में मंत्री नहीं कर सकेंगे तबादले , नियमों का हवाला देकर मुख्य सचिव ने लौटाई फाइलें

भोपाल। शिवराज सरकार ने कमलनाथ सरकार के उस नियम को पलट दिया है जिसके तहत कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में अधिकारियों या कर्मचारियों के तबादले ऊर्जा मंत्री के अनुमोदन से ही करने के निर्देश दिए गए थे। अब मुख्यसचिव इकबाल सिंह बैंस ने ऊर्जा विभाग के अधीन आने वाली बिजली कंपनियों के अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले का अधिकार ऊर्जा मंत्री को सौंपे जाने इंकार कर दिया। दरअसल, कमलनाथ सरकार के नियम का हवाला देकर ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव ने मुख्य सचिव को फाइल भेजकर इस मामले में मुख्यमंत्री से निर्देश प्राप्त करने का अनुरोध किया था। मुख्य सचिव ने इस आधार पर ऊर्जा मंत्री को यह अधिकार देने से इन्कार कर दिया कि मंत्री के अनुमोदन से सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के स्थानांतरण किए जाते हैं, न कि शासकीय उपक्रम के अधिकारियों और कर्मचारियों के। इससे पहले भी ऊर्जा विभाग ने जुलाई 2021 में मंत्री को तबादले का अधिकार देने से संबंधित मामला मुख्य सचिव को भेजा था, तब स्थानांतरण पर प्रतिबंध होने के कारण इस मामले में विचार करने से मना कर दिया गया था।
दरअसल कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में अधिकारियों या कर्मचारियों के तबादले ऊर्जा मंत्री के अनुमोदन से ही करने के निर्देश दिए गए थे। जिसके बाद विवाद की स्थिति बन गई थी और अधिकारियों ने इस पर आपत्ति भी दर्ज कराई थी। हालांकि बाद में मंत्री के अनुमोदन से स्थानांतरण किए गए। इसी हवाला देकर ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने मुख्य सचिव को फाइल भेजकर इस मामले में मुख्यमंत्री से निर्देश प्राप्त करने का अनुरोध किया था।
प्रमुख सचिव ने जताई आपत्ति
ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने मुख्य सचिव को नोटशीट लिखकर कहा कि अभी तक मुख्यमंत्री या मंत्रियों के अनुशंसित प्रकरणों को सिर्फ विचारार्थ बिजली कंपनियों को भेजा जाता है। विभाग द्वारा कोई स्थानांतरण नीति निर्धारित नहीं की गई है। कार्पोरेट गवर्नेंस के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को स्वायत्ता भी प्रदान की गई है। इस आधार पर विभाग का मत है कि पूर्व सरकार के निर्देर्शों (ऊर्जा मंत्री को तबादले का अधिकार देने संबंधी) का पालन किया जाता है कि बिजली कंपनियों की कार्यप्रणाली पर विपरीत असर पड़ेगा। इससे कार्पोरेट गवर्नेंस पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। प्रमुख सचिव ने कहा कि इस बारे में मुख्यमंत्री से आदेश प्राप्त किया जाए कि ऊर्जा विभाग में समस्त स्थानांतरण ऊर्जा मंत्री के अनुमोदन से किए जाएं या कंपनियों के संचालक मंडल द्वारा निर्धारित डेलिगेशन आफ पावर के तहत स्थानांतण किए जाएं। मुख्यसचिव ने इसे अमान्य कर दिया और कहा कि यह विषय समन्वय (मुख्यमंत्री से आदेश प्राप्त करने का मुद्दा) का नहीं है। ऊर्जा मंत्री से बात करने की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए।
स्थानांतरण के अधिकार विभागीय अधिकारियों के पास ही
ऐसे में पहले जैसी ही स्थिति रहेगी और स्थानांतरण के अधिकार विभागीय अधिकारियों यानि एमडी आदि के पास ही रहेंगे। ऐसे में मंत्री की बिलकुल भी नहीं चलेगी और अपने चहेतों के स्थानांतरण कराने के लिए उन्हें अधिकारियों से सिफारिश करवानी पड़ेगी। मंत्री की अपने विभाग में स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूर्वी क्षेत्र की कम्पनी को छोड़कर किसी भी अन्य कम्पनी की आधिकारिक वेबसाइट पर ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की फोटो तक विभागीय मंत्री के रूप में नहीं लगाई गई है। मंत्री को यह पता ही नहीं रहता है कि उसके क्षेत्र में चीफ इंजीनियर या अधीक्षण यंत्री कब बदल गया है और कौन नया पदस्थ हो गया है। यह तथ्य है कि बिजली से जुड़ी समस्याओं के लिए जनता मंत्री से ही सवाल जवाब करती है लेकिन कम्पनीकरण के बाद मंत्री की हैसियत इस विभाग में केवल निरीक्षण तक ही सीमित है उन्हें अधिकार कुछ भी नहीं हैं। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी कम्पनियां शत-प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली है लेकिन शासन के मंत्री का इन कम्पनियों में कोई हस्तक्षेप नहीं है। इसीलिए कमलनाथ सरकार के समय से ही यह नीतिगत मांग उठती रही है कि मंत्री को अन्य विभागों की तरह ऊर्जा विभाग में भी अधिकार सम्पन्न बनाया जाए।
मंत्री का अपने विभाग में कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं
केंद्रीय विधुत अधिनियम 2003 के लागू होने के बाद राज्यों को अपने बिजली बोर्ड खत्म कर बिजली उत्पादन, पारेषण, वितरण एवं प्रबंधन को अलग अलग कंपनी बनाना पड़ा था। इस अधिनियम के तहत मप्र में छह कम्पनियां कार्यरत है। तीन कम्पनी घरों तक बिजली पहुँचाती है। पूर्वी क्षेत्र (जबलपुर) पश्चमी क्षेत्र (इंदौर), मध्यक्षेत्र (भोपाल) एक एक ट्रांसमिशन, एक पावर जनरेशन एवं एक मैनेजमेंट के नाम से काम रही हैं। रोचक बात यह है कि इन कम्पनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में मंत्री कहीं नही हैं। सभी कम्पनियों के सीएमडी ही बोर्ड के अध्यक्ष हैं। यह बोर्ड कम्पनी संचालन के समस्त अधिकार सीएमडी को डेलीगेट कर देता है। इस तरह ऊर्जा विभाग के मंत्री का अपने विभाग में सीधा कोई हस्तक्षेप ही नहीं होता है। अधिकारियों के स्थानांतरण, नियुक्ति, निविदा स्वीकृति, खरीदी किसी भी मामले को मंत्री के पास नहीं भेजा जाता है।