झाँसी की रानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का ग्वालियर पर मात्र 17 दिन तक रहा था अधिकार

 

राजेश शुक्ला, ग्वालियर। भारत में आधुनिक स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ 1857 से शुरू हो गया था।इस मुश्किल घड़ी में झाँसी की रानी वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई और वीर तात्या टोपे की फौजों के आक्रमण के समय अपने दीवान दिनकर राव राजवाडे के परामर्श से ग्वालियर के तात्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया भागकर आगरा चले गए।

एक जून1885 के भयंकर युद्ध के बाद ग्वालियर राज्य पर महारानी लक्ष्मीबाई और तात्याटोपे का अधिकार होनी इतिहास की बहुत बड़ी घटनाओं में शामिल हैं।महा महारानी लक्ष्मीबाई का सिर्फ़ सत्ता दिन तक ग्वालियर पर अधिकार रहा इसके बाद 18 जून को उनकी सेनाओं का आगरा से आयी अंग्रेज़ी फौजों के साथ भीषण युद्ध हुआ।इस युद्ध में भारी नरसंहार के बाद रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई थी और भारत पर फिर एक बार अंग्रेज़ी साम्राज्य की मोहर लग गई।

इतिहासकारों के मुताबिक़ अंग्रेज़ी सेना की वजह से दमन चक्र प्रारंभ हुआ। शहर के प्रमुख केंद्र सर्राफ़ा बाज़ार में महाराजा सिंधिया के खजांची अमरचंद बांठिया जिन्होंने लक्ष्मीबाई का साथ दिया था उनके साथ अनेक लोगों को सरेआम नीम के पेड़ से लटकाकर फाँसी दी गई।बताया जाता है कि जब फाँसी दी जा रही थी तो अंग्रेजों की सेना ने आस पास रहने वाले लोगों को इस लोमहर्षक दृश्य को देखने के लिए ज़बरन बुलाया था।

भारत छोड़ो आंदोलन और ग्वालियर

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 8अगस्त 1942 में एक प्रस्ताव स्वीकार कर ब्रिटिश सरकार से भारत से अपनी सत्ता समाप्त करने की माँग की।1942 की 23 अगस्त को विदिशा में सार्वजनिक सवा की सेंट्रल कमेटी की बैठक हुई जिसमें ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद करते हुए पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग की गई।अं अंग्रेजों को इस माँग को पूरा करने के लिए मात्र 15 दिन की समय सीमा तय की गई थी इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद सभा के कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का प्रारंभ हो गई।

ग्वालियर  में भी प्रदर्शन और जुलूसों की बाढ़ आ गई।शहर में शहर में हड़ताल हुई और अन्य कार्यकर्ता गिरफ़्तार किए गए इन गिरफ्तारियों के बाद भी जब आंदोलन नहीं रोका तो जुलूसों पर घोड़े दौड़ाए गई और भरपूर लाठियां चलाकर उन्हें मरणासन्न कर दिया गया। रात को पुलिस और जनता तथा छात्रों में जमकर संघर्ष हुआ इस संघर्ष में एक नवयुवक देवी प्रसाद की मौत हो गई बाद में गिरफ़्तार किए गए लोगों को जेलों में बंद न कर कुछ दूर जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया।

संदर्भ-  ग्वालियर गजेटियर, मध्य प्रदेश स्वाधीनता संग्राम ग्वालियर