एआई सुलझा रहा डाक्टरों की उलझनें, जटिल रोगों की हो रही पहचान,-मरीजों को घर बैठे मिल रहा परामर्श, अब रिपोर्ट भी मिल रही जल्द

नई दिल्ली। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) कई स्तरों पर डॉक्टरों की उलझनों को सुलझा रहा है। इस तकनीक के इस्तेमाल से रोग की तह तक जाने में लगने वाला समय कम हो गया है। साथ ही दूरदराज के मरीजों को चिकित्सीय परामर्श देने में भी सहूलियत मिली है। इस दौरान जटिल रोगों की समय पर पहचान कर पाना आसान हो गया है। एआई की मदद से जहां के तरफ घंटों की जांच रिपोर्ट कुछ समय में मिल रही है। वहीं चिकित्सक कहीं भी बैठे-बैठे मरीज को परामर्श दे रहे हैं।
विशेषज्ञों की माने तो एआई लाखों रिपोर्ट के आधार पर एक एल्गोरिथम तैयार करता है। उसी के आधार पर वह रिपोर्ट का मूल्यांकन कर अपना सुझाव देता है। डॉक्टर अपने अनुभव व कौशल से एआई आधारित रिपोर्ट को समझ सकते हैं। डॉक्टर को लगता है कि इसमें कुछ और सुधार की जरूरत है तो वह अपना सुझाव व रिपोर्ट का डाटा एआई को भेजा है। इसके आधार पर एआई उपकरण को अपग्रेड किया जा सकता है। एआई उपकरण से डॉक्टरों का समय बच रहा है। इससे उन लोगों को भी परामर्श मिल रहा है जो पहले इंतजार में थे।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. मंजरी त्रिपाठी का कहना है एआई आधारित उपकरण से मस्तिष्क विकार के पहचान आसान हो गया है। इनके पहचान उपकरण को हजारों रिपोर्ट का डाटा दिया गया है। इन सभी रिपोर्ट का एक आधार बनाया गया। इसी आधार पर एआई उपकरण मूल्यांकन करके डॉक्टर की मदद करता है। फिर भी डॉक्टर को लगता है कि रिपोर्ट गलत है तो वह अपने अनुभव पर जांच कर सकता है। एम्स के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. नीरजा भाटला का कहना है कि एआई की मदद से अस्पतालों में डॉक्टरों का बोझ कम हुआ है। साथ ही डॉक्टरों की सेवा की गुणवत्ता में सुधार आया है। डॉक्टरों की मदद के लिए पोटेबल पल्पोस्कोप को अपग्रेड किया जा रहा है। अब यह एआई आधारित होगा। इसमें सर्वाइकल कैंसर के लक्षण की फोटो अपलोड करते ही लक्षणों का मूल्यांकन हो जाएगा। इसके अलावा ओवरी कैंसर को लेकर भी काम चल रहा है। यह दोनों महिलाओं में होने वाले बड़े कैंसर हैं जिससे हर साल हजारों महिलाएं दम तोड़ देती हैं।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग में इलाज करा रहे 28 साल के युवक की पैथोलॉजी व रेडियोलॉजी रिपोर्ट का मूल्यांकन कर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) उपकरण ने ब्रेन ट्यूमर की पहचान मिनटों में कर दी। इसकी मदद से इलाज भी जल्द शुरू हो गया, जबकि इस तरह की रोग की पहचान सामान्य तरीके से करने पर विशेषज्ञों को घंटों समय लगता था। वहीं, नार्थ-ईस्ट के छोटे से गांव में सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती लक्षणों से जूझ रही 27 साल की महिला की पहचान उसके गांव में ही हो गई। उक्त गांव की आशा वर्कर ने महिला को हुई परेशानी के बाद एक फोटो खींचकर पोटेबल पल्पोस्कोप पर अपलोड किया। यह फोटो एम्स, दिल्ली के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के डॉक्टरों ने देखी और मूल्यांकन कर मरीज को सलाह दी।