मप्र के टोल नाकों की अवैध वसूली पर सुप्रीम कोर्ट लगाएगी लगाम, पूर्व विधायक की पिटीशन का हुआ असर

भोपाल । मध्य प्रदेश के टोल नाकों में अवैध रूप से वसूली की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के 2001 के फैसले में स्पष्ट रूप से आदेशित किया गया है, कि टोल रोड की लागत और ब्याज एवं अन्य खर्च जो भी हो। उसको जोड़कर उससे ज्यादा टोल वसूल नहीं किया जा सकता है। अर्थात् रोड की लागत, उस पर लगने वाले ब्याज एवं खर्च की भरपाई होने के बाद टोल वसूली को बंद कर देना चाहिए।
मध्य प्रदेश सरकार पहले जो टोल टैक्स वसूल करती थी। उसमें संपूर्ण लागत की वसूली होने के बाद टोल नाका बंद कर दिया जाता था। किंतु पिछले वर्षों में लागत ब्याज और मरम्मत इत्यादि से कई गुना ज्यादा वसूली होने के बाद भी,टोल टैक्स की वसूली अवैध रूप से की जा रही है। हर साल टोल की दरें भी बढ़ाई भी जा रही हैं। मध्य प्रदेश के टोल नाकों पर जिस तरीके से नाकों मे वसूली की जा रही है। उसमें नेताओंऔर अधिकारियों का संरक्षण है। यह कहा जा रहा है, कि विधायकों और मंत्रियों के राजनीतिक संरक्षण के अंतर्गत टोल के जो ठेके दिए गए हैं। सारे नियमों पर ताक में रखकर जनता से अवैध वसूली की जा रही है।

टोल नाकों पर असामाजिक तत्वों को बैठालकर अवैध वसूली किए जाने की शिकायतें लगातार प्राप्त होती है। अन्य प्रदेशों एवं अन्य जिलों के असामाजिक तत्व टोल नाकों पर देखे जा सकते हैं। विशेष रूप से भारी वाहनों से अडी डालकर भारी वसूली की जा रही है। ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन अवैध वसूली का लगातार विरोध कर रही है। लेकिन टोल नाकों पर राजनीतिक संरक्षण होने के कारण अवैध वसूली निरंतर चल रही है।

पारस सकलेचा की पिटीसन रंग लाई
पूर्व विधायक पारस सकलेचा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दायर की गई है। जिसमें जावरा-नयागांव फोरलेन पर 2020 तक 1461 करोड़ रुपए की वसूली होने के बाद भी टोल की वसूली की जा रही है। जबकि इस मार्ग की लागत 474 करोड रुपए थी। भोपाल-देवास फोरलेन पर भी लागत से 3 गुना ज्यादा 1132 करोड़ रुपए की वसूली हो चुकी है। यही हालत लेबड-जावरा रोड की लागत 605 करोड़ थी। इस टोल नाके पर 1325 करोड रुपए वसूल किए जा चुके हैं।
टोल नाकों पर हो रही अवैध वसूली का मामला विधानसभा में भी कई बार उठाया जा चुका है। लेकिन शासन स्तर पर इसका निराकरण नहीं किया गया। टोल ठेकेदारों से जो अनुबंध सड़क विकास निगम द्वारा किए जा रहे हैं। उसमें इंडियन टोल एक्ट 1851 तथा मंदसौर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन बनाम मध्यप्रदेश शासन की याचिका पर 2001 मै सुप्रीम कोर्ट के फैसले का,उल्लंघन करते हुए,मनमाने तरीके से अनुबंध की समय सीमा निर्धारित की गई है। जिसके कारण टोल नाके अब लूट के अड्डे बन गए हैं। जहां पर वाहन चालकों से जबरदस्ती वसूली की जा रही है।

इंडियन टोल एक्ट 1951
इंडियन टॉयलेट 1851 की धारा 8 के तहत टोल राज्य का राजस्व है। सड़क प्राकृतिक संसाधन है। जो जनता की संपत्ति है। सरकार,जनता के हक और अधिकार पर,मनचाहा टैक्स वसूल नहीं कर सकती है।अभी जो टोल टैक्स की वसूली की जा रही है।वह पूरी तरह से गैरकानूनी एवं अधिकारों का दुरुपयोग है।

सुप्रीम कोर्ट मे जवाब नहीं दे रही सरकार
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 2022 से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव और मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम के एमडी को नोटिस जारी कर, शासन को पक्ष रखने के लिए कई अवसर दिये। सरकार द्वारा कोई भी जवाब सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 24 अप्रैल के आदेश में सरकार को 7 दिन के अंदर जवाब देने अथवा एकतरफा आदेश पारित करने की बात कही है।
सरकार एक्ट का पालन करेगी, तो प्रदेश के कई टोल नाकों को बंद करना होगा। इनमें लागत से कई गुना वसूली कई साल पहले हो चुकी है। टोल नाकों पर ठेकेदार अवैध रूप से वसूली कर रहे है। मध्यप्रदेश शासन इस अवैध वसूली को एक तरह से संरक्षित कर रही है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अब कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है।एक राजनेता के रूप में पारस सकलेचा की यह लड़ाई, जनता के हक की लड़ाई है। जो लगातार लड़ने के बाद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है।