मकसद का पूर्ण अभाव आरोपी के पक्ष में जाता है, व्यक्ति को किया बरी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि मकसद की पूरी तरह से अनुपस्थिति का अलग ही रूप होता है और यह स्थिति निश्चित रूप से आरोपी के पक्ष मैं जाता है। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति को बरी कर दिया है। 
पीठ ने हालांकि कहा है कि ऐसा नहीं है मकसद के अभाव में अभियोजन के मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए। पीठ ने मई 2014 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के दोषसिद्धि के फैसले को खिलाफ दोषी द्वारा दायर अपील को खारिज करने के फैसले को दरकिनार कर दिया है। निचली अदालत ने दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ मकसद ही मामले में अहम कड़ी बन जाता है और इसकी अनुपस्थिति में अभियोजन के मामले को खारिज किया जाना चाहिए। लेकिन अगर मकसद पूर्ण रूप से गौण हो तो यह अलग रंग ले लेता है और ऐसी अनुपस्थिति निश्चित रूप से आरोपी के पक्ष में जाता है। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया।

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, वह व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका बेटा 13 जनवरी 1997 से लापता है। 17 जनवरी 1997 को एक तालाब से उसके बेटे का शव बरामद किया गया था। जिसके बाद मामले को हत्या में तब्दील कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता नंदू सिंह के बयान के आधार पर कुछ बरामदगी की भी बात कही गई थी।

शीर्ष अदालत के समक्ष अपीलकर्ता के वकील की ओर से दलील दी गई थी कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित इस मामले मेंअभियोजन पक्ष के पास हत्या के मकसद को लेकर कोई सामग्री नहीं थी। वकील ने तर्क दिया था कि अभियोजन पक्ष का मामला अंतिम बार देखे जाने के कथित साक्ष्य पर आधारित था।पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक ने अपने बयान में कहा था उसने पीड़ित को अपीलकर्ता के साथ जाते देखा था।

शीर्ष अदालत ने पाया कि मृतक के लापता होने के बाद भी अपीलकर्ता के खिलाफ संदेह नहीं किया गया था। उसका नाम मुकदमे में हत्या की धारा जु?ने के बाद आया था। शीर्ष अदालत ने कहा है कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध परिस्थितियां, एक पूरी श्रृंखला नहीं बनाती हैं।