मर्जी की शादी न होने पर महिला ने ग्वालियर के बीएसएफ के अधिकारी पर लगाए झूठे दहेज प्रताडऩा के आरोप

इंदौर सत्र न्यायालय ने महिला के भरण-पोषण के दावे को किया निरस्त

शादी के लिए पहले से ही सहमत नहीं थी महिला

लॉ एक्सपर्ट उवाच- आज पुरुष आयोग की सख्त जरूरत

  • ग्वालियर/इंदौर, बायलाइन24.कॉम टीम। इंदौर सत्र न्यायालय में एक महिला नीरू (परिवर्तित किया नाम) के द्वारा अपने पति महेश (परिवर्तित) बीएसएफ में अधिकारी के खिलाफ घरेलू हिंसा का दावा प्रस्तुत किया गया था। जिसमें न्यायालय के द्वारा अंतिम आदेश में यह फैसला देते हुए कहा गया की महिला पहले से ही शादी के लिए सहमत नहीं थी और शादी होने के बाद इसी वजह से अपने ससुराल से अलग होकर निवास करने लगी वा अपने पति व ससुराल जनों के विरुद्ध दहेज प्रताडऩा की शिकायत कर भरण पोषण की मांग करने लगी और यह कहते हुए न्यायालय के द्वारा महिला के भरण पोषण के दावे को निरस्त किया गया।

यह है पूरा प्रकरण
नीरू ने ग्वालियर शहर के महेश नामक व्यक्ति से वर्ष 2014 में शादी की थी व मात्र कुछ दिन साथ रहने के उपरांत ही वह अपने ससुराल को छोड़ शहर इंदौर चली गई। नीरू के जाने के बाद महेश ने संघर्ष समूह ग्वालियर से संपर्क किया वह अपनी व्यथा बताई कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी उसकी पत्नी साथ में रहने को नहीं आ रही है और झूठे केस में फंसाने की धमकी दे रही है।

संघर्ष समूह के द्वारा समस्त तथ्यों का अवलोकन करने के बाद मामले में संज्ञान लेते हुए महेश को संघर्ष समूह की ओर से विधिक सहायता प्रदान की गई जिसके चलते महेश के द्वारा पहले पत्नी को साथ में रखने का दावा कुटुंब न्यायालय ग्वालियर में प्रस्तुत किया गया। नीरू के द्वारा शहर ग्वालियर में आकर महिला थाना पड़ाव में दहेज प्रताडऩा की शिकायत अपने पति व ससुराल पक्ष के विरुद्ध दर्ज करवाई गई व साथ में रहने से इंकार किया गया।

इसके बाद नीरू के द्वारा शहर इंदौर में घरेलू हिंसा का एक दवा इंदौर न्यायालय में सास, ससुर, ननद, देवर, बड़ी ननद व बहनोई के विरुद्ध प्रस्तुत कर प्रतिमाह 50 हजार के भरण-पोषण की मांग की गई जिसमें महेश के द्वारा संघर्ष समूह के अभिभाषक के माध्यम से प्रकरण में पैरवी करवाई गई।

इंदौर न्यायालय के द्वारा अपने फैसले में इस तथ्य को प्रमाणित पाया की महिला पूर्व से ही शादी की इच्छुक नहीं थी एवं पति व ससुराल से दूर रहने की नियत से ही उसके द्वारा मुकदमें अपने पति व ससुरालजनों पर लगाए गए जिसके चलते महिला के भरण-पोषण के दावे को न्यायालय के द्वारा निरस्त किया गया व पति एवं ससुराल जन के ऊपर लगाये गए समस्त आरोप झूठे पाए गए।

संघर्ष समूह की वजह से हमे जेल नही जाना पड़ा
मैंने बड़े उम्मीद से अपने बड़े बेटे की शादी बिना दान-दहेजके की थी और सिर्फ पढ़ी-लिखी लड़की देखि ताकि मेरी बेटियों की तरह मेरी बहु भी परिवार में बराबरी पर रहे पर सब कुछ तहस नहस हो गया। आज छोटे बेटे की शादी करवाने से डरता हूं की पता नही कैसी लड़की मिले। संघर्ष समूह की वजह से हमें जेल नही जाना पड़ा वरना पूरा परिवार जेल में होता बिना अपराध के। मेरी तो सरकारी नौकरी थी।
(पीडि़त महेश के पिता)

शादी उसने अपने पापा के कहने पर की है
लड़की ने तो साफ-साफ पहले दिन ही कह दी थी की ये शादी उसने अपने पापा के कहने पर की है उसकी मर्जी नही थी और वो साथ रहना नही चाहती थी। मुझे कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था अपनी ट्रेनिंग से आकर। यदि संघर्ष समूह न होता तो पता नही मेरी ये नौकरी होती भी की नही।
(पीडि़त महेश)

वर्ष 2014 में दहेज के मामलों में तत्काल गिरफ्तारी होती थी जो अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रुक चुकी है। कई बेगुनाह इन कानूनों के दुरूपयोग का शिकार हुए है और कितनों की जिंदगियां खत्म हो गयी। एक अच्छी मंशा से बने कानून का भारी दुरूपयोग हो रहा है ऐसा स्वयं सुप्रीम कोर्ट में कई बार अपने अपने निर्णयों में कहा है ,लेकिन कानून निर्माताओ का इस और ध्यान ही नही गया। पुरुष आयोग की सख्त जरूरत है क्योकि देश की अर्थव्यवस्था या कर अदायगी में पुरुष का ही सबसे बड़ा योगदान है।
प्रद्युम्न सिंह
मुख्य कानूनी सलाहकार, संघर्ष समूह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *