खुलासा: आटा कारोबारी और भाजपा नेता पर एफआईआर कराने वाली युवती ने पुलिस को किया गुमराह

एफआईआर के समय दो थानों में जन्म वर्ष अलग-अलग लिखवाई
एक्सपर्ट ने कहा-आरोपी करा सकते हैं जांच, कई धाराओं के तहत सजा भी संभव

ग्वालियर। आटा कारोबारी और एक भाजपा नेता पर रेप की एफआईआर दर्ज कराने वाली पीडि़ता ने एफआईआर दर्ज कराते समय अलग-अलग एफआईआर में अपनी उम्र को लेकर पुलिस के साथ धोखाधड़ी की है। बायलाइन24.कॉम ने जब मनोज राठौड़ और धर्मवीर भदौरिया की एफआईआर की बारीकी से जांच की तो उसमें फरियादिया ने अपनी जन्म का वर्ष 2003 उल्लेखित किया है, इधर राठौड़ की एफआईआर में जन्म का वर्ष 2002 बताया है। युवती ने पुलिस विभाग को गुमराह कर धोखाधड़ी की है। पड़ताल में सामने आया है कि उक्त युवती ने मनोज राठौर पर 31 मई को एफआईआर दर्ज कराई है, इसी युवती ने 9 जून को यानि सिर्फ आठ दिन बाद धर्मवीर भदौरिया पर पास्को और रेप का मामला दर्ज कराया है। दोनों आरोपियों की एफआईआर में युवती ने उम्र को लेकर घालमेल किया है। इससे पूरा मामला संदिग्ध लग रहा है। इसी प्रकरण को लेकर बायलाइन24.कॉम ने लॉ एक्सपर्ट की राय जानी।

एक्सपर्ट व्यू

अगर ऐसा है तो एफआईआर लिखने वाले पुलिस कर्मी पर जांच हो सकती है। इसका कारण यह है कि फरियादी एफआईआर दर्ज कराते समय अपने जन्म का प्रमाण पत्र देता है। एक ही फरियादी ने दो थानों में रेप का मामला दर्ज कराया है तो यह जांच के दायरे में आ सकता है।
अरविंद श्रीवास्तव
लोकायुक्त डीपीओ,ग्वालियर

अगर एफआईआर लिखवाते समय फरियादिया ने अलग-अलग उम्र दशाई है तो आरोपी इसकी जांच कराने का आवेदन दे सकता है। मामला कोर्ट में आने पर वह अपने अधिवक्ता के माध्यम से बात रख सकता है।
संजय शुक्ला
वरिष्ठ अधिवक्ता

कानूनी रूप से एक व्यक्ति कि एक ही जन्म तिथि हो सकती है, जो उसके समस्त पहचान संबंधी दस्तावेजों पर अंकित होगी, यदि कोई ऐसा मामला हो जिसमें एक ही व्यक्ति के द्वारा दो अलग-अलग थानों में दर्ज अलग-अलग एफआईआर मेंं अलग-अलग जन्म दिनांक दर्शित की है तो ऐसी अवस्था में जन्मतिथि संबंधित जांच बनती है। जिस के संदर्भ में संबंधित व्यक्ति (आरोपी) पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन देकर जांच करवा सकते हैं। अलग-अलग जन्म वर्ष होने पर कूट रचना की संभावना प्रबल होती है जिसके चलते एफआईआर करवाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध 420, 467, 471 व 468 182 व 211 के तहत एफआईआर पंजीबद्ध कर कार्रवाई की जा सकती है दर्शित भिन्नता सही पाए जाने पर उपरोक्त व्यक्ति के विरुद्ध न्यायालय में चालान भी प्रस्तुत किया जा सकता है जिसमें 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। दोनों थानों की जांच संबंधी अपराध को किसी एक थाने को स्थानांतरित कर उसको जांच में दे सकते हैं। सामान्यता कानून का रुख फरियादी पक्ष के द्वारा दिए गए आवेदन पर निर्भर करती है और ऐसे में यदि किसी लोक अभियोजन अधिकारी को गलत सूचना या जानकारी दी जाए, जिसके चलते लगने वाली धाराओं में इजाफा यह स्वरूप में परिवर्तन आ जाए जिससे आरोपी को उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित किए जाने की स्थिति निर्मित हो तो ऐसी अवस्था में भारतीय दंड संहिता व दंड प्रक्रिया संहिता में कानूनी प्रावधान है , जिसके तहत फरियादी पक्ष के विरुद्ध कार्यवाही को निष्पादित किया जा सकता है ऐसा करने के लिए उससे संबंधित व्यक्ति व्यक्ति को तथ्यों को संबंधित अधिकारी विभाग या न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसके उपरांत कार्यवाही का निष्पादन होता है उक्त कार्यवाही स्वयं संबंधित अधिकारी के द्वारा भी निष्पादित की जा सकती है
प्रधुम्न सिंह
अधिवक्ता, ग्वालियर

 

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