GWALIOR COURT NRWS: नाबालिग के साथ दुष्कर्म के आरोपी को 20 वर्ष का कारावास, कोर्ट ने फैसले में किया उल्लेख-विवेचक टीआई उपेन्द्र छारी ने साक्ष्य संकलित नहीं किये

ग्वालियर। मप्र के ग्वालियर जिला सत्र न्यायालय की एक महत्वपूर्ण अदालत ने नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म के मामले में मुख्य परीक्षण के बाद आरोपी को 20 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही आरोपी पर अर्थदंड भी कारित किया है। इस पूरे प्रकरण में खास बात यह रही कि आरोपी ने पीड़िता द्वारा न्यायालय में मुख्य परीक्षण के दौरान अभियोजन के पक्ष में कथन दिए परन्तु आरोपी द्वारा अभियोक्त्री के प्रतिपरीक्षण के पूर्व बहला-फुसलाकर विवाह कर लिया और उसे विनओवर कर लिया। लेकिन अदालत ने अभियोजन के तर्कों से सहमत होकर आरोपी को सजा सुनाई। ( बिन ओवर का अर्थ है राजी करना, मना लेना, अपने पक्ष में करना या जीत लेना। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति को किसी बात के लिए मनाने में सफल होना, उनके विरोध को कम करने के बाद उनकी सहमति प्राप्त करना, या किसी मामले में उनकी सहानुभूति या समर्थन हासिल करना।)

यह है प्रकरण-
अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करने वाले विशेष लोक अभियोजक आशीष राठौर ने बताया कि पीड़िता आयु-लगभग 17 वर्ष के घर के पास आरोपी निवास करता था। आवेदन पत्र 6 अगस्त 2024 से लगभग 2 वर्ष पूर्व लगभग 21 अक्टूबर 2022 को आरोपी सुमित परिहार पुत्र विनोद परिहार आयु 23 वर्ष निवासी माधवानी वाली गली, करौली माता, महलगाँव ने पीड़िता को अपने झांसे में लेकर दोस्त्ी की और फिर उसे नाश्ता कराने के लिए गोविंदपुरी स्थित द स्काई होटल में ले गया जहां आरोपी ने उसे कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर पिला दी, उसी स्थिति में उसके साथ बलात्कार किया।

वीडियो बनाकर लगातार दुष्कर्म-
आरोपी सुमित नाबालिग को अक्सर विभिन्न होटल में ले जाने लगा और उसे विवाह का झांसा देकर उसके साथ गंदा काम करने लगा। उसने सुमित को बताया कि वह नाबालिग है तो सुमित उससे कहता था कि मैं… तुमसे प्यार करता हूं और तुमसे विवाह करूंगा। सुमित ने उसके कुछ आपत्तिजनक वीडियो भी बना लिए थे जिसके दम पर वह उसे ब्लैकमेल करता था। आवेदन पत्र प्रस्तुति दिनांक से 2-3 माह पूर्व सुमित ने उसके साथ आखिरी बार संबंध स्थापित किए थे।

पीड़िता ने विवि थाने में मामला दर्ज कराया-
पीड़िता ने थाना विश्वविद्यालय में उक्त घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट लेख कराई जो थाना विश्वविद्यालय के अपराध कमांक 282/2024 अंतर्गत धारा 376 (3), 376 (2) (एन) भा.दं.सं. एवं धारा-3/4, 5/6 पॉक्सो अधिनियम 2012 के अधीन आरोपी सुमित के विरूद्ध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया संपूर्ण विवेचना समय सीमा में पूर्ण नहीं की गई जिससे अभियुक्त को डिफॉल्ट बैल का लाभ मिला। तरूण सिंह, अनन्यत: विशेष न्यायाधीश, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम एवं एकादशम जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट द्वारा आरोपी को 5 वर्ष के कारावास व 10 हजार के अर्थदंड 5 (एल)/6 पॉक्सो एक्ट, के अधीन 20 वर्ष के कारावास एवं 10 हजार के अर्थदंड से दंडित किया गया।

टीआई उपेन्द्र छारी की घोर लापरवाही-
अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूरे प्रकरण में विवेचक उपेन्द्र छारी (उस समय पदस्थ) की घोर लापरवाही स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। टीआई ने अपने प्रतिपरीक्षण में यह स्वीकार किया है कि उसने द स्काई होटल में रूकने वालों की प्रविष्टि से संबंधित रजिस्टर को जप्त नहीं किया। स्वत: प्रकट किया कि होटल बंद होने के कारण रजिस्टर को जप्त नहीं किया जा सका। साक्षी ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि उसने होटल के मालिक को रजिस्टर प्रस्तुत करने के लिए कोई भी सूचना पत्र नहीं दिया और होटल से संबंधित जानकारी भी प्राप्त नहीं की। उसको अभियोक्त्री द्वारा घटनास्थल बताए जाने के उपरांत भी उसने घटना के संदर्भ में साक्ष्य संकलित नहीं की परंतु ऐसे विवेचक की त्रुटि से अभियोजन के मामले को दूषित होना नहीं कहा जा सकता है।