महाकुंभ:मध्यप्रदेश के एकात्म धाम मंडपम् में 2 दिवसीय शास्त्रार्थ सभा शुरू,देशभर से आए 15 विद्वान संस्कृत में कर रहे हैं शास्त्रार्थ

प्रयागराज, महाकुंभ। सनातन संस्कृति में युगों युगों से संवाद की परंपरा रही है, केवल संवाद ही नहीं तर्क आधारित शास्त्रार्थ की समृद्ध परंपरा रही है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने कहा था कि हमारे अनुभव से प्राप्त ज्ञान को जब तर्कों के माध्यम से समाज के सामने ले जाएंगे तभी उसकी प्रतिष्ठा होगी। सनातन परंपरा में ऋषियों को भी अपनी बात तर्कों से सिद्ध करनी पड़ती थी । युगों से चली आ रही भारत की गौरवशाली एवं सुदीर्घ परंपरा का निर्वहन करते हुए प्रयागराज महाकुंभ में लगे एकात्म धाम शिविर में 25 और 26 जनवरी को शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया जा रहा है। सभा का आयोजन आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा किया है और इसकी अध्यक्षता श्रृंगेरी शंकराचार्य कर रहे हैं।

*100 शंकरदूतों ने गाया आदि शंकराचार्य द्वारा रचित गुर्वष्टकम्*

इस शास्त्रार्थ सभा की अध्यक्षता दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी श्री शारदापीठम् श्रीमद् जगतगुरु शंकराचार्य श्री श्री विधुशेखर भारती कर रहे हैं। यह पहला मौका है जब वह किसी महाकुंभ मेले में शामिल हुए हैं। शास्त्रार्थ सभा का शुभारंभ 25 जनवरी को सुबह 10 बजे मंगलाचरण के साथ हुआ, इसके बाद करीब 100 से अधिक शंकरदूतों ने सन्नीधानम् के समक्ष सुप्रसिद्ध गायिका माधवी मधुकर झा के साथ आचार्य शंकर द्वारा रचित गुर्वष्टकम् स्तोत्र का गायन किया। गुरु अष्टकम के बाद श्रृंगेरी शंकराचार्य विधुशेखर भारती जी ने देशभर से आए विद्वानों को शास्त्रार्थ के लिए मंच पर बुलाया। शास्त्रार्थ के लिए देशभर के मूर्धन्य विद्वानों को निमंत्रण दिया गया।

*2 दिन तक काशी, केरल सहित देशभर के 15 विद्वान 12 घंटे करेंगे शास्त्रार्थ*

शास्त्रार्थ सभा में संवाद और शास्त्रार्थ के लिए देशभर के 15 विद्वान शामिल हुए। शास्त्रार्थ का आरंभ काशी से आए प्रो राजाराम शुक्ल के संबोधन से हुई । उन्होंने कहा कि शास्त्रार्थ में पूर्व और उत्तर दो पक्ष होते हैं। सबसे पहले शास्त्रार्थ का एक विषय तय किया जाता है। एक पक्ष उस विषय पर संशय करना शुरू करता है। उसके बाद दूसरा पक्ष विषय की बात को सिद्ध करने के लिए तर्क देता है। सारा शास्त्रार्थ शास्त्रों के सम्मत होता है। सारे तर्क सुनने के बाद शास्त्रार्थ सभा के अध्यक्ष श्रृंगेरी शंकराचार्य निर्णय सुनाएंगे।


अपनी बात कहते हुए प्रो राजाराम ने कहा कि इसी प्रयाग के संगम किनारे आदि शंकराचार्य ने कुमारिल भट्ट को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया था बाद में कुमारिल के आग्रह पर उन्होंने उनके शिष्य मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया किया, बाद में मंडन मिश्र ने गुरू के रूप में स्वीकार किया। आज इतने सालों बाद फिर यह सुखद संयोग आया है, इस शास्त्रार्थ की शंकराचार्य की अध्यक्षता प्राप्त हुई है।

सभा में प्रो राजाराम शुक्ल (वाराणसी ),केएस नम्बूद्री (चैन्नई), श्रीहरि शिवराम (तिरुपति),गणेश ईश्वर भट्ट,राघवेन्द आरोल्ली (श्रृंगेरी), कार्तिक शर्मा (केरल),वासुदेवन नम्बूद्री ,दत्तानुभव टेंगसे (चैन्नई), वाचस्पति शास्त्री (धारवाड़ ),गुरू बिल्वेश शर्मा (वाराणसी ),पुष्कर देव पुजारी (केरल )अंजनेय शर्मा, सुब्रमण्यम शास्त्री (हैदराबाद ) एवं तुलसी कुमार जोशी (वाराणसी) सम्मिलित हुए।

*पहले दिन तीन विषयों पर शास्त्रार्थ*
सभा के पहले दिन 3 विषयों पर तर्क वितर्क हुए। दोनों पक्षों के विद्वानों ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए कई तर्क दिए। सुबह के पहले सत्र में ब्रह्मसूत्र के सूत्र ‘आकाशस्तल्लिङ्गात्‘ और दूसरे सत्र में शास्त्रार्थ के द्वितीय सत्र में युक्तिपूर्वक न्याय दर्शन की शैली में भेद एवं अभेद विषय का उपस्थापन किया गया । इसके बाद आदि शंकर और मंडन मिश्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ के विषय पर पुनः शास्त्रार्थ किया गया।
‘पुराणों में अद्वैत‘ विषय पर आञ्जनेय शर्मा ने कहा कि पुराणों में भी शिव को ही अद्वैत रूप माना गया है, भागवत पुराण के प्रथम श्लोक का उल्लेख करते हुए अद्वैत का वर्णन किया। आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में पुराणों को भी उद्धृत किया।