‘मंत्री’ बनने का सपना कब होगा पूरा,राजनीतिक नियुक्ति की आस में निराश हो रहे चुनाव में मेहनत करने वाले नेता

भोपाल। मप्र में सरकार बने 13 महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों की आस लगाए बैठे भाजपा नेताओं की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद नेताओं को दर्जा मंत्री बनाने का सपना दिखाया गया। इसके लिए नेताओं ने सत्ता, संगठन और संघ की परिक्रमा करनी शुरू कर दी। लेकिन ‘मंत्री’ बनने का सपना अभी भी अधर में है।
प्रदेश में निगम मंडलों में नेताओं की नियुक्तियों का इंतजार थोड़ा और लंबा हो गया है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही निगम-मंडलों में नेताओं को एडजस्ट किया जाएगा। प्रदेश भाजपा के कई दिग्गज निगम-मंडलों में पद की आस लगा रहे है, लेकिन नियुक्तियां नहीं हो पाई। गौरतलब है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कई नेताओं के टिकट काटे गए थे। इनमें से कुछ नेताओं को पुनर्वास का पार्टी ने आश्वासन दिया था। संभावना है कि चुनाव बाद सरकार ऐसे नेताओं को मंत्री का दर्जा दे सकती है। भाजपा इस बात पर भी विचार कर रही है कि जिन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है, उन्हें भी निगम-मंडल में समायोजित किया जा सके।
डंडा-झंडा उठाने वाले नेताओं को पद का इंतजार
डॉ. मोहन यादव ने जब से सत्ता की कमान संभाली है तब से ही उन पर संगठन और कार्यकर्ताओं का दबाव है कि निगम मंडलों में नियुक्तियां की जाएं। ताकि वर्षो से पार्टी का डंडा-झंडा उठाकर घूम रहे कार्यकर्ताओं को अपनी मेहनत का फल मिले, लेकिन अभी तक निगम मंडलों की नियुक्तियों को टाला जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि निगम मंडलों की नियुक्ति को लेकर नेताओं की लिस्ट तैयार हो गई है, लेकिन यह नियुक्तियां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद होगी। मंत्री दर्जा के पद कम होने से इस बार भाजपा सरकार पार्टी कार्यकर्ताओं का सरकार में समायोजन करने की तैयारी कर रही है। पंचायत से लेकर जिला और राज्य स्तर तक दीनदयाल समिति का गठन होना है, इसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाएगा।
पार्टी पर दबाव बना रहे नेता
प्रदेश में नई सरकार के गठन के एक साल बीतनें के बाद अब निगम, मंडल और बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां पाने के इच्छुक भाजपा नेताओं ने पार्टी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। एक वर्ष में कुछ ही लोगों को राजनीतिक नियुक्तियां मिली हैं। बाकी नेता उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जल्द ही उनका दर्जा मंत्री बनने का सपना पूरा हो जाएगा। बता दें, पहले लोकसभा चुनाव के कारण नियुक्तियों का मामला टलता रहा। अब संगठन चुनाव के बाद निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियां होने की संभावना बताई जा रही है। इसमें उन लोगों को प्राथमिकता मिलेगी, जिन्हें विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देकर मंत्री का दर्जा दिए जाने का आश्वासन दिया गया था। इसके अलावा कांग्रेस से आए कुछ नेताओं की ताजपोशी भी निगम-मंडलों में हो • सकती है। पिछली शिवराज सरकार में भाजपा के उन संभागीय संगठन मंत्रियों को भी निगम-मंडल में तैनात किया गया था, जिन्हें पार्टी ने विधानसभा चुनाव के बाद हटा दिया था। इनमें से कुछ भाजपा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता भी हैं। अब तय किया गया है कि उन सभी पूर्व संगठन मंत्रियों को एक बार फिर मंत्री दर्जा नहीं दिया जाएगा।
कांग्रेस से आए नेताओं को भी अवसर
पिछले डेढ़ साल में कांग्रेस के भी कई नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है, उनमें से कुछ को पार्टी ने मंत्री दर्जा देने का आश्वासन दिया था, अब उनकी भी आस टूटने लगी है। कांग्रेस से सुरेश पचौरी सहित तीन पूर्व सांसदों ने भाजपा की शरण ली थी। इसी तरह कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में भाजपा ने दीपक सक्सेना को तोडक़र झटका दिया था। सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने सुरेश पचौरी को बेहतर पुनर्वास का वादा किया था। प्रदेशभर के नेता निगमों-मंडलों में पद पाने की जोड़-तोड़ में लगे हैं। मंडलों में सबसे ज्यादा विधानसभा चुनाव हारे केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक आस लगाकर बैठे है। सिंधिया समर्थकों में पूर्व मंत्री और सिंधिया की चहेती मानी जाने वाली इमरती देवी, पूर्व मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया और राजवर्धन सिंह दत्तीगांव जैसे नाम शामिल है। ये तीनों नेता सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाते है। चुनाव हारने के बाद से तीनों नेता प्रदेश की राजनीति से गायब भी दिखाई दे रहे है। शिवराज सरकार में भाजपा के पूर्व संभागीय संगठन मंत्रियों को निगम-मंडल में पदस्थ कार मंत्री दर्जा दिया गया था, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद इन नेताओं को हटा दिया था। पार्टी सूत्रों ने बताया कि वे सभी पूर्व संभागीय संगठन मंत्री एक बार और निगम में तैनात करने के लिए दबाव बना रहे हैं।
50 से ज्यादा मंडल-निगमों में होना हैं नियुक्तियां
प्रदेशभर में ऐसे कई नेता है जो निगम मंडलों की जुगाड़ में हैं, एक तो वो जिन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया और दूसरे वे जो कांग्रेस से आकर भाजपा में रचे-बसे हैं और पार्टी का काम कर रहे हैं। कई नेता ऐसे हैं जिन्हें संगठन का दायित्व दे दिया गया है, वे भी कोशिश में हैं कि कहीं एडजस्ट हो जाएं। अपने समर्थकों को एडजस्ट करवाने के लिए मंत्री और विधायकों ने भी लॉबिंग करना शुरू कर दिया है। प्रदेश में 50 से ज्यादा निगम-मंडल-बोर्ड ऐसे हैं जहां नियुक्तियां होनी हैं। इन पदों पर नियुक्तियों के लिए कई बार कवायदें चलीं, मगर वह अंजाम तक नहीं पहुंच पाईं। इसका एक कारण नेताओं द्वारा समर्थकों की नियुक्तियां कराने का दबाव बनाना भी है। कई बड़े नेता करीबियों को जिम्मेदारियां दिलाना चाहते हैं। फिलहाल मुख्यमंत्री मोहन यादव ने संगठन चुनाव पूरा होने के बाद नियुक्तियां करने का फैसला लिया है। इसके बाद ही मंडलों में नियुक्तियां होने की संभावना है।