
अपराधों के नियंत्रण में श्योपुर-रायसेन समेत 10 एसपी फिसड्डी, मैदानी अफसरों की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं DGP
भोपाल। मप्र में सुशासन के लिए सरकार का फोकस अपराधों के नियंत्रण पर है। इसके लिए सरकार ने मैदानी अफसरों को फ्री-हैंड कर दिया है। लेकिन उसके बाद भी प्रदेश के कई जिलों में कानून-व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है। इसको लेकर गतदिनों प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कैलाश ने सभी 55 जिलों की समीक्षा की। समीक्षा में यह तथ्य सामने आया कि अपराधों के नियंत्रण में प्रदेश के 10 जिलों के एसपी फिसड्डी साबित हुए हैं।
जानकारी के अनुसार, प्रदेश पुलिस के मुखिया कैलाश मकवाना जिला स्तर पर होने वाली पुलिस की कार्यप्रणाली से खासे खफा है। ऐसा इसलिए कि दस जिलों के एसपी काम में फिसड्डी पाए गए है। छतरपुर, निवाड़ी, कटनी, मऊगंज, मैहर, मंडला, सिवनी, छिदवाड़ा, श्योपुर और रायसेन जिलों के एसपी को पर्यवेक्षण में शून्य पाया गया है। डीजीपी ने मैदानी अफसरों के काम करने के तौर-तरीकों को लेकर दो टूक शब्दों में कहा कि यह कार्यप्रणाली आपत्तिजनक है। उन्होंने सभी एसपी से कहा कि आपको अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने की जरूरत है और पुलिसिंग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। डीजीपी मकवाणा ने यह नाराजगी दो दिन पहले गंभीर अपराधों की समीक्षा के दौरान जाहिर की है।
गंभीर अपराधों की संख्या बढ़ी
पुलिस विभाग की समीक्षा में यह तथ्य सामने आया है कि प्रदेश में गंभीर अपराधों की संख्या बढ़ी है, जबिक अपराधियों की धर-पकड़ में कमी आई है। डीजीपी इसकी ऑनलाइन समीक्षा कर रहे थे। अफसरों की मानें तो डीजीपी का मानना है कि अगर एसपी अपने जिले में गंभीर अपराधों का बेहतर पर्यवेक्षण करें, तो अपराधियों पर लगाम लगेगी। अपराधियों पर लगाम लगने से गंभीर अपराधों में निश्चित तौर पर कमी आएगी। इससे थाना स्तर पर एसपी की पकड़ मजबूत होगी और कानून व्यवस्था की स्थिति भी बेहतर होगी। डीजीपी ने जिन दस जिलों के एसपी को कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, उनमें सिर्फ छिंदवाड़ा एसपी अपवाद है। ऐसा इसलिए कि उन्हें जिले में गए अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, जबकि अन्य जिलों के एसपी का कार्यकाल छह महीने से ज्यादा का है। बावजूद इसके पर्यवेक्षण नहीं कर रहे हैं। इसका मतलब अपराधों पर उनकी पकड़ नहीं है, जो उनकी व्यावसायिक दक्षता पर सवाल खड़े करता है।
जुआ और सट्टा आउट ऑफ कंट्रोल
प्रदेश में जिलों की समीक्षा में यह बात सामने आई है कि जुआ और सट्टा आउट ऑफ कंट्रोल है। हर जिले में जुआ और सट्टा चल रहा है। डीजीपी ने सबसे ज्यादा नाराजगी रायसेन एसपी की कार्यप्रणाली पर जाहिर की है। रायसेन में जुआ और सट्टा का बड़ा कारोबार चल रहा है। डीजीपी को वहां पर जुआ और सट्टा चलने की पुख्ता जानकारी लगी है। उसके बाद उन्होंने एसपी की कार्यप्रणाली और पर्यवेक्षण के तौर तरीके पर पर नाराजगी जताते हुए कहा कि आपके जिले में जुआ और सट्टा का इतना बड़ा कारोबार चल रहा है और आपको इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने जोर देकर पूछा कि आपको इस बारे में जानकारी क्यों नहीं है। सूत्र बताते हैं कि जुआ सट्टा का कारोबार कुछ एसडीओपी के स्तर पर हो रहा है। बताते हैं कि एक एसडीओपी ने तो थाना प्रभारी के मना करने के बावजूद यह कारोबार शुरू कराया है। इसको लेकर एसडीओपी ने बाकायदा थाना प्रभारी पर दबाव भी बनाया है।सेवानिवृत्त आईपीएस अफसरों की माने तो पर्यवेक्षण में अगर एसपी शून्य पाए गए हैं, तो उनकी काबिलियत और कार्यदक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगता है। ऐसे में उन्हें जिले में रहने का हक नहीं है। ऐसा इसलिए कि राजपत्रित अधिकारियों का काम सिर्फ और सिर्फ पर्यवेक्षण करने का होता है। खासतौर पर एसपी की तो यह पहली जिम्मेदारी है, क्योंकि उन्हें किसी अपराध की विवेचना नहीं करनी होती है। सामान्य तौर पर जब एसपी किसी भी घटना के घटित होने पर मौके पर जाते हैं और मौका मुआयना करते हैं, तब वे पर्यवेक्षण टीप लिखते हैं। इससे अपराध की जांच की दिशा तय होती है। अगर एसपी स्तर के अधिकारी पर्यवेक्षण में शून्य पाए गए है, तो इसका सीधा मतलब है कि वे अपराध घटित होने पर मौके पर नहीं जाते हैं। मौके पर नहीं जाते है, इसलिए बेहतर पर्यवेक्षण नहीं कर पाते हैं। इससे अपराधों की विवेचना की गुणवत्ता में कमी आती है, क्योंकि कमजोर और लचर विवेचना का फायदा अपराधियों को अदालत में मिलता है।
अपराधों में आई कमी
मप्र में हत्या, लूट, चोरी और रेप की खबरों के बीच पुलिस मुख्यालय ने प्रदेश में होने वाले अपराधों की समीक्षा की है। अलग-अलग प्रकार के गंभीर अपराध महिलाओं के खिलाफ अपराध, बच्चों के खिलाफ अपराध, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों में भी कमी आई है। मप्र पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक गैंग रेप के प्रकरणों में 19.01 प्रतिशत की कमी आई है। जबकी, क्रूरता और दहेज प्रताडऩा के अपराधों में 3.23 प्रतिशत की कमी आई है। छेड़छाड़ के अपराधों के प्रकरणों में 9.85 प्रतिशत की कमी पाई गई और महिलाओं पर होने वाले कुल अपराधों में 7.91 प्रतिशत की कमी आई है। संपत्ति संबंधी अपराधों की समीक्षा में पाया गया कि लूट के अपराधों में 23.22 प्रतिशत की कमी आई है, नकबजनी में 9.53 प्रतिशत की कमी आई है,इसी प्रकार सामान्य चोरी में 6.51 प्रतिशत की कमी देखी गई। पुलिस इसे महिलाओं और बच्चों की सहायता, सुरक्षा के लिए चलाये गये अलग अलग कार्यक्रम जैसे, ऊर्जा महिला डेस्क, आशा, मुस्कान, मैं हूं अभिमन्यु, जैसे अभियान की उपलब्धि बता रही है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के विरूद्ध घटित गंभीर अपराधों में पिछले साल की तुलना में 22.04 प्रतिशत की कमी आई है, जो अपराध वर्ष 2023 में (01 जनवरी से 31 जुलाई) 4033 थे वह वर्ष 2024 में घटकर 3144 हो गये है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति/जनजाति के हॉटस्पॉट में भी कमी आई है।