सिंधिया समर्थकों को नहीं मिलेगी जिलाध्यक्ष की कमान, भाजपा का वरिष्ठ नेतृत्व पक्ष में नहीं

बाहरियों’ को नहीं मिलेगी जिले की कमान!
– कांग्रेस से नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देने से परहेज
भोपाल। मंडल अध्यक्षों के चुनाव के बाद अब भाजपा जिलाध्यक्षों के चुनाव में भी कई तरह के विवाद सामने आ रहे हैं। वर्तमान समय में जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया चल रही है। इसमें यह देखने को मिल रहा है कि मूल भाजपाई कांग्रेस से आए नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाने के पक्ष में नहीं हैं। इस कारण कई जिलों में समन्वय नहीं बन पा रहा है।
संगठन चुनाव में भाजपा का दिशा-निर्देश है कि जिलों के नेता समन्वय बनाकर जिलाध्यक्ष का चुनाव करें। लेकिन प्रदेश भाजपा में सत्ता की राह आसान करने वालों (कांग्रेस से आए नेताओं)के लिए संगठन की डगर कठिन होती जा रही है। चाहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हों या बाद में कांग्रेस छोडकऱ भाजपा में शामिल हुए नेता, पार्टी के जिलाध्यक्ष पद पर उनकी नियुक्ति से पार्टी परहेज कर रही है। इसकी बड़ी वजह पुराने और स्थानीय कार्यकर्ताओं में बढ़ती नाराजगी है। ऐसी नाराजगी विशेष रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अधिक है।
भाजपा के पुराने नेताओं में नाराजगी
पार्टी नए-पुराने कार्यकर्ताओं के साथ समरसता का दावा करती है लेकिन संगठन चुनाव में अलग ही तस्वीर सामने आ रही है। सरकार बनाने की गरज में लिए गए फैसलों पर मौन रहने वाले नेता और समर्थक अब संगठन में नियुक्ति पर किसी दलील को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। हेलीकाप्टर लैंडिंग वाले कुछ चेहरों के विधायक बन जाने से भी भाजपा के पुराने नेताओं में नाराजगी बढऩे लगी है। उनका तर्क है कि जो विधायक बन गया, उसी के करीबियों को मौका मिलता रहा तो भाजपा को इस मुकाम तक लाने वालों के साथ न्याय कैसे हो सकेगा। ऐसे नेताओं के मामले में तो कुछ जगह अजीबोगरीब स्थिति बन गई है। जैसे छिंदवाड़ा जिले में पहले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बड़े नेता मनमोहन शाह बट्टी की बेटी मोनिका बट्टी को भाजपा की सदस्यता दिलाकर अमरवाड़ा विधानसभा सीट से वर्ष 2023 में प्रत्याशी बनाया गया। यह सीट भाजपा हार गई। फिर वहा के कांग्रेस विधायक कमलेश शाह को भाजपा में शामिल कर उपचुनाव में प्रत्याशी बना दिया। इससे स्थानीय नेताओं में अंदर ही अंदर नाराजगी है। यही स्थिति विजयपुर विधानसभा क्षेत्र में बनी थी। कांग्रेस से आए रामनिवास रावत के उपचुनाव में हार जाने के बाद पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं का दबाव बढ़ गया है। उधर, सागर जिले में वर्चस्व की छिड़ी जंग में संगठन को निर्णय लेने में पसीना आ रहा है। खुरई से विधायक और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इसके अलावा बीते विधानसभा सत्र में उन्होंने स्कूल शिक्षा विभाग से संबंधित सवाल लगाकर भी सरकार को घेर लिया था। इतना ही नहीं, सागर गौरव दिवस के कार्यक्रम में भी उन्होंने मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की उपस्थिति में मंच पर नाराजगी जाहिर की थी। भूपेंद्र सिंह के तेवर देखते हुए सागर में भी जिला अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनने में काफी मुश्किल आ रही है। भूपेंद्र सिंह कांग्रेस से आए नेताओं को तरजीह दिए जाने का विरोध करते रहे हैं। उनका तर्क है कि यही वे लोग हैं, जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं का भारी उत्पीडऩ किया था। इन्हें किसी भी कीमत पर संगठन में स्वीकार नहीं किया जा सकता। भूपेंद्र सिंह की तल्खी इस कदर बढ़ गई कि वह प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को भी निशाने पर ले चुके हैं।