
स्मृति शेष:ग्वालियर की पत्रकारिता के प्रभात का हुआ अस्त: अभी बीज हो तो अंकुरित हो जाओगे, ध्येय नहीं भूलना
तुम अभी बीज हो….धीरे-धीरे अंकुरित हो जाओगे। बस पत्रकारिता का ध्येय नहीं भूलना। यह वाक्य मुझे डेढ़ दशक बाद भी शत:अक्षरत याद हैं। उन दिनों मैं… स्वदेश अखबार में पत्रकारिता कर रहा था। यहां एक साहित्यिक आयोजन में शिरकत करने आए थे प्रभात झा। उनको अपना परिचय दिया तो उन्होंने कंधे पर हाथ रखते हुए यही शब्द कहे थे।
ग्वालियर की पत्रकारिता के पुरोधा रहे ‘प्रभात प्रभात झा ऐसे ही नहीं बने। जब वे ग्वालियर आए तो संघर्ष की दीवारों को बुन-बुनकर और चुनकर आगे बढ़े। सही मायने में ‘प्रभात की नियति ही संघर्ष करने की थी और उनके संघर्ष ही ने उन्हें मंजिल तक पहुंचाया। संघर्ष बड़ा कठोर शब्द है। प्रभात झा ने ‘ईश्वर निवास में जाने से पहले कितना संघर्ष किया होगा। यह उनकी आत्मा ने आत्मसात किया है, वे लंबे समय से बीमार थे। पिछले कुछ समय से हरियाणा गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने आज सुबह 5 बजे मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 67 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार बिहार सीतामढ़ी के कोरियाही में हो सकता है,ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है।
बहरहाल हम संघर्ष की बात कर रहे हैं। प्रभात झा भाजपा के कुशल कार्यकर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे थे तो दूसरी ओर वे स्वदेश में भी पत्रकारिता कर रहे थे। रामजन्म भूमि आंदोलन में उन्हें जिम्मेदारी मिली कि अयोध्या में कवरेज के लिए जाना है। वे अयोध्या गए और बाबरी ढांचा टूटने के फोटो और कंटेंट जमा किए। उस दौरान देश में तनाव का माहौल था। वे मोटरसाइकल से ग्वालियर आए और पूरा कवरेज दिया। अखबार की ‘बोलती तस्वीरेंÓ जब ग्वालियर के लोगों ने सुबह देखी तो प्रभात झा इतिहास रच चुके थे।
वरिष्ट पत्रकार प्रवीण दुबे ने चर्चा के दौरान बताया कि प्रभात झा संघर्ष का दूसरा नाम थे। उन्होंने कुशल संगठन की भूमिका में न दिन देखा और न रात। पार्टी ने उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी उसमें उन्होंने संघर्ष किया और अपना बेहतर दिया। श्री दुबे ने कहा कि उनके जैसे पत्रकार, वक्ता और राजनेता आज के समय में फिर से मिलना असंभव ही लगता है। प्रभात झा की कलम बेहद स्पष्ट और धारदार थी। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। मैं जितनी बार भी उनसे मिला, वे अपने सम्पे्रषण में बेहद स्पष्ट थे। नवोदित पत्रकारों के लिए वह नित्य पुस्तकें पढ़ने की बात कहते थे।
वे पत्रकारिता जगत के शिल्पकार थे उन्होंने पत्रकारिता और पत्रकारों के हित में अपनी सोच और आवाज को बुलंद किया। स्वच्छ छवि,निर्भीक पत्रकारिता पत्रकार साथियों के लिए समर्पण का भाव और उनके सरल स्वभाव के साथ उनकी लेखनी के कायल बौद्धिक,विद्वान, चिंतक और बड़े-बड़े रणनीतिकारों के अलावा शासन-सत्ता में रहने वाले हों या विपक्ष में सभी थे।
उन्हें अंतिम प्रणाम।
लेखक राजेश शुक्ला