जुलाई 1857 में वीर तात्या टोपे भेष बदलकर आए थे ग्वालियर, यहां से ले गई सेना के बल पर अंग्रेजों से छीना था कानपुर

 

 

-ग्वालियर राज्य, सिंधिया वंश और आज़ादी की लड़ाई-

राजेश शुक्ला। ग्वालियर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अग्रणी रहा है। यह हम सभी जानते हैं कि ग्वालियर की जनता और सेना ने1957 के स्वतंत्रता संग्राम में पूरा सहयोग दिया था ।एक सत्य यह भी है कि दीवान दिनकर राव राजवाड़े अपने किशोर महाराज जीवाजीराव को लेकर अंग्रेजों की शरण में आगरा चले गए थे और दीवान ने अंग्रेजों को साथ दिया। यद्यपि कुछ दशकों से जो तथ्य सामने निकल कर आए हैं उसमें यह भी प्रकट होता है की रानी झांसी ने जो पत्र सहायता के लिये राजा मदन सिंह के लिए लिखा था वह ग्वालियर के संग्रहालय में आज भी मौजूद है। वहीं नाना साहब को उनके अज्ञातवास के दिनों में पुनः सेना का गठन करने के लिए तत्कालीन महाराजा सिंधिया ने लाखों रुपए वाली धनराशि प्रदान की थी। इसके प्रमाण भी दिल्ली के पुरातत्व संग्रहालय से मिलते हैं। यह कुछ वर्ष पूर्व एक पत्रिका में प्रकाशित पत्र से भी प्रमाणित होता है।

इतिहासकारों के मुताबिक आजादी के संघर्ष में ग्वालियर के योगदान का एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि जुलाई 1857 के अंत में एक दिन तात्या टोपे भेष बदलकर गवालियर आये थे और सेना से मिले। वे अधिकांश सेना के जवानों को अपने साथ कानपुर की ओर ले गए । इसी ग्वालियर से ले गये तोपखाना व अधिकारियों के बल पर वीर तात्या टोपे की अगुवाई में अंग्रेज जनरल विंडम के दांत खट्टे कर कानपुर पर अधिकार किया था वह दुआवा का क्षेत्र भी अंग्रेजों से छीन लिया था।

ग्वालियर पर अंग्रेज सेना की विजय
सन 1858 में ग्वालियर पर अंग्रेजी सेना की विजय के पश्चात और देश भर में अंग्रेजों का राज कायम हो जाने के बाद दीवान दिनकर राव राजवाड़े आगरा से महाराजा जयाजीराव सिंधिया को वापस गवालियर लाए तब महाराजा के स्वागत अभिवादन में एक समारोह का आयोजन गोरखी महल मैदान (महाराज बाड़ा ) से संबोधित में किया गया। स्वागत अभिवादन होने ही वाला था कि ठीक उसी समय ग्वालियर के ऐतिहासिक किले की ओर से तोप के गोले फेंके गए गोले एक के बाद एक स्वागत स्थल के पास आकर गिरे। ग्वालियर पर अंग्रेजों का क़ब्ज़ा हाल ही में हुआ था उस पर से गोले आने पर भगदड़ मच गई। समारोह भंग हो गया और महाराज को तुरंत सुरक्षित स्थान में ले जाया गया।सभी मेहमान आश्चर्यचकित थे कि ये कृत किसने किया क्यों किया?  इसकी छानबीन करते हुए अधिकारी जब किले पर पहुंचे तो दृष्टिगोचर हुआ कि गोले फेंके जाने के चिन्ह मिले।इधर संपूर्ण किला सुनसान था बड़ी खोज के बाद पाँच सदस्य एक हिंदू परिवार व एक मुस्लिम परिवार छिपे हुए मिले। निश्चित ही उन्होंने हमला किया  और प्राणों की आहुति देकर भी ग्वालियर  को इस भावना से व्यक्त कराने से नहीं चूके कि भले ही अंग्रेज विजय हो गए हों । लेकिन यहाँ की जनता उन्हें अभी भारत का शासक उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इतिहास में इन पांचों वीरों के नाम अब तक अज्ञात है।

सिंधिया शासन की मजबूत आर्थिक स्थिति
आजादी आने के समय तक ग्वालियर राज्य पर सिंधिया शासन अपनी आर्थिक स्थिति काफी मजबूत बना कर रख सका था। मध्य भारत बनने के समय तक यहां के शासक ने विलय होने वाले राज्यों के कुछ राजाओं की तरह नकली दिवालियापन नहीं दिखाया। महाराजा जीवाजी राव सिंधिया ने विलय के समय 55 करोड़ की धनराशि मध्य भारत शासन को सौंपी और 3:50 करोड़ की पूंजी बाबा गंगा जली फंड भी जनहितकारी कार्यों के लिए सौंपी।ग्वालियर राज्य द्वारा प्राप्त बड़ी धनराशि की मध्यभारत के संचालन का बड़ा आधार बन सकी यह उदाहरण एक उल्लेखनीय उदाहरण है। यद्यपि इसका लाभ ग्वालियर को कम व इंदौर व अन्य क्षेत्रों को प्राप्त रहा जिसका परिणाम क्षेत्र की जनता में असंतोष के रूप में प्रकट हुआ जो स्वाभाविक भी था। इतिहासकार बताते हैं कि महाराजा माधवराव सिंधिया प्रथम यानी महादजी सिंधिया जो अपने काल में बहुत शक्तिशाली हो गए थे यदि राजपूत राजाओं से तालमेल बिठाने का अधिक समय पागल होते तो विदेशी शक्तियों को जल्दी चले जाना पड़ता वह देश का इतिहास बदला हुआ होता।

 

संदर्भ- ग्वालियर राज की आज़ादी का संघर्ष पुस्तक( यशवंत कुशवाह) और ग्वालियर के गली बाज़ार मोहल्ले( माताप्रसाद शुक्ला)