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जजों पर आरोप लगाना नया फैशन, जितना मजबूत जज उतने ही बुरे आरोप लगाए जाते हैं: सुको ने वकील को ख़राब आचरण के लिए भेजा जेल
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाना नया फैशन बन रहा है। न्यायाधीश जितना मजबूत होता है, उसके खिलाफ उतने ही बुरे आरोप लगाए जाते हैं। यह मुंबई में हो रहा है, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रहा है और अब चेन्नई में भी। शीर्ष अदालत ने यह मौखिक टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ एक वकील द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें वकील को न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित किया गया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अवकाशकालीन पीठ ने वकील पीआर आदिकेशवन की याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने वकील को दो सप्ताह के कारावास की सजा देने के साथ एक वर्ष तक वकालत करने से रोक दिया था। वकील को हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट के निष्पादन में बाधा डालने के कारण अवमानना का दोषी ठहराया गया था।
पीठ ने वकील के आचरण को पूरी तरह से अवमानना करार दिया। पीठ ने मौखिक रूप से कहा, आप जानते हैं, न्यायाधीशों पर हमला किया जाता है। जिला न्यायालयों में न्यायाधीशों की कोई सुरक्षा नहीं है। कभी-कभी लाठी वाले पुलिसकर्मी भी नहीं होते है। यह पूरे देश में हो रहा है। आप बेबुनियाद आरोप नहीं लगा सकते।
वकील का आचरण अपमानजनक
हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पीठ ने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता वकील का व्यवहार और आचरण पूरी तरह अपमानजनक था और जब उसके खिलाफ एनबीडब्ल्यू जारी किया गया था तो उसने न्याय में बाधा डालने का स्पष्ट प्रयास किया। मद्रास हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। एक न्यायाधीश को अनुचित आधार पर मामले से अलग करने की भी मांग की गई। न्याय के प्रशासन के प्रति याचिककर्ता का कोई सम्मान नहीं है।
पीठ ने कहा, सजा को लागू करने को अतार्किक नहीं माना जा सकता है। इसलिए हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, याचिकाकर्ता वकीलों के एक वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। उनका ऐसा करना पूरी तरह अक्षम्य और कानूनी पेशे पर धब्बा है। अब बहुत देर हो चुकी है। दो सप्ताह की कैद बहुत उदार सजा है। दो सप्ताह जेल में रहकर पछतावा करने दीजिए।