सुप्रीम कोर्ट ने मप्र समेत कई उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों पर चिंता जताते हुए रिपोर्ट तलब की, निपटारे के लिए कार्ययोजना मांगी
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को विभिन्न उच्च न्यायालयों में काफी समय से लंबित आपराधिक मामलों पर चिंता जताते हुए हाईकोर्ट से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने नोट किया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, पटना, बॉम्बे और ओडिशा हाईकोर्ट में बड़ी तादाद में मुकदमे लंबित हैं।
उन्होंने उच्च न्यायालयों से इनके निपटारे के लिए कार्ययोजना मांगी। पीठ ने हाईकोर्ट को बताने का निर्देश दिया कि कितने दोषी सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। एकल जज और डिविजन बेंच मामलों को अलग करने, अन्य के साथ सुनवाई के लिए क्या कदम प्रस्तावित हैं। सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में वर्ष 1980 से आपराधिक अपील लंबित हैं। इस पर हैरानी जताते हुए पीठ ने कहा, जिस व्यक्ति ने 1970 में कोई अपराध किया हो और उस मामले की सुनवाई में पांच-छह साल लगें हों। दोषी ने 1980 में अपील की। उस समय वह 40 साल का रहा हो तो उसकी उम्र अब 80 साल से ज्यादा होगी।
पीठ ट्रायल कोर्ट से धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा पाए व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह अपील लंबे समय से इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित थी। वह व्यक्ति तीन साल की सजा जेल में काट भी चुका है। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
सॉलिसिटर जनरल को भी मदद करने के दिए निर्देश पीठ ने कहा, इस तरह के मामलों से संविधान के अनुच्छेद-21 में मिला तेजी से सुनवाई का अधिकार प्रभावित होता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को भी मामले में मदद करने के निर्देश दिए।
राजद्रोह कानून को चुनौती पर जवाब देने के लिए केंद्र ने मांगा एक सप्ताह का और वक्त
राजद्रोह (आईपीसी की धारा-124ए) कानून की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के एक दिन पहले केंद्र सरकार ने बुधवार को इस संबंध में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए एक सप्ताह का समय और मांगा है। सीजेआई एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले पर विचार करने के लिए पांच मई की तारीख तय की है। इस कानून के तहत अधिकतम सजा के रूप में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है