
कर्मचारियों ने कहा, डीडी पर उर्दू न्यूज़ बुलेटिन घटाने को लेकर प्रसार भारती का ‘खंडन’ भ्रामक
दरअसल द वायर की यह ख़बर कोविड महामारी के दौरान डीडी उर्दू पर उर्दू भाषा में दैनिक न्यूज़ बुलेटिन प्रसारण की संख्या 10 से घटाकर 2 किए जाने को लेकर थी.
कई संविदा और कैजुअल कर्मचारियों ने द वायर को बताया था कि जहां अन्य डिवीज़न में नियमित कार्यक्रम शुरू कर दिए गए हैं, वहीं उर्दू डिवीजन के तहत ऐसा नहीं किया गया है. इन उपलब्ध जानकारियों के आधार पर द वायर ने सवाल किया था कि ‘क्या प्रसार भारती उर्दू भाषा की अनदेखी कर रहा है?’
हालांकि, रिपोर्ट में किए गए दावों का खंडन करने या उस पर उचित जवाब देने के बजाय प्रसार भारती ने ट्वीट में डीडी काशीर, डीडी बिहार, डीडी उर्दू, डीडी यडगिरी, डीडी बांग्ला, डीडी उत्तर प्रदेश और डीडी मध्य प्रदेश जैसे अपने नेटवर्क में चैनलों पर प्रसारित हो रहे उर्दू बुलेटिन को सूचीबद्ध कर दिया और द वायर द्वारा उठाए गए डीडी उर्दू के न्यूज़ बुलेटिन की संख्या घटाने पर कोई जवाब नहीं दिया.
यही नहीं, इस ट्वीट में उन्होंने किए दावे को ही पुष्ट किया कि डीडी उर्दू पर अब महज़ दो बुलेटिन ही प्रसारित हो रहे हैं- एक सुबह 9 बजे और एक शाम 5:30 बजे.
रिपोर्ट में यह तर्क कहीं भी नहीं दिया गया था कि डीडी नेटवर्क के अन्य चैनलों पर उर्दू बुलेटिन प्रसारित नहीं किए जाते हैं, मसला यह था कि डीडी उर्दू पर प्रसारित होने वाले आठ बुलेटिन बंद कर दिए गए हैं.
डीडी न्यूज (उर्दू डेस्क) के साथ कैजुअल आधार पर बतौर असिस्टेंट न्यूज एडिटर एक दशक से ज्यादा समय तक काम कर चुके अशरफ अली बस्तवी का कहना है कि बात यह नहीं है कि नेटवर्क के अन्य चैनलों पर कितने बुलेटिन प्रसारित किए जा रहे हैं बल्कि मुख्य उर्दू चैनल पर बुलेटिनों की संख्या कम हो रही है.
उन्होंने कहा, ‘प्रसार भारती का दावा भ्रामक है क्योंकि यह बुलेटिन बंद किए जाने के बारे में तथ्य को छुपाता है जिसने मेरे जैसे कई उर्दू पत्रकारों को प्रभावित किया है.’
द वायर ने कई अन्य संविदा कर्मचारियों, कैजुअल कर्मचारियों और उर्दू पत्रकारों से बात की, जिन्होंने अशरफ़ की बात को सही ठहराया.
डीडी उर्दू के एक वर्तमान कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘महामारी से पहले चैनल एक दिन में 10 उर्दू बुलेटिन प्रसारित करता था अब इसे घटाकर सिर्फ दो कर दिया गया है. ऐसा नहीं है कि वहां स्टाफ नहीं है लेकिन हिंदी और अंग्रेजी बुलेटिनों की तरह उर्दू बुलेटिनों को फिर से शुरू नहीं किया गया है.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि उर्दू से संबंधित काम सौंपे जाने के बजाय उर्दू टीम के कुछ कर्मचारियों को अन्य प्रभागों में काम करने के लिए बाध्य किया जाता है क्योंकि उर्दू में पर्याप्त काम नहीं है.
डीडी उर्दू के एक अन्य कर्मचारी ने बताया, ‘अगर किसी उर्दू भाषा के कर्मचारी को दूसरे डिवीजन में स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो मान लीजिए कि वे कोई गलती करते हैं ऐसी स्थिति मेंउर्दू भाषा के कर्मचारी को यह कहते हुए निलंबित किया जा सकता है कि वे सक्षम नहीं हैं क्योंकि वे उक्त भाषाओं में कार्यरत कर्मचारियों की तरह कुशल नहीं हो सकते.’
उन्होंने यह भी कहा कि सवाल यह नहीं है कि डीडी के नेटवर्क का हिस्सा रहे कई चैनलों पर कितने बुलेटिन प्रसारित किए जा रहे हैं बल्कि सवाल यह है कि डीडी उर्दू पर कितने बुलेटिन प्रसारित किए जा रहे हैं?
उन्होंने पूछा, ‘मान लीजिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘मन की बात’ 50 चैनलों पर प्रसारित हो रहा है, क्या हम दावा कर सकते हैं कि 50 ‘मन की बात’ कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं?’
एक दशक से अधिक समय से डीडी उर्दू के साथ काम कर चुकी एक वरिष्ठ एंकर कहती हैं, ‘हमने सीईओ के साथ-साथ महानिदेशक को दर्जनों ईमेल और पत्र लिखे होंगे, मगर इन अधिकारियों की ओर से शायद ही कोई प्रतिक्रिया आई हो. हालांकि अन्य भाषाओं में कैज़ुअल कर्मचारियों ने विभिन्न शिफ़्ट में काम करना फिर से शुरू कर दिया है, मगर हमें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.’
उन्होंने कहा, ‘उम्मीद है कि हमारी बात जल्द ही सुनी जाएगी.’
उन्होंने आगे यह भी बताया कि प्रसार भारती द्वारा ट्विटर पर सूचीबद्ध किए गए कई बुलेटिन क्षेत्रीय स्टेशनों द्वारा तैयार किए गए हैं और इसका डीडी उर्दू नेशनल डेस्क से कोई लेना-देना नहीं है.
उल्लेखनीय है कि ये पत्रकार पिछले एक साल से अधिक समय से बुलेटिनों की बहाली की मांग कर रहे हैं. पिछले साल फरवरी में उनकी मांग के आधार पर प्रमुख उर्दू दैनिक ‘इंकलाब’ ने बताया था कि उर्दू समाचार बुलेटिन को पूरी तरह से बंद करने के पीछे एक ‘सुनियोजित षड्यंत्र’ लगता है.
इस मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के तत्कालीन उपाध्यक्ष आतिफ रशीद ने दूरदर्शन के महानिदेशक (डीजी) को नोटिस जारी किया था.
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