भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार, 17.7 लाख अत्यंत कुपोषित

नई दिल्ली: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि देश में 33 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं और इनमें से आधे से अधिक अत्यंत कुपोषित की श्रेणी (एसएएम) में आते हैं. कुपोषित बच्चों वाले राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं.

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने निर्धन से निर्धनतम लोगों में कोविड महामारी से स्वास्थ्य और पोषण संबंधी संकट और अधिक बढ़ने संबंधी आशंका जताते हुए अनुमान व्यक्त किया कि 14 अक्टूबर, 2021 की स्थिति के अनुसार देश में 17,76,902 बच्चे अत्यंत कुपोषित तथा 15,46,420 बच्चे अल्प कुपोषित हैं.

मंत्रालय ने एक आरटीआई अर्जी के जवाब में कहा कि 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के आंकड़ों से कुल 33,23,322 बच्चों के आंकड़े आये हैं. ये आंकड़े पिछले साल विकसित पोषण ऐप पर पंजीकृत किए गए, ताकि पोषण के परिणामों पर निगरानी रखी जा सके.

मंत्रालय के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया, ‘आंगनवाड़ी व्यवस्था में 8.19 करोड़ बच्चों में से केवल 33 लाख कुपोषित हैं, जो कुल बच्चों का केवल 4.04 प्रतिशत है.’

ये संख्या अपने आप में चिंताजनक है, लेकिन पिछले साल नवंबर की तुलना में ये और अधिक चिंता पैदा करते हैं. नवंबर 2020 से 14 अक्टूबर, 2021 के बीच गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी.

हालांकि, इस संबंध में दो तरह के आंकड़े हैं, जो आंकड़ों के संग्रह के विविध तरीकों पर आधारित हैं.

पिछले साल अत्यंत कुपोषित बच्चों (छह महीने से लेकर छह साल तक) की संख्या 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा गिनी गयी और केंद्र को बताई गयी. ताजा आंकड़े पोषण ट्रैकर ऐप से लिये गए हैं, जहां आंकड़े सीधे आंगनवाड़ियों द्वारा दर्ज किए जाते हैं तथा केंद्र इन्हें प्राप्त करता है.

अत्यंत कुपोषण और अल्प कुपोषण दोनों का ही बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसमें उनका वजन एवं लंबाई कम हो जाती है और सामान्य बच्चों के मुकाबले बीमार होने का खतरा नौ गुना बढ़ जाता है.

आरटीआई कानून के तहत मिले जवाब के अनुसार, महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6,16,772 (6.16 लाख) दर्ज की गई, जिसमें 1,57,984 (1.57 लाख) अत्यंत कुपोषित बच्चे और 4,58,788 (4.58 लाख) अल्प कुपोषित बच्चे थे.

सूची में दूसरे नंबर पर बिहार है जहां 4,75,824 (4.75 लाख) कुपोषित बच्चे (3,23,741 अत्यंत कुपोषित और 1,52,083 अल्प कुपोषित बच्चे) हैं.

इस मामले में तीसरे नंबर पर गुजरात है, जहां 1.55 लाख अल्प कुपोषित और 1.65 लाख अत्यंत कुपोषित बच्चे हैं.

इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की सीईओ पूजा मारवाह ने कहा कि कोविड महामारी ने लगभग सभी सामाजिक-आर्थिक संकेतकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है और पिछले एक दशक में हुई प्रगति को पीछे ढकेल दिया है.

उन्होंने कहा, ‘लंबे समय तक स्कूल बंद रहने के दौरान स्कूलों में आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास योजना) और मध्याह्न भोजन जैसी सेवाएं अनियमित हो गई हैं. इसने गरीबी में रहने वाले बच्चों को काफी प्रभावित किया है, क्योंकि वे अपने अधिकारों को पूरा करने के लिए इन सेवाओं पर काफी हद तक निर्भर रहे हैं.’

अन्य राज्यों को देखें तो आंध्र प्रदेश में 2.76 लाख और कर्नाटक में 2.49 लाख कुपोषित बच्चों की संख्या दर्ज की गई है. इसी तरह उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख, तमिलनाडु में 1.78 लाख, असम में 1.76 लाख, और तेलंगाना में 1.52 लाख कुपोषित बच्चे हैं.

देश की राजधानी दिल्ली भी इस मामले में पीछे नहीं है. यहां कुल 1.17 लाख कुपोषित बच्चे हैं, जिसमें से 20,122 अल्प कुपोषित और 97,223 अत्यंत कुपोषित बच्चे हैं.

अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और सीनियर पीडियाट्रिशियन अनुपम सिब्बल ने कहा कि कुपोषण को जल्दी पहचानना और कुपोषण को बिगड़ने से रोकने के लिए उचित इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है.

उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि कुपोषित बच्चों में संक्रमण का अधिक जोखिम होता है, उनमें ऊर्जा कम होती है और स्कूल में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं होता है. कुपोषण के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पर्याप्त पोषण, छह महीने के लिए विशेष स्तनपान और शुरुआती कुछ साल तक संतुलित पोषण पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है.’

कुपोषित बच्चों का अंतिम उपलब्ध आंकड़ा साल 2015-16 में एनएफएचएस-4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) से सामने आया था, जिसके अनुसार पांच साल से कम उम्र के 38.4 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र की तुलना में छोटे कद के हैं और 21 प्रतिशत कमजोर या कम वजन वाले हैं.

पिछले साल दिसंबर में जारी एनएफएचएस-5, जिसने 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़े दिए थे, ने भी एक गंभीर स्थिति प्रस्तुत किया था और दिखाया था कि साल 2015-16 की तुलना में कुपोषण में वृद्धि हुई है.

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