गांधी ‘भाई’ बुलाते थे, इंदिरा ने डाक टिकट निकाला… आज ‘कायर’ बताते हैं, सावरकर पर इतना कैसे बदल गई कांग्रेस
इंदिरा गांधी ने डाक टिकट निकलवाया, खूब की सावरकर की तारीफ
विनायक दामोदर सावरकर… एक ऐसा नाम जिसका जिक्र करना भी विवाद को न्योता देना साबित हो जाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो सनसनीखेज दावा ही कर दिया। बकौल सिंह, सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों के आगे दया याचिका दी। अब इस दावे के लिए कांग्रेस उनपर, बीजेपी पर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हमलावर है। आज की तारीख में सावरकर को ‘माफीवीर’, ‘डरपोक’, ‘कायर’ बताने वाली कांग्रेस की राय कभी इससे जुदा थी। जिन गांधी के आदर्शों की कांग्रेस दुहाई देते नहीं थकती, वह सावरकर को ‘भाई’ कहते थे। इंदिरा गांधी ने सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी करवाया।
कांग्रेस की नई पीढ़ी में सावरकर के लिए नफरत झलकती है। राहुल गांधी हों या वर्तमान कांग्रेस के और कई नेता, सावरकर के लिए बेहद तीखे शब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। पहले की कांग्रेस और अब की कांग्रेस में सावरकर को लेकर अलग विरोधाभास दिखता है। एक नजर डालते हैं कि कैसे कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की राय सावरकर को लेकर बदलती चली गई।
यह कहना कि गांधी और सावरकर के बीच मनभेद थे, गलत है। दोनों के पत्राचार में ऐसी कोई बात नजर नहीं आती। गांधी ने अपनी चिट्ठियों और लेखों में सावरकर को ‘भाई’ कहकर संबोधित किया है। सावरकर गांधी को ‘महात्माजी’ कहकर बुलाते थे। गांधी ने सावरकर बंधुओं के बलिदान और राष्ट्रवाद की भावना को खूब सराहा था। गांधी मानते थे कि सावरकर बंधु राजनीतिक अपराधी हैं। गांधी और सावरकर का रिश्ता कैसा था, जानने के लिए इस लिंक पर जाएं।
जब सावरकर को अंग्रेजों ने अंडमान की सेलुलर जेल में बंद किया तो गांधी के अलावा विट्ठलभाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने उनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई। नेहरू सावरकर को पसंद नहीं करते थे, मगर स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल और सीडी देशमुख जैसे नेताओं ने सावरकर से संपर्क किया था। गांधी की हत्या के बाद सावरकर के संगठन हिंदू महासभा और RSS पर बैन लग गया। सावरकर की वापसी कराई पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने। उन्होंने सावरकर को मासिक पेंशन देने का आदेश जारी किया। फिर आईं इंदिरा गांधी।
सावरकर को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कभी सार्वजनिक रूप से कुछ कहा हो, इंटरनेट पर ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। हालांकि बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने पिछले साल फरवरी में यह दावा जरूर किया कि नेहरू को सावरकर से जलन थी। स्वामी ने तब कहा था, ‘सावरकर एक स्कॉलर थे मगर नेहरू नहीं। उन्होंने खुद को स्कॉलर दिखाने के लिए नाम के आगे पंडित लगाया।’
ऊपर बाईं ओर जो डाक टिकट देख रहे हैं, वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जारी हुआ। बीजेपी का दावा है कि इंदिरा ने अपने निजी खाते से सावरकर ट्रस्ट को 11 हजार रुपये दान किए थे। यही नहीं, तत्कालीन पीएम ने फिल्म्स डिवीजन को ‘महान स्वतंत्रता सेनानी’ पर डॉक्युमेट्री बनाने का निर्देश दिया था। यह बात पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी दोहराई। केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह एक चिट्ठी साझा करते हैं जो ‘इंदिरा ने सावरकर को लिखी थी।’ 20 मई, 1980 को इंदिरा ने वह चिट्ठी लिखी थी।
हालांकि सोनिया के लिए असहज स्थिति तब पैदा हुई जब यह पता चला कि शिवराज पाटिल और प्रणब मुखर्जी जैसे वरिष्ठ नेता इस प्रस्ताव के लिए राजी हो चुके थे। आखिरकार 26 फरवरी को राष्ट्रपति ने संसद में सावरकर के पोर्ट्रेट का अनावरण किया। उस फंक्शन में सोनिया गांधी शामिल नहीं हुई थीं। बाद में खबर आई कि सोनिया ने एक बैठक में सबके सामने इन नेताओं को फटकारा।
(साभार)
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