
ग्वालियर मानसिक अरोग्यशाला को टीचिंग इंस्टीट्यूट बनाना मेरा लक्ष्य: डॉ.लहारिया
साक्षात्कार इसलिए कि मानसिक अरोग्यशाला में 15 साल बाद साइकियाट्रिस्ट की संचालक के रूप में हुई है नियुक्ति
बायलाइन24.कॉम स्पेशल। देश में मानसिक रोगियों का इलाज करने वाले डॉक्टर सिर्फ चार हजार हैं। वहीं न केवल साइकियाट्रिक बल्कि क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और उनकी मदद करने वाली नर्सों और दूसरे क्लीनिकल सहयोगियों की संख्या भी जरूरत के मुताबिक नहीं है। इसका असर मानसिक अस्पतालों की व्यवस्था पर पड़ता है। देश में सिर्फ तीन मानसिक अस्पताल हैं। पहला-रांची दूसरा आगरा और तीसरा ग्वालियर। ग्वालियर को छोड़कर दोनों अस्पताल एक बड़े टीचिंग इंस्टीट्यूट बन चुके हैं। हम साक्षात्कार कर रहे हैं प्रदेश के एकमात्र मानसिक अरोग्यशाला के नवनियुक्त डायरेक्टर मनोचिकित्सक डॉ. संजय लहारिया का। एडीटर राजेश शुक्ला द्वारा लिए साक्षात्कार के प्रमुख अंश आप भी पढ़े और हां…अपने कमेंट जरूर दें।
बायलाइन24.कॉम: नियुक्ति के बाद आप इस मानसिक अरोग्यशाला को अपनी नजर से कैसे देखते हैं।
डॉ.संजय: देश में मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और अस्पतालों की कमी है। यही नहीं अब इसकी पढ़ाई करने वालों की संख्या भी कम है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती जरूरत के मुताबिक मनोचिकित्सकों की बहाली और उन्हें पढ़ाने के लिए जरूरी संसाधनों के इंतजाम की है। एक संचालक के तौर पर मेरी पहली प्राथमिकता यही रहेगी कि मैं यहां मानसिक आरोग्यशाला को एक शैक्षणिक संस्थान में बदल सकूं। इसके लिए हमने प्रयास करना भी शुरू कर दिए हैं। यहां हम एमडी कोर्स भी शुरू करने की कवायद करेंगे।
बायलाइन24.कॉम: आप मरीजों के बारे में अपनी क्या राय रखते हैं।
डॉ.संजय: हम मानते हैं कि लोगों को मानसिक तौर पर स्वस्थ रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह संख्या देश की हेल्थ इकोनॉमी की सूचक है. इससे परिवार, समाज और देश पर असर पड़ता है। मानसिक रोगी को दवाई के साथ हम उन्हें समय-समय पर योग, काउंसिलिंग और अन्य एक्टीविटी भी कराएंगे ताकि उनकी मानसिक रोग की क्षमता बेहतर हो सके। डॉ.संजय ने बताया कि हम नौकरी तो कर रहे हैं, लेकिन यह हमें सेवा का अवसर समझना चाहिए, तभी हम मरीजों को बेहतर स्थिति में ला पाएंगे। मानसिक रोगियों का इलाज सिर्फ़ दवाइयों से नहीं होता। उन्हें अनुकूल माहौल देना और उनसे बातचीत कर उनकी काउंसलिंग करना समानांतर तौर पर चलता है।
बायलाइन24.कॉम: अभी कितनी संख्या है भर्ती मरीजों की।
डॉ.संजय: मानसिक आरोग्यशाला में अभी महिला मरीज 115 और पुरुषों की संख्या 85 है। हम सिर्फ उनकी मानसिक बीमारी की ही इलाज नहीं करते हैं बल्कि अन्य बीमारी भी ठीक करते हैं। बताय गया कि यहां सिर्फ मप्र के मानसिक मरीजों को ही भर्ती किया जाता है। अन्य प्रदेश के मरीजों के लिए सिर्फ ओपीडी की सुविधा है।
बायलाइन24.कॉम: जो मरीज ठीक हो जाते हैं उनके लिए क्या योजना है।
डॉ.संजय: ग्वालियर में लांग स्टे होम की योजना 2017 में सरकार ने शुरू की है। जो मरीज ठीक हो गए हैं और उनके परिजनों का कोई अता-पता नहीं है। उन्हें यहां भेजा गया है। हम उनके उत्थान के लिए काम कर रहे हैं। मानसिक आरोग्यशाला से ऐसे करीब 20 मरीजों को लांग स्टे होम में रैफर किया है। वे यहां पर अपनी सुविधानुसार काम सीख रहे हैं और अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं।
बायलाइन24.कॉम: क्या नवाचार करेंगे?
डॉ.संजय: मानसिक आरोग्यशाला में मरीजों को बेहतर चिकित्सा और सभी संसाधन पर्याप्त मिले इसके लिए हमेशा प्रयास करेंगे। यहां स्टॉफ की भर्ती भी करने का प्रयास रहेगा। डॉ.संजय ने बताया कि देश की कुल आबादी का 10.6 फ़ीसदी हिस्सा मानसिक बीमारियों से ग्रसित लोगों का है। इनके इलाज के लिए 15,000 साइकियाट्रिस्ट्स की जरुरत है। भारत में अभी साइकियाट्रिस्ट्स की संख्या 4000 से भी कम है। अब हमें ग्वालियर के मानसिक अरोग्यशाला को एक टीचिंग इंस्टीटयूट बनाना हैं।
बायलाइन24.कॉम: मरीजों को शॉक ट्रीटमेंट अब भी दिया जाता है।
डॉ.संजय: रोगियों के इलाज की सबसे अच्छी और सुरक्षित विधि इसीटी (इलेक्ट्रो कनवर्जल थेरेपी) का सफलतम प्रयोग भारत में ही हुआ है। साल 1943 से ही यहां इलेक्ट्रो कनर्वजल थेरेपी (इसीटी) से इलाज किया जाता है। (थोड़ा हंसते हुए….) यह हिन्दी फिल्मों मे दिखाए जाने वाले इलेक्ट्रिक शॉक से बिल्कुल अलग है। उनके मुताबिक यह मानसिक रोगियों के इलाज की सबसे सफल और सुरक्षित विधि है। इस पद्धति से इलाज करने के पहले मरीजों को बेहोश कर दिया जाता है। बिजली के यह झटके एक मिनट तक के होते हैं। इसके लिए मरीजों के वार्ड में ही इसकी मशीन लायी जाती है और उनका इलाज किया जाता है। अभी कोविड के कारण इसे बंद कर दिया गया है।
फैक्ट फाइल:
25 अक्टूबर 1994 को मानसिक अस्पताल से नाम बदलकर ग्वालियर मानसिक आरोग्यशाला कर दिया गया।
पुरुष हाफ वे होम 1999 में शुरू किया गया था।
महिला हाफ वे होम 2001 में शुरू किया गया था।
19 जुलाई 1999 में ओपन वार्ड 30 बेड की शुरुआत हुई थी।
2001 में खुले वार्ड की संख्या बढ़ाकर 50 बिस्तर कर दी गई।
फीमेल क्लोज वार्ड 2005 में शुरू किया गया था।
संशोधित ईसीटी 2005 में शुरू किया गया था।
नया ओपीडी भवन 2005 में शुरू हुआ था।
नशा मुक्ति केंद्र की शुरुआत मार्च 2015 में हुई थी।
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