ग्वालियर शहर बहुत घना हो गया है
शरद जोशी पर विशेष- क्योंकि आज 21 मई को उनका जन्मदिवस है
राजेश शुक्ला । देश भर के व्यंगकारों में अगर कुछ नाम लें तो उनमें से पदमश्री स्व. शरद जोशी का नाम अग्रणी पक्ति में लिया जाता है। चूंकि उनका लंबा समय ऐतिहासिक और कला नगरी ग्वालियर में बीता। यहां उनके पिता मप्र रोडवेज सेवा में पदस्थ थे। शरद जोशी अपने समय के अनूठे व्यंग्यकार थे। उनका जन्म 21 मई, 1931 को उज्जैन में हुआ। शरद जोशी ने व्यंग को जो दिशा दी उससे व्यंग लेखन की एक नई परंपरा को जन्म दिया। शरद जोशी ने सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों पर अपने व्यंग्य में हास्य, देश की व्यवस्था पर कटाक्ष और चुटीलेपन को दिखाया। इसी चुटीलेपन ने उन्हें जनप्रिय बनाया। ग्वालियर से उन्हें बेहद प्यार था। कहते हैं आम आदमी को सिर्फ अपनी रोजी-रोटी से मतलब होता, यद्यपि उनके द्वारा लिखित टीवी धारावाहिक यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गजब की, लापतागंज जब पर्दे पर दिखाई दिए तो वही आम आदमी को लगा कि शरद जोशी सिर्फ और सिर्फ उनके लिए ही व्यंग का निर्माण कर रहे हैं। श्री जोशी का व्यंग हरीशंकर परसाई के व्यंग से थोड़ा कम तीखा है। इसकी झलक हमें उनके संग्रह जीप पर सवार इल्लियां, रहा किनारे बैठ और दूसरी सतह में साफ देखने को मिलती हैं। सरल भाषा में किसी भी विषय पर व्यंग को संप्रेषण देना उनकी अद्भुत कारीगरी थी। उनकी गद्य रचनाएं परिक्रमा, किसी बहाने, प्रतिदिन , यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएं समेत दो व्यंग्य नाटक अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खां के संवाद हमारे अंतर्मन में झांककर सही और गलत का निर्धारण करने के लिए बाध्य होते हैं, क्योंकि शरद जोशी जैसा कोई नहीं है और न ही होगा। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।
जब सरोजजी के यहां मनी शादी की पहली रात
शरद जोशी का विवाह हुआ। शादी के तुरंत बाद वे ग्वालियर आए। यहां दंपत्ति जनकवि मुकुट बिहारी सरोज के खासगी बाजार स्थित घर आए। बताया जाता है कि नवदंपत्ति की शादी की पहली रात सरोजजी के घर पर ही मनी। सरोजजी और शरदजी में गहरी मित्रता थी। देवास के साहित्यकार प्रोफेसर नईम साहब के वे साढू़ भाई थे। प्रोफेसर नईम का ग्वालियर बहुत आना-जाना लगा रहता था। खाकसार के घर भी नईम साहब कई बार तशरीफ लाए।
ग्वालियर के लोगों से मुझे प्यार है
शरद जोशी को ग्वालियर और यहां के लोगों से बहुत प्यार था। एक बार श्री जोशी कई कार्यक्रमों में शरीक होने ग्वालियर आए। वे विनय नगर में हास्य कवि प्रदीप चौबे द्वारा मौसम के कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। उसी दिन वरिष्ठ पत्रकार बच्चन विहारी ने अपने व्यंग संग्रह खुल्लम-खुल्ला के विमोचन के लिए अपने मित्र माताप्रसाद शुक्ल से कहा कि आप प्रयास करो तो पुस्तक का विमोचन शरद जोशी से हो जाए। बस फिर क्या था। माताप्रसाद शुक्ल सीधे प्रदीप चौबे के घर पहुंचे और शरदजी को लेकर कला बीथिका में विमोचन कार्यक्रम में लेकर आए। यहां जोशीजी ने खुल्लम-खुल्ला का विमोजन किया। खचाचख लोगों से भरे कला बीथिका में विमोचन के दौरान उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था कि अब ग्वालियर भी साहित्य के मामले में बड़े शहरों से कमतर नहीं है।
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