मप्र सरकार ने एडीपीओ, सांख्यिकी अधिकारी सहित अन्य परीक्षाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया है, जो कि पूरी तरह अवैधानिक, कोर्ट में बहस जारी

भोपाल। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण देने के विरोध में हाई कोर्ट में शुक्रवार को भी बहस जारी रही। हाईकोर्ट के समक्ष अधिवक्ता ब्रहमेन्द्र पाठक ने शिक्षक भर्ती परीक्षा- 2018 व एडीपीओ परीक्षा के संबंध में दलीलें पेश कीं। उन्होंने बताया कि सरकार ने 30 जुलाई, 2018 को शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए नियम बनाए और उसमें ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। उच्च माध्यमिक शिक्षक के करीब 17 हजार पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हुई। सरकार ने 24 दिसंबर 2019 को अधिसूचना जारी कर ओबीसी का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया। साथ ही ईडब्ल्यूएस को भी 10 फीसदी आरक्षण दिया गया। इसके बाद 20 जनवरी 2022 को निर्देशिका जारी कर शिक्षक भर्ती के उक्त पदों का वर्गवार विभाजन कर दिया। अधिवक्ता पाठक का कहना है कि चूंकि विज्ञापन 2018 में जारी हुआ था, इसलिए भूतलक्षी प्रभाव से नियम लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने अभी तक ईडब्ल्यूएस आरक्षण के संबंध में नियम नहीं बनाए हैं। यह बताया गया कि हाई कोर्ट द्वारा 27 प्रतिशत पर रोक लगाने के बावजूद सरकार ने एडीपीओ, सांख्यिकी अधिकारी सहित अन्य परीक्षाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया है, जो कि पूरी तरह अवैधानिक है। सभी तर्कों को सुनने के बाद प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की युगलपीठ ने 29 अगस्त को भी सुनवाई जारी रखने के निर्देश दिए। अब ओबीसी आरक्षण के समर्थन में बहस को गति दी जाएगी। राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, उपमहाधिवक्ता आशीष बर्नार्ड तथा विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह उपस्थित हुए। उधर अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने कोर्ट के समक्ष छह बिंदु रखे और निवेदन किया कि अंतिम फैसले से पहले इन पर विचार करें। उन्होंने कहा कि क्या हाईकोर्ट को 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा निर्धारण करने का अधिकार है। हाई कोर्ट के आठ अगस्त के अंतरिम आदेश और ईडब्ल्यूएस से जुड़े प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। इंदिरा साहनी के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष परिस्थितियों में आरक्षण बढ़ाया जा सकता है, लेकिन वो परिस्थितियां क्या होंगी वो सुप्रीत कोर्ट निर्धारित करेगा। मराठा मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने 27 प्रतिशत को असंवैधानिक करार दिया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंगत हाई कोर्ट को क्या क्षेत्राधिकार है।