मप्र में तीन साल में हर माह 3490 कैंसर मरीज़ों की मौत

भोपाल। कैंसर के मरीजों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। महिलाओं और पुरूषों में अलग-अलग प्रकार के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। केन्द्र सरकार को भेजी गई कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम की रिपोर्ट बताती है। कि मप्र में बीते तीन सालों में हर महीने औसतन 3490 कैंसर मरीजों की मौत हो रही है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए मरीज परेशान हैं। प्रदेश के सिर्फ दो सरकारी मेडिकल कॉलेजों ग्वालियर और जबलपुर में ही कैंसर के इलाज की व्यवस्था है। वह भी बदहाली की शिकार है। इसके अलावा एम्स भोपाल के कैंसर रोग विभाग में इलाज किया जा रहा है। लेकिन मरीज ज्यादा होने के कारण यहां जांचों से लेकर इलाज और सिकाई के लिए लंबी वेटिंग का सामना करना पड़ता है।

मप्र की राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में न तो कैंसर के इलाज की व्यवस्था है और न ही सिकाई का इंतजाम। यहां तीन साल पहले आउटडेटेड हो चुकी कोबाल्ट मशीन बंद हो चुकी है। गामा कैमरा लगने के कुछ साल में ही बंद हो गया। अब हालात ऐसे हैं कि मरीजों को भोपाल के प्रायवेट अस्पतालों में इलाज के लिए निर्भर रहना पड़ता है। भोपाल गैस त्रासदी के पीडितों में से बडे पैमाने पर लोग कैंसर की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद बीएमएचआरसी में भी कैंसर का ट्रीटमेंट नहीं हो पा रहा है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में पेश किए गए आंकडे चौंकाने वाले हैं। साल 2018 से 2020 तक तीन सालों में प्रदेश में कैंसर के करीब 2 लाख 27 हजार 776 मरीज मिले इनमें से 55 फीसदी यानि 1 लाख 25 हजार 640 कैंसर के मरीजों की मौत हो गई।

महिलाओं में बच्चेदानी का कैंसर और स्तन कैंसर बढ़ रहा है। हर साल करीब पांच हजार मरीजों की मौतें इन दोनों कैंसर की वजह से हो जाती है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में कैंसर के इलाज की व्यवस्था न होने से मरीजों को निजी अस्पतालों और ट्रस्ट के हॉस्पिटल्स् में इलाज कराना पड़ रहा है। भोपाल के अस्पतालों में अकेले एम्स में इलाज की व्यवस्था है। इसके अलावा निजी अस्पतालों में जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल, चिरायु मेडिकल कॉलेज, नवोदय केंसर अस्पताल, बंसल हॉस्पिटल में मुख्य रूप से कैंसर का उपचार हो रहा है। कैंसर ग्रस्त गैस पीडितों में से 80 फीसदी का उपचार जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में होता है

केन्द्र सरकार ने तृतीयक कैंसर परिचर्या योजना से ग्वालियर के जीआर मेडिकल कॉलेज को 72 करोड़ रूपए और जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज को 25.2 करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। इस फंड से इन मेडिकल कॉलेजों में कैंसर मरीजों के जांच, इलाज और रेडियोथैरेपी की व्यवस्था की जाएगी। इधर एनएचएम ने नॉन कम्युनिकेबल डिसीज मैनेजमेंट के लिए दो साल में करीब 23 करोड़ रूपए की राशि दी है। इसमें ब्लड़ प्रेशर, शुगर, कैंसर जैसे नॉन कम्युनिकेबल डिसीज के लिए इस फंड से जांच और इलाज किया जा रहा है। मप्र के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों इंदौर, भोपाल और रीवा के मेडिकल कॉलेजों में कैंसर के इलाज के लिए लीनियर एक्सीलरेटर फेसिलिटी विकसित होगी। मध्य प्रदेश कैबिनेट ने इस पीपीपी मोड पर यह सुविधा शुरू कराने को मंजूरी दी है। इसके लिए टेंडर बुलाए गए हैं। वहीं चार मेडिकल कॉलेजों में पीडियाट्रिक कैंसर की सुविधा शुरू की जा रही है।