प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक कहीं कवरेज की भूख मिटाने का प्रयोजन तो नहीं है

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक को लेकर भाजपा की प्रतिक्रिया और मीडिया के डिबेट दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. ऐसा लगता है कि सुरक्षा में चूक का मुद्दा दोनों के लिए इवेंट के लिए और फिर इवेंट के जरिये डिबेट के लिए कटेंट बन कर आया है.

प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, एसपीजी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है लेकिन पंजाब के पुलिस प्रमुख ने प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है.

भठिंडा एयरपोर्ट से हुसैनीवाला के राष्ट्रीय शहीद स्मारक तक की दूरी 111 से लेकर 140 किलोमीटर बताई जा रही है. अगर सड़क मार्ग से गए हैं तो वापसी का भी अंदाज़ा होगा क्योंकि मौसम तो दिन भर ख़राब रहा है. भारत के प्रधानमंत्री ने कब इतनी लंबी सड़क यात्रा की है, याद नहीं है.

दो घंटे तक सफ़र करना और वापस आने तक इतने लंबे हाइवे को सुरक्षा से लैस रखना आसान काम नहीं है. यह तभी हो सकता है जब पहले से सब कुछ तय हो. उस दिन या कुछ घंटे के अंतराल पर केवल आपात स्थिति में किया जा सकता है मगर सामान्य रूप से नहीं.

पंजाब में मौसम ख़राब था, इसका पता दिल्ली से भठिंडा उड़ने से पहले ही हो गया होगा. क्या तभी दौरा नहीं टाल देना चाहिए था?

प्रधानमंत्री कार्यालय को जवाब देना चाहिए कि कब यह तय हुआ कि सड़क मार्ग से हुसैनीवाला जाना है? क्योंकि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने 3 जनवरी को एक प्रेस रिलीज़ जारी की थी. इसमें प्रधानमंत्री के बताए कार्यक्रम में हुसैनीवाला का ज़िक्र नहीं था.

प्रधानमंत्री ने इसी रिलीज़ को 5 जनवरी की सुबह ट्वीट किया. तब भी इसमें हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम नहीं था. यह बेहद अहम सवाल है कि पाकिस्तान की सीमा से सटे हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम कब तय हुआ?

कुछ महीने पहले इसी मोदी सरकार ने सीमा से सटे पचास किलोमीटर के दायरे बीएसएफ के हवाले कर दिया था. ऐसा करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था. पंजाब में सीमा पार से ड्रोन से हमले की ख़बरें भी आती रहती हैं. क्या बीएसएफ को पता था कि प्रधानमंत्री हुसैनीवाला शहीद स्मारक आ सकते हैं? उस पवित्र स्थान पर उनके लिए क्या तैयारी थी? क्या बीएसएफ के चीफ वहां पर मौजूद थे? इसका जवाब नहीं है.

हम सब अभी तक जान गए हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी एसपीजी की है. इसका एकमात्र यही काम है. एसपीजी कैसे फैसला लेगी, प्रधानमंत्री नहीं तय करते हैं बल्कि एक ब्लू बुक है उसके हिसाब से तय होता है.

इसके लिए एसपीजी, खुफिया एजेंसियां और स्थानीय पुलिस मिलकर फैसला लेते हैं लेकिन अंतिम फैसला एसपीजी का होता है. जिसका ध्येय है ज़ीरो एरर यानी शून्य चूक. तो एसपीजी बताए कि हुसैनीवाला जाने का, वह भी इतना लंबा सड़क से रास्ता तय करने का फै़सला कब हुआ?पंजाब पुलिस के प्रमुख से अगर हरी झंडी ली गई, तो ख़ुफिया एजेंसी की जानकारी क्या थी?

हम यह भी जान चुके हैं कि प्रधानमंत्री का जहां भी कार्यक्रम होता है, कई दिन से पहले सुरक्षा एजेंसियां ज़िले में दौरा करने लगती हैं. एसपीजी एक तरह से पुलिस को अपने अधीन कर लेती है. तो सुरक्षा एजेंसियों के क्या इनपुट थे? क्या खुफिया एजेंसियों ने पंजाब पुलिस के प्रमुख की हरी झंडी को मंज़ूरी दी थी कि रास्ता एकदम साफ है, कोई जोखिम नहीं है?

पत्रकार मीतू जैन ने अपने ट्वीट में कई अहम सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि अगर किसान रास्ता रोके थे तो एसपीजी ने वहां प्रधानमंत्री को बीस मिनट तक इंतज़ार क्यों कराया?

 

जो वीडियो जारी किया गया है वह प्रधानमंत्री के काफिले की तरफ से है. मीतू जैन का यह भी सवाल है कि काफिले के सामने जाकर फोटोग्राफर को वीडियो बनाने की अनुमति क्यों दी और तस्वीर में दिख रहा है कि एसपीजी प्रधानमंत्री की कार के अगल-बगल खड़ी है मगर सामने नहीं है. इतना खुला क्यों छोड़ा गया है?

इन सवालों के साथ मीतू जैन कहती है कि अगर ये चूक हुई है तो एसपीजी के प्रमुख को बर्खास्त कर देना चाहिए. अभी तक केंद्र सरकार ने इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं की है.

पंजाब सरकार की भूमिका हो सकती है लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मामले में उसकी भूमिका एसपीजी के अधीन होती है. प्रधानमंत्री कहां जाएंगे और उनकी बगल में कौन बैठेगा यह सब एसपीजी तय करती है. इसलिए सबसे पहले कार्रवाई केंद्र सरकार की तरफ से होनी चाहिए.

अगर पंजाब पुलिस ने एसपीजी को गलत जानकारी दी कि रास्ता साफ है, प्रधानमंत्री 140 किलोमीटर का सफर सड़क से तय कर सकते हैं तो फिर पंजाब पुलिस के प्रमुख को इस्तीफा देना चाहिए लेकिन तब यह सवाल उठेगा कि खुफिया एजेंसियों ने क्या जानकारी दी थी, अगर उन्होंने भी गलत जानकारी दी तब खुफिया एजेंसी को भी बर्खास्त कर देना चाहिए.

क्या सभी एजेंसियों को नहीं पता था कि पंजाब में प्रधानमंत्री के आने के पहले से जगह जगह में किसानों के प्रदर्शन चल रहे थे, जिसका ऐलान उन्होंने दो जनवरी को कर दिया था. तब इतना जोखिम क्यों लिया गया?

क्या यह पंजाब सरकार की ज़िम्मेदारी है या केंद्र सरकार की? कायदे से गृह मंत्री अमित शाह को इस्तीफा देना चाहिए मगर ये सब अब पुरानी बातें हो चुकी हैं.

सारी कोशिश डिबेट पैदा करने की है. डिबेट के लिए कटेंट इवेंट से आएगा तो भाजपा के नेता महामृत्युजंय जाप करने लगे. आनन-फानन में इस तरह से महामृत्युंजय जाप तो नहीं होता है. शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया कि महामृत्युंजय जाप करने जा रहे हैं और पुजारी कह रहे हैं कि गणपति की पूजा करके चले गए. क्या इसे नौटंकी की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए?

सुरक्षा के मूल सवालों को छोड़ कर पूजा-पाठ के कार्यक्रम होने लगे ताकि गोदी मीडिया को अगले दिन डिबेट और कवरेज के लिए कटेंट दे सकें और केवल मोदी मोदी होता रहे.

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है. इस सवाल को रैली में कितने लोग आए, कितने नहीं आए इसे लेकर ज्यादा बहस की ज़रूरत नहीं. हर सरकार रैलियों का रास्ता रोकती है. बात है कि सौ किलोमीटर से अधिक की दूरी सड़क से तय करने का फैसला कब हुआ? क्या इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इतनी लंबी यात्रा सड़क से की है?

संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी किया है कि वहां के प्रदर्शनकारी किसानों को इसकी पुख्ता सूचना नहीं थी कि प्रधानमंत्री का काफिला वहां से गुज़रने वाला है. उन्हें तो प्रधानमंत्री के वापस जाने के बाद मीडिया से पता चला. संयुक्त मोर्चा ने यह भी कहा कि काफिले के नज़दीक प्रदर्शनकारी नहीं गए थे. मगर भाजपा के समर्थक भाजपा का झंडा लेकर कैसे चले गए?

आधिकारिक तौर पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. गृह मंत्रालय की तरफ से एक बयान आया है जिसे पीआईबी ने जारी किया है. इसमें हुसैनीवाला जाने की बात तो लिखी है लेकिन यह नहीं लिखा है कि कार्यक्रम पहले से तय था. प्रधानमंत्री हुसैनीवाला हेलीकॉप्टर से जा रहे थे इसकी सूचना किसे थी?

फिर इसका ज़िक्र प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में क्यों नहीं था जिसे खुद उन्होंने 5 जनवरी को जारी किया था. हुसैनीवाला और रैली स्थल में कोई 10-12 किलोमीटर की दूरी है तो एक जगह की यात्रा को गुप्त रखने की बात बहुत जमती नहीं है.

चलते-चलते एक बड़ा सवाल और है. समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से एक खबर आती है कि ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना, मैं भठिंडा से ज़िंदा लौट आया.’

एएनआई के अनुसार प्रधानमंत्री ने यह बात एयरपोर्ट पर अधिकारियों से कही है. किसी ने पता लगाने का प्रयास किया कि किन अधिकारियों से यह बात कही और एएनआई ने इसे छाप दिया और यही हेडलाइन हर जगह बनती है.

इस लाइन से भावनाओं में उबाल लाने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन यह साफ नहीं कि प्रधानमंत्री ने एयरपोर्ट पर किन अधिकारियों से बात की? उन अधिकारियों ने क्या पंजाब के मुख्यमंत्री को बताया कि प्रधानमंत्री का ऐसा संदेश है?

अगर इसका जवाब नहीं आता है तो यह माना जाना चाहिए कि एएनआई की यह सूचना संदेहों से परे नहीं हैं. क्या इस तरह की हेडलाइन बने ऐसा कुछ सोचकर जारी किया गया? आपने किसी कवरेज में देखा कि पत्रकार उन अधिकारियों को खोज रहे हैं, उनसे बात कर रहे हैं?

आपकी नियति नौटंकियों से तय नहीं होनी चाहिए. ठोस सवालों और जवाबों से होनी चाहिए. प्रधानमंत्री का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है कि वे खुद को मुद्दा बना देते हैं. नोटबंदी के दौरान जब जनता भूखे मर रही थी तो प्रधानमंत्री ने पहले विदेश में मज़ाक उड़ाया लेकिन भारत आकर रोने लगे. इस तरह का रिकॉर्ड रहा है.

इस बार ऐसा नहीं हुआ है इसलिए सवालों का जवाब गंभीरता से दिया जाना चाहिए. आधिकारिक रूप से दिया जाना चाहिए. बाकी आप मीम बनाते रहिए.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)

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