वोट बैंक छिनने का डर, ओबीसी आरक्षण सीमा घटाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा-कांग्रेस में रार  

मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण संबंधी सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस के लिए नई मुसीबत बन गया है। कांग्रेस चुनाव के लिए जारी अधिसूचना के खिलाफ न्यायालय गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके बजाय ओबीसी आरक्षण पर आदेश दे दिया। इसके चलते राज्य निर्वाचन आयोग को उन सीटों पर निर्वाचन फिलहाल रद्द करना पड़ा है। भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ ओबीसी विरोधी अभियान छेड़ दिया है और कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है।

कांग्रेस ने पंचायत चुनावों पर राज्य सरकार की अधिसूचना के खिलाफ याचिका लगाई थी। इसमें चुनावों में रोटेशन प्रक्रिया न अपनाने और कांग्रेस द्वारा किए गए पंचायतों के परिसीमन को खत्म किए जाने पर आपत्ति जताई गई थी। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वकील विवेक तन्खा मामले में पैरवी कर रहे थे। हाइकोर्ट के अंतरिम सुनवाई न करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की। वहां कांग्रेस की याचिका पर कोई निर्णय तो नहीं आया, लेकिन कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण की सीमा को गलत बताते हुए राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि कुल आरक्षण पचास फीसदी से ज्यादा हो रहा है। इसलिए ओबीसी आरक्षण वाली सीटों की संख्या कम की जाए। न्यायालय ने महाराष्ट्र की तरह मध्य प्रदेश में भी स्थानीय निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट लागू करने के निर्देश दिए हैं। इसमें राज्यस्तरीय आयोग के गठन करने का उल्लेख है। यह आयोग इस वर्ग की आबादी के हिसाब से सिफारिश सरकार को देगा। उसी आधार पर आरक्षण तय किया जाएगा।

इसके बाद मध्य प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक साधने की होड़ मच गई और पंचायत चुनावों पर हो रही राजनीति ओबीसी आरक्षण पर केन्द्रित हो गई। विवेक तन्खा फैसले के बाद लगातार सफाई दे रहे हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट में पंचायत चुनावों में आरक्षण के रोटेशन और परिसीमन की व्यवस्था को लेकर गए थे। उनकी याचिका में ओबीसी आरक्षण की कोई बात नहीं है।

मध्य प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह आरोप लगा रहे हैं कि विवेक तन्खा ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाने के लिए कहा था। इधर राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति के साथ पत्र लिखकर पंचायत चुनाव में ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित करने की अधिसूचना जारी कर जानकारी देने कहा है।

कांग्रेस के ओबीसी नेता कमलेश्वर पटेल ने कहा कि भाजपा की सोच हमेशा आरक्षण समाप्त करने की रही है, इसीलिए जानबूझकर चुनाव प्रक्रिया में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया। अगर शिवराज सरकार सही ढंग से पैरवी करती, तो इस तरह का फैसला नहीं आता।

ओबीसी आरक्षण वोट बैंक के लिहाज से बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए दोनों पार्टियां लगातार इसके पक्ष में तर्क दे रही हैं। पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण की यह सीमा लंबे समय से चली आ रही थी। यदि कांग्रेस न्यायालय में मामला नहीं ले जाती तो शायद यह चलता रहता। भाजपा इसे ही भुनाना चाहती है। बड़ी संख्या में ओबीसी आबादी को देखते हुए भाजपा आरक्षण के खिलाफ कतई नहीं दिखना चाहेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *