वैक्सीन नीति पर पुनर्विचार को लेकर केंद्र ने कहा- अदालत के हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं

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नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसकी वैक्सीन नीति वैक्सीन की सीमित उपलब्धता, जोखिम का मूल्यांकन और महामारी के अचानक आने के कारण पूरे देश में एक बार में संभव नहीं हो सकने के तथ्यों को मुख्य रूप से ध्यान में रखते हुए तैयार की गई थी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने कहा है, ‘यह नीति न्यायसंगत, गैर-भेदभावपूर्ण और दो आयु समूहों (45 से अधिक और नीचे वाले) के बीच एक समझदार अंतर कारक पर आधारित थी.’ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा, ‘इस प्रकार यह नीति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के अनुसार है और विशेषज्ञों, राज्य सरकार और वैक्सीन निर्माताओं के साथ परामर्श और चर्चा के कई दौर के बाद बनी है.’ हलफनामे में कहा गया है, ‘नीति को इस माननीय न्यायालय द्वारा किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस स्तर की एक महामारी से निपटने के दौरान कार्यपालिका के पास जनहित में फैसले लेने का अधिकार है.’

बता दें कि, बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान आपूर्ति और जरूरी सेवाओं के पुनर्वितरण से संबंधी एक स्वत: संज्ञान याचिका को लेकर कहा था कि जिस तरह से केंद्र की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है.

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