8 माह से इंतजार, बड़े जिलों में फंसा मंत्रियों का प्रभार,15 अगस्त तक किया जाना है जिलों का बंटवारा
भोपाल। मप्र में मंत्रिमंडल गठन के करीब 8 माह का अरसा बीत गया है, लेकिन मंत्रियों को अभी तक जिलों का प्रभार नहीं दिया गया है। स्वतंत्रता दिवस परेड की सलामी और प्रदेश में होने वाले कर्मचारियों के तबादलों की जिम्मेदारी जिलों का प्रभार देखने वाले मंत्री ही संभालेंगे। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 15 अगस्त तक मंत्रियों को जिलों का प्रभार दे दिया जाएगा। लेकिन भाजपा सूत्रों का कहना है कि बड़े जिलों की चाह में मंत्रियों के जिलों का प्रभार फंसा हुआ है। यानी अधिकांश मंत्री इंदौर, उज्जैन, रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, सागर जैसे जिलों का प्रभार चाहते हैं। इसी कशमकश में सूची को अंतिम रूप देने में अधिक समय लग गया है। बताया जा रहा है कि इसको फाइनल करने के लिए दिल्ली नेतृत्व से भी सहमति ली गई है। गौरतलब है कि मप्र में भाजपा की सरकार के गठन के बाद से विभागों के बंटवारे के लिए भी मंत्रियों को लंबा इंतजार करना पड़ा। अब मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों के बंटवारे में भी लंबा वक्त बीत चुका है। मप्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आए थे। इसमें भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। चुनावी नतीजे के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम के ऐलान में पार्टी को 8 दिन का वक्त लग गया। मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान 11 दिसंबर को किया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री ने 12 दिसंबर को शपथ ली। सीएम की शपथ के बाद मंत्रियों के नामों की सूची भी अटक गई थी। मोहन कैबिनेट के मंत्रियों की सूची जारी होने में 13 दिन लग गए थे। 25 दिसंबर को 28 मंत्रियों ने शपथ ली। मंत्रियों की शपथ हुई, लेकिन इसके बाद विभागों के बंटवारे में 5 दिन का समय लग गया। 30 दिसंबर को मंत्रियों को विभागों का बंटवारा हो सका। मोहन सरकार के गठन को 8 माह का समय हो गया है, लेकिन अभी तक विभागों के जिलों के प्रभार की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा सकी है।
मप्र में मोहन यादव सरकार के मंत्रियों का 8 माह से जिलों के प्रभार का इंतजार है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय मंत्री अमित शाह से पिछले दिल्ली दौरे के दौरान मुलाकात की थी। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रभारी मंत्रियों की सूची को अंतिम रूप दे दिया है। बताया जा रहा है कि तय किए गए फार्मूले के मुताबिक डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा को एक से अधिक जिले की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसी तरह प्रदेश के कद्दावर मंत्रियों को भी बड़े जिलों की कमान देने की तैयारी की जा रही है। माना जा रहा है कि 15 अगस्त के पहले मंत्रियों को जिलों के प्रभार का बंटवारा हो जाएगा क्योंकि प्रभारी मंत्री ही अपने प्रभार वाले जिलों में झंडा वंदन करते हैं। हालांकि पिछले दिनों मुख्यमंत्री ऐलान कर चुके हैं कि मंत्री अपने प्रभार वाले जिलों में झंडा फहराएंगे। पिछले दिनों दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। बताया जा रहा है कि जल्द ही मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों की लिस्ट जारी हो जाएगी। प्रभारी मंत्री जिले में महत्वपूर्ण होता है और तमाम विकास कार्यों का अनुमोदन प्रभारी मंत्री से लिया जाता है। जिले में होने वाले तमाम मुद्दों पर प्रभारी मंत्री से राय लेनी होती है। प्रभारी मंत्री के जरिए ही मुख्यमंत्री तक जिलों की समस्याएं पहुंचाई जाती हैं।
एक तरफ जिलों का प्रभार लेने के लिए मंत्रियों की प्राथमिकता बड़े जिले हैं, वहीं सत्ता और संगठन की रणनीति है कि जिन जिलों में भाजपा का कमजोर जनाधार रहा है उन जिलों का प्रभार वरिष्ठ मंत्रियों को दिया जाएगा। वे प्रभार के जिलों में सरकार और पार्टी दोनों के बीच तालमेल बनाते हुए कार्य करेंगे और प्रयास होगा कि अगले चुनाव में वहां पार्टी का जनाधार पूरी तरह से मजबूत कर लिया जाए। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि यह मुख्यमंत्री का अधिकार है कि किस मंत्री को किस जिले का प्रभार सौंपा जाएगा। जिलों का प्रभार सौपने से पहले मुख्यमंत्री मंत्रियों से उनकी पंसद भी पूछते हैं। अमूमन मंत्रियों को गृह जिले का प्रभार नहीं सौंपा जाता। प्रभारी मंत्री को जिले में चल रही योजनाओं की सीधी मॉनीटरिंग और नई योजनाओं की मंजूरी का अधिकार रहता है। जिला स्तर पर होने वाले प्रत्येक कर्मचारी के तबादले के लिए प्रभारी मंत्री अनुशंसा करते हैं। प्रभारी मंत्री द्वारा समय-समय पर जिला योजना समिति की समीक्षा बैठक की जाती है।
अगस्त की 15 तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, जिलों के प्रभार को लेकर मंत्रियों की बेसब्री बढ़ती जा रही है। जुलाई में पत्रकारों से चर्चा में मंत्रियों को जिलों का प्रभार दिए जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा था, 15 अगस्त को मंत्री अपने प्रभार के जिलों में तिरंगा फहराएंगे। उसके बाद से जिलों का प्रभार देने के कयास लगाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री जब दिल्ली जाते हैं, तो चर्चाएं शुरू हो जाती हैं कि वे केंद्रीय नेतृत्व से मंत्रियों को जिले का प्रभार की सूची पर मोहर लगवाने गए हैं, इससे मंत्रियों की उम्मीद भी बढ़ जाती है, लेकिन अभी तक इस संबंध में निर्णय नहीं लिया जा सका है। मप्र सरकार के मंत्रिमंडल के गठन को सात महीने से ज्यादा हो गए हैं। गत 25 दिसंबर को 28 मंत्रियों ने शपथ ली थी। मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जिले के भीतर कर्मचारियों के तबादले कलेक्टर के माध्यम से प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से होते हैं। सरकार कर्मचारियों के तबादलों से प्रतिबंध हटाने की तैयारी कर चुकी है, लेकिन मंत्रियों को जिलों का प्रभार नहीं सौंपे जाने से तबादलों से बैन नहीं हट पा रहा है।
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