मप्र में अडानी और बिड़ला को नहीं मिल रही जमीन, तीन साल से कोल ब्लॉक के लिए जमीन तलाश रहे दोनों समूह
भोपाल। मप्र में रिलायंस और आदित्य बिरला ग्रुप के बाद अडानी ग्रुप की भी कोल ब्लॉक शुरू करने में एंट्री हो चुकी है। लेकिन तीन साल का समय गुजर जाने के बाद भी अडानी और बिड़ला को कोल ब्लॉक के लिए अभी तक जमीन नहीं मिल पाई है। गौरतलब है कि मप्र के कोल ब्लॉक में एंट्री कर चुके उद्योगपति गौतम अडानी पिछले साल सिंगरौली पहुंचे थे। सिंगरौली के धिरौली में अडानी समूह को कोल ब्लॉक आवंटित हुआ है। अडानी को आवंटित हुई सिंगरौली की धिरौली कोयला खदान से साल भर में करीब 583 मिलियन टन कोयला साल भर मे निकलेगा। इससे सरकार को करीब 398 करोड़ का राजस्व मिलेगा। इसके अलावा अडानी और बिड़ला गु्रप प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में कोल ब्लॉक के लिए जमीन तलाश रहे हैं।
विडंबना यह है कि देश की ये दो बड़ी कारोबारी कंपनियां प्रदेश में जमीन के चक्कर में तीन सालों से उलझी हुई हैं। इन्हें करीब 23 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन की दरकार है। कंपनियां किसानों से जमीन के लिए संपर्क कर रही हैं, ताकि यह कोल ब्लॉक की – जमीन के बदले दीगर जमीन सरकार को उपलब्ध कराकर सिंगरौली में कोल खनन का काम आगे बढ़ा सकें, पर बात नहीं बन रही।
तीन साल पहले लिए थे कोल ब्लॉक
गौरतलब है कि अडानी-बिड़ला ग्रुप ने सिंगरौली में तीन साल पहले खुली निविदा के जरिए कोल ब्लॉक लिए थे। बिड़ला का कोल ब्लॉक 750 हेक्टेयर का है, जबकि अडानी का 1545 हेक्टेयर का है। ये दोनों खदानें वन क्षेत्र में है, इसलिए इनके बदले में कंपनियों को वन और पर्यावरण के लिए जमीन देना है। कोल ब्लॉक की जद में आने से जितने पेड़ काटे जाएंगे, उसके अनुसार इन्हें पौधरोपण और उसके रख-रखाव के लिए पैसे भी देने होंगे। इसके लिए कंपनियां तैयार हैं, लेकिन जमीन नहीं मिल रही। वन विभाग के पीसीसीएफ सुनील अग्रवाल ने बताया, अडानी-बिड़ला ग्रुप की कंपनियों को कोल ब्लॉक के क्षेत्रफल के अनुसार वन विभाग को भूमि उपलब्ध कराना है। अडानी ग्रुप की कंपनी ने डिंडोरी में जमीन बताई, जो पौधरोपण के लिए उपयुक्त नहीं है। जमीन उपलब्ध कराने और वनीकरण क्षतिपूर्ति देने के बाद कंपनियों को पर्यावरण सहित अन्य अनुमतियों का प्रस्ताव तैयार किया जा सकेगा।
कई जिलों में तलाशी जा रही जमीन
सूत्रों ने बताया कि कोल ब्लॉक के लिए कई जिलों में जमीन तलाशी जा रही है। जानकारी के अनुसार पनियां सागर, डिंडौरी, कंपनियां सागर, शाजापुर और धार जिले में विशेष तौर पर जमीन की तलाश कर रही हैं। दरअसल, इन जिलों में जमीनों की दरें कम हैं और किसान भी खेती पर बहुत ज्यादा आश्रित नहीं हैं। बताया जाता है कि हाल ही में इन जिलों में अडानी की इन में अपनी कंपनी के प्रतिनिधियों ने कुछ किसानों से जमीन का सौदा किया था, लेकिन जैसे ही इन्हें पता कि चला कि कंपनी के लिए जमीन खरीदी जा रही है तो किसानों ने जमीन की कीमतें चार गुना कर दीं। इससे सौदा भी टूट गया। वहीं छतरपुर बंदर हीरा खदान के बदले बिड़ला ग्रुप को कलेक्टर ने 380 हेक्टेयर जमीन उपलब्ध करा दी है। लेकिन, हीरा खदान हो या न हो, इसे लेकर मामला फिलहाल कोर्ट में है। इसलिए कंपनी को खनन के लिए वन पर्यावरण की स्वीकृति मिलने में देरी हो रही है। साथ ही केन-बेतवा लिंक परियोजना भी जमीन के चक्कर में उलझी हुई है। इस परियोजना के लिए करीब साढ़े 6 हजार हेक्टेयर जमीन चाहिए है। करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन उपलब्ध कराई जा चुकी है। दो हजार हेक्टेयर और जमीन वन विभाग को देनी होगी, क्योंकि ये पूरी परियोजना वन भूमि पर है।
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