मप्र: राज्य सरकार तीन साल बाद भी नहीं कर पाई शिक्षकों को लेकर फैसला,शिक्षकों को क्रमोन्नति दें या समयमान वेतनमान
भोपाल। राज्य सरकार शिक्षकों को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई है कि उन्हें क्रमोन्नति दें या समयमान वेतनमान दें।तीन साल के अथक मंथन के बाद भी राज्य सरकार फैसला नहीं कर पाई है। इससे प्रदेश के 80 हजार शिक्षकों के हित प्रभावित हो रहे हैं। पौने तीन साल तक क्रमोन्नति की नोटशीट मंत्रालय में स्कूल शिक्षा, सामान्य प्रशासन, वित्त विभाग के अधिकारियों के बीच घूमती रही। अधिकारियों को बहुत बाद में समझ आया कि समयमान वेतनमान दिया जाना है और मई 2022 में लोक शिक्षण संचालनालय से फिर से प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया। यह प्रस्ताव भी करीब डेढ़ महीने से मंत्रालय में घूम रहा है। सूत्र बताते हैं कि प्रस्ताव पर वित्त विभाग की अनुशंसा का इंतजार है। फिर इसे सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा जाएगा।प्रदेश में दो लाख 87 हजार शिक्षक (अध्यापक से शिक्षक बने) हैं, जो शिक्षक वर्ष 2006 में नियुक्त हुए थे। उनकी 12 साल की सेवा वर्ष 2018 में पूरी हो गई। इसी के साथ वे क्रमोन्नति या समयमान वेतनमान के लिए पात्र हो गए। तभी से क्रमोन्नति की मांग की जा रही है, पर सरकार निर्णय ही नहीं ले पा रही है। यह स्थिति तब है, जब निर्णय लेने वाले विभाग सामान्य प्रशासन के मुखिया इंदरसिंह परमार हैं। परमार स्कूल शिक्षा विभाग के भी मंत्री हैं। एक ही मंत्री के पास दोनों विभाग होते हुए भी शिक्षकों को अधिकार नहीं मिल पा रहा है, इससे उनमें नाराजगी है। दरअसल, प्रदेश में वर्ष 2006 से समयमान वेतनमान दिए जाने का प्रविधान है और अधिकारी क्रमोन्न्ति का प्रस्ताव दे रहे हैं। तब प्रस्ताव बदलने को कहा गया। बता दें कि शिक्षकों को जल्द ही क्रमोन्न्ति देने के मंत्री ने तीन बार वादे किए हैं। पौने तीन साल में करीब चार बार क्रमोन्नति की नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों के हाथों से गुजरी, पर मई में विभाग के एक अधिकारी ने पकड़ा कि प्रस्ताव ही गलत है।