मुख्यमंत्री शिवराज ही नहीं केंद्रीय मंत्री सिंधिया भी डूबे हैं कारम बांध के भ्रष्टाचार में ; सीपीएम
भोपाल।305 करोड़ के कारम बांध के पहली ही पानी भराई में बह जाने और 18 गांवों की 22 हज़ार से ज्यादा जिंदगियों को दांव पर लगाने वाले इस भ्रष्टाचारी पाप में शिवराज ही नहीं सिंधिया भी भागीदार हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने कहा है कि प्रश्न यह नहीं है कि दिल्ली की ब्लैक लिस्टेड कंपनी को ठेका कैसे दे दिया गया। प्रश्न यह है कि कैसे यह ठेका पेटी कॉन्ट्रैक्ट के नाम पर सारथी कंपनी के पास पहुंच गया, जिसमें 50 फीसद शेयर मुख्यमंत्री के ओ एस डी नीरज वशिष्ट के हैं। इस तरह दिल्ली के रास्ते ग्वालियर होता हुआ ठेका भोपाल ही नहीं मुख्यमंत्री कार्यालय ही पहुंच गया था।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि इसीलिए इस बांध की लागत को 105 करोड़ से बढ़ा कर 305 करोड़ कर दिया गया ताकि जमकर भृष्टाचार किया जा सके।
जसविंदर सिंह ने कहा है कि इस मामले में मुख्यमंत्री की भागीदारी तीन बातों से स्पष्ट है। पहला मंत्रिमंडल में विरोध के बावजूद ठेका देना। दूसरा इस ठेके की क्लीयरेंस में कोई तकनीकी दिक्कत न हो ,इसलिए भाजपा नेता माधव सिंह डाबर के भाई को रिटायरमेंट के चार माह बाद कानूनों को ताक पर रख कर नियुक्ति देना। तीसरा अपने ओ एस डी के माघ्यम से पूरी राशि पर अपना नियंत्रण कर लेना।
माकपा ने कहा है कि ई डी के छापे में जब पाया गया था कि इस कंपनी ने 93 करोड़ की रिश्वत दी है तो फिर साफ है कि जब काम शुरू होने से पहले ही एक तिहाई राशि डकार ली गई तो बाकी बचे पैसे की भी ऐसे ही बंदरबांट हुई होगी।
जसविंदर सिंह ने कहा है कि एक समाचार एजेंसी के अनुसार सिंधिया के साथ आए विधायकों के साथ सौदा पक्का करने की 1-1 करोड़ की राशि इसी कंपनी के मालिक अशोक भारद्वाज ने ही दी थी। जिससे जाहिर है कि शिवराज सरकार की बुनियाद इसी बांध के भृष्टाचार पर टिकी हुई है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि मुख्यमंत्री और जल संसाधन मंत्री जानते हैं कि यदि इस घोटाले की परतें उतरती हैं तो मुख्यमंत्री और सिंधिया ही लपेटे में आएंगे। इसीलिए वे इस मुद्दे पर राजनीति न करने के उपदेश दे रहे हैं। पार्टी ने इस घोटाले की जांच करने के लिए उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग की है।