ग्वालियर वालों तुम क्या जानो क्या होती है बारिश?: मुकेश नेमा
बारिश ! ग्वालियर में ? क्या बात कर रहें है आप ? हमसे तो यार रिश्तेदार भी कभी मौसम बाबत खोज खबर नहीं लेते। सबको पता है कि यहाँ के मौसम के कैलेंडर में बारिश शामिल नहीं। बारिश का ग्वालियर से क्या लेना देना ? मध्यप्रदेश का अरब है ये। तेल ,रेत ,खजूर और पेट्रो डॉलर भर नही यहाँ। बाकी सब सेम टू सेम। बहुत बार तो इस शहर मे बच्चा पैदा होने के ,पाँच सात साल का हो जाने के बाद ही काले बादल और आसमान से गिरता पानी देख पाता है। देखता है तो डर जाता है। दौड़ कर माँ की गोद मे जा छुपता है ! यह बात अलग है कि उसकी माँ ख़ुद उस वक्त बारिश देख कर डरी हुई होती है।
यदि आप यहाँ के किसी बाशिंदे से कभी किसी से बारिश की चर्चा करेंगे तो पूरी गुंजाइश है कि उसका खुला मुँह बंद ही न हो। जिसने कभी हिप्पोपोटामस देखा न हो उसे उसके बारे में कैसे समझा पायेंगे आप। बारिश क्यों होती है और कैसे होती है ये थ्योरी समझाना तो और भी मुश्किल।ऐसे में यदि आप उन्हें यह बताएँ कि बारिश खुश होने की चीज है तो उन्हें आपके दिमाग़ के सही जगह पर टिके होने बाबत भी शक हो सकता है।
बारिश यहाँ कहा जाता है ,सुना जाता है टाईप की चीज़ है। यहाँ के बडे बुज़ुर्ग लम्बी लम्बी छोड़ते है। तुम क्या जानो क्या होती है बारिश ।
हमारे वक्त फलाने सन मे ऐसी झमाझम बारिश हुई थी कि क्या बतायें। ऐसी तेज़ हवा चली। अमूल वाली लड़की मय बोर्ड के उड़ती हुई गिरी हमारे आँगन मे। वो शर्माजी है ना अपने। वो तो गाँधी रोड पर नीम की बड़ी डाल के चपेटे मे ही आ गये थे। टूटी पसलियाँ लिये घूमते रहे हफ्तों तक। ऐसी हुई बरसात कि गड्डे तक दिखना मुहाल था सड़कों के। घरों के चबूतरे तक डूब गये थे। बड़ी मुश्किल हुई थी बेटा। पायजामे फ़ोल्ड किये तब घुस पाये घर में।
ऐसा भी नही कि किसी ग्वालियर वाले ने कभी बारिश देखी ही नही। जब भी किसी ख़ानदानी अमीर ग्वालियर वाले को बारिश देखने की हुडक उठती है तो वह दिल्ली भोपाल की तरफ रवानगी डाल लेता है। देख आता है और लौट कर लोगों को क़िस्से सुनाता है बारिश के। जिसे लोग चंडूखाने की गप समझ कर आगे बढ़ जाते है।
बारिश का मतलब जानता नहीं यह शहर । कैसे जाने। हो तो पहले बारिश। कभी-कभी थोडी बहुत पिचकारियाँ सी चलती है और ग्वालियर वाले उसे ही बारिश मान कर खुश हो लेते है। रेनकोट और छाते जैसी चीज़ें भी होती है ,यह बात इस शहर की आधी आबादी नहीं जानती। बहुत बार लगातार बारिश होने पर स्कूल और दफ़्तरों की छुट्टी भी हो जाती है। लोग बारिश में भीगने भी निकल पड़ते है घरों से। पकौड़ों का रिश्ता बरसात से भी है और काग़ज़ की नावें भी बनती है ऐसी बातें इस शहर वालो को समझाना बहुत मुश्किल है। वो तो भला टीवी वालो का। यदि यहाँ के बाशिंदों ने टीवी स्क्रीन पर ,सर पर खटिया पोटलियाँ धरे कमर भर पानी में चलते लोग ,चढ़ी हुई नदियाँ और बहते घर ना देखे होते तो इस शहर में बाढ़ की बात करने वाले का दौड़ा दौड़ा कर पीटा जाना तय था।
इस शहर के बाशिंदे जब दूसरे शहरों में मूसलाधार बारिश होने की खबर सुनते है और जब अपनी अम्मा से मूसल के बारे में जानकारी हासिल करते है तो उन्हें टीवी चैनल्स के खबरियं की अक्ल पर दया आने लगती है यदि गूगल भी कभी भूले भटके ,ग्वालियर मे बरसात की संभावना का ज़िक्र करता है तो ख़ुद मुझे भी गूगल पर शक होने लगता है।
बादलों को बैर है इस शहर से। मैंने अलग अलग किश्तों में लगभग बारह साल बिताये हैं यहाँ। पर कभी लगातार बारिश हुई हो। सितम्बर ख़त्म होते होते तक कुछ वो बादल जो दूसरे शहरों में बरस बरस कर बोर हो चुके होते है जब अपने घर लौटते वक्त ग्वालियर के आसमान से होकर गुज़रते है तो मज़ाक़ सा उड़ाते है इस शहर का। अपनी खाली होती टंकी का वॉल्व खोलते है कभी कभी। तलछट में बचे थोड़े बहुत पानी से थोडी बहुत रिमझिम करते है और मुँह चिढ़ाते हुये निकल लेते है।
बादल बरसे तो बरसे भी क्यों इस शहर में । जंगल है नही यहाँ जिनका न्यौता उन्हें बुला ले। ताल तलैया जैसी कोई भी चीज़ें भी यहाँ नही पाई जाती जिनमें पानी ठहर सके। यहाँ की नदियाँ शहर का कूडा ढोते ढोते बेदम हो चुकी। यहाँ के नलों मे टोटियाँ नही जो बहते पानी को रोक लें। पानी वहाँ जाये जहाँ उसे इज्जत मिलने की उम्मीद हो ,ग्वालियर वाले अपनी पर आ जाये तो अपने बाप का भी लिहाज़ नही करते ऐसे मे पानी और बादलों की क्या बिसात कि ग्वालियर के आसपास भी फटक सकें।
ऐसा है बेपानी ग्वालियर। हमेशा से ऐसा था और हमेशा ऐसा ही रहने वाला है।
लेखक-मुकेश नेमा
श्री नेमा मध्य प्रदेश आबकारी विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं और ग्वालियर में पदस्थ हैं।