दुष्कर्म मामले में डीएनए प्रोफाइलिंग न होने या जांच में खामी की वजह से नहीं दी जा सकती राहत:सुको
2005 में ग्वालियर में दुष्कर्म के बाद मासूम की हुई थी हत्या
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आठ साल की एक मासूम के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के आरोपी की उम्रकैद की सजा को कम करने से इनकार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि डीएनए प्रोफाइलिंग में चूक या प्रक्रिया की खामी की वजह से दुष्कर्म और उसके साथ ही हत्या जैसे गंभीर अपराध के आरोपी को नहीं छोड़ा जा सकता।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में दी गई निचली अदालत की मौत की सजा को इस शर्त के साथ आजीवन कारावास में बदला कि इस दौरान वास्तविक सजा (30 साल कैद) भुगतने से पहले वह समय पूर्व रिहाई या छूट का हकदार नहीं होगा। उसे अपनी आजीवन उम्रकैद की सजा काटनी होगी। जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी की ओर से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मृत्युदंड के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका पर ये टिप्पणी की।
पीठ में शामिल जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार ने अभियुक्त की ओर से पेश वकील की प्रक्रिया गत खामी के दावों पर गौर किया मगर उसकी दलील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि प्रक्रिया गत खामी के बावजूद अदालत घटना स्थल से बरामद साक्ष्यों के रिकॉर्ड के आधार पर विचार कर सकती है। पीठ ने कहा कि जांच निष्पक्ष होनी चाहिए इसमें कोई संदेह नहीं हैं। इसके साथ ही जांच एजेंसियों को पीड़ित और आरोपी दोनों के अधिकारों की रक्षा भी करनी चाहिए। दरअसल, याचिकाकर्ता पीड़िता का रिश्ते में मामा है। दुष्कर्म और हत्या का यह मामला सितंबर 2005 को ग्वालियर में सामने आया था।