महिलाओं को जानवरों जैसे हाल में रखने वाले आश्रम को अपने नियंत्रण में ले दिल्ली सरकार: कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिणी के एक आश्रम के प्रबंधन पर नाराज़गी व्यक्त की, जहां कई महिलाओं को ‘जानवरों जैसी स्थितियों’ में रखने का आरोप है. अदालत ने कहा कि आश्रम की स्थापना करन वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया है और वर्तमान में वह फ़रार है. ऐसे में यह स्वीकार करना मुश्किल है कि बाशिंदे अपनी मर्ज़ी से वहां रह रहे हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तरी दिल्ली स्थित एक आश्रम के प्रबंधन पर नाराजगी व्यक्त की, जहां कई महिलाओं को ‘जानवरों जैसी परिस्थितियों’ में रखने का आरोप लगाया गया है.
अदालत ने कहा कि इसका प्रबंधन दिल्ली सरकार को अपने हाथ में लेना चाहिए.
ल्ली हाईकोर्ट ने रोहिणी के एक आश्रम के प्रबंधन पर नाराज़गी व्यक्त की, जहां कई महिलाओं को ‘जानवरों जैसी स्थितियों’ में रखने का आरोप है. अदालत ने कहा कि आश्रम की स्थापना करन वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया है और वर्तमान में वह फ़रार है. ऐसे में यह स्वीकार करना मुश्किल है कि बाशिंदे अपनी मर्ज़ी से वहां रह रहे हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तरी दिल्ली स्थित एक आश्रम के प्रबंधन पर नाराजगी व्यक्त की, जहां कई महिलाओं को ‘जानवरों जैसी परिस्थितियों’ में रखने का आरोप लगाया गया है.
अदालत ने कहा कि इसका प्रबंधन दिल्ली सरकार को अपने हाथ में लेना चाहिए.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस नवीन चावला पीठ ने आश्रम आध्यात्मिक विद्यालय, रोहिणी को कारण बताने को कहा कि इसका प्रबंधन दिल्ली सरकार द्वारा क्यों अपने हाथ में नहीं लिया जाना चाहिए और संबंधित पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि 21 अप्रैल को मामले की फिर से सुनवाई से पहले वहां रहने वालों को नहीं हटाया जाए.
पीठ ने कहा कि जिस व्यक्ति ने आश्रम की स्थापना की थी, उसके खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा आरोप पत्र दायर किया गया है और वर्तमान में वह फरार है तथा यह स्वीकार करना मुश्किल है कि बाशिंदे अपनी मर्जी से वहां रह रहे हैं.
अदालत आश्रम में रहने वालों में से एक महिला के माता-पिता द्वारा उससे मुलाकात की अनुमति के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
पीठ ने कहा, ‘हमें यह स्वीकार करना मुश्किल लगता है कि संस्था के निवासी अपने पूरे होश हवास में हैं और यह दावा करते हैं कि वे अपनी मर्जी से संस्था में हैं तथा वे दबाव और अनुचित प्रभाव में नहीं हैं.’
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने अदालत को संबंधित मामले में सौंपी गई एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि आश्रम में 100 से अधिक रहवासी धातु के दरवाजों के पीछे ‘जानवरों जैसी स्थिति’ में रह रहे हैं और कई नशीली दवाओं के प्रभाव में थे.
अदालत ने कहा, ‘यह कैसा आश्रम है? दिल्ली जैसे शहर में दिनदहाड़े ऐसा हो रहा है. हम सरकार को संस्था को अपने नियंत्रण में लेने का निर्देश देने जा रहे हैं.’
अदालत ने आदेश में कहा, ‘प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि प्रतिवादी नं. 6 संस्था के प्रबंधन और संचालन का जिम्मा दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग को लेना चाहिए. इसलिए, हम प्रतिवादी संख्या 6 को नोटिस जारी कर रहे हैं कि वह बताए कि दिल्ली सरकार को अपने नियंत्रण में लेने का निर्देश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए.’
याचिकाकर्ता की बेटी की ओर से पेश वकील श्रवण कुमार ने कहा कि आश्रम का संचालन रहवासी खुद कर रहे हैं. अदालत ने निर्देश दिया कि वर्तमान मामले को आश्रम के मामलों से संबंधित एक अन्य याचिका के साथ 21 अप्रैल को सूचीबद्ध किया जाए.
अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी बेटी से मिलने दिया जाए और संबंधित डीसीपी से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा.
दिसंबर 2017 में गैर सरकारी संगठन ‘फाउंडेशन फॉर सोशल एम्पावरमेंट’ की एक याचिका पर उच्च न्यायालय ने सीबीआई से आश्रम के संस्थापक वीरेंद्र देव दीक्षित का पता लगाने के लिए कहा था.
याचिका में आश्रम के उन दावों पर संदेह जताया गया था कि वहां महिलाओं को अवैध रूप से रोककर नहीं रखा गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, आश्रम के वकील ने एम्स और आईएचबीएएस के डॉक्टरों की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें दावा किया गया था कि वहां रहने वाली महिलाओं के साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ है.
लेकिन पीठ ने कहा कि रिपोर्ट दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और अदालत द्वारा नियुक्त न्यायमित्र नंदिता राव द्वारा दी गई अन्य निरीक्षण रिपोर्टों से मेल नहीं खाती.