दौलतराव सिंधिया,जनकोजीराव और जयाजीराव सिंधिया की छत्रियां कला की दृष्टि से हैं महत्वपूर्ण, सिंधिया शासन का झलकता है सौंदर्य
राजेश शुक्ला,ग्वालियर ।मध्य प्रदेश का ग्वालियर जिला ऐतिहासिक दृष्टि से पूरे प्रदेश में अपना एक विशेष स्थान बनाए हुए हैं। ग्वालियर चंबल संभाग में जितना भी विकास और ऐतिहासिक विरासतें देखने को मिलती हैं उसमें सिंधिया वंश का योगदान अतुलनीय है।
(वर्ल्ड हेरिटेज डे विशेष)
हम बात कर रहे हैं महाराज बाड़ा से जनकगंज का और जाते हुए छत्री बाज़ार स्थित सिंधिया वंश की छत्रियों की। यहां पर दौलतराव सिंधिया, जनकोजी राव सिंधिया एवं जयाजीराव सिंधिया की छतरियां कला की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण व अत्यंत आकर्षक और ऐतिहासिकता से भरपूर है। श्वेत एवं गुलाबी पत्थरों से निर्मित इन क्षत्रियों के आंतरिक भाग में सिंधिया वंश के शासकों की मूर्तियां स्थापित हैं क्षत्रियों की विधियों पर अंकित पुष्प बेले बहुत आकर्षण का केंद्र है और देखने वालों को कालांतर पीछे ले जाती हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक़ सिंधिया वंश हिंदू धर्म के प्रबल समर्थक थे और यह भी सर्वविदित है कि सिंधिया वंश के उत्तराधिकारी अनन्य शिवभक्त रहे। सिंधिया वंश शिवजी की आराधना के साथ-साथ अन्य सभी देवी देवताओं की भी उपासना करते थे। जयाजीराव सिंधिया कालीन स्थलों के व्यक्ति चिंतन में श्री राम तथा अन्य देवी-देवताओं से संबंधित तथा पुरुषों प्रसंगों का विवरण मिलता है जो जयाजीराव की धार्मिक अभिरुचि को भी दर्शाता है।
जयाजीराव सिंधिया के शासनकाल 1843- 1886 में जनकोजी राव की छतरी अन्य क्षत्रियों की अपेक्षा कलात्मकता की दृष्टि से अधिक उत्कृष्ट और आकर्षण का केंद्र है। संपूर्ण स्थापना मनोहर चित्रकारी से पूर्ण है यहां देखने पर प्रतीत होता है कि कृष्ण लीला कुमार राग रागिनी के फुटकर चित्र एवं व्यक्ति चित्रों के अतिरिक्त दसअवतारों का भी प्रभावशाली अंकन है। जो कि देखने वालों को बरबस अपनी तरफ खींच लेता है।
तीनों क्षत्रियों में रामायण के दर्शन
ज्योति राव सिंधिया की छतरी में भित्ति चित्र में राज में दर्शाया है। यहां माता कौशल्या भूमि पर बिछे मखमली कालीन पर बैठी हैं और श्री राम बाल रूप में घुटनों के बल सिंहासन पर बैठे दिखाई दे रहे हैं। चित्र में दृश्य प्रधान है आकृतियां लघु आकार यह हैं और चित्रण पश्चिमी शैली से प्रभावित है भित्ति चित्रों में जितने भी प्रसंग हैं वह रामचरितमानस कि कई चौपाइयों पर आधारित प्रतीत हो रहे हैं।
यहां बता दें कि तीनों छतरियां निजि संपत्ति हैं। इन पुरातत्व दर्शन स्थलों पर अभी तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग या फिर मध्यप्रदेश पुरातत्व का हस्तक्षेप नहीं है। क्षत्रियों पर अंकित अमूल्य चित्र का संरक्षण करना बेहद ही आवश्यक है, ताकि इनकी वैभवशाली और ऐतिहासिकता को नुक़सान न हो और आने वाली पीढ़ी इनको देखकर अद्भुतता का अहसास कर सके।