डॉक्टरों को तोहफे देकर दवा की बिक्री बढ़ाना गैरकानूनी, फार्मा कंपनियों को टैक्स राहत संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस यूय ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने दवा कंपनियों के डॉक्टरों को कार, सोने के सिक्के, बिजली के महंगे उपकरण, विदेश यात्राओं जैसे तोहफों देने की प्रथा पर चिंता जताई। पीठ ने कहा, यह स्पष्ट रूप से कानून द्वारा प्रतिबंधित है। इस मद किए गए खर्च को कटौती के रूप में दावा करने की अनुमति नहीं है। यह बहुत सार्वजनिक महत्व और चिंता का विषय है।
कोर्ट ने कहा, “यह दर्शाता है कि डॉक्टर के नुस्खे में हेरफेर भी किया जा सकता है। दवा कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त सुविधाएं देकर लाभ उठाती हैं और मरीजों को अपनी दवा परामर्श के तौर पर लिखवाती हैं।” इस दलील के साथ मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मेसर्स एपेक्स लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने ‘जिंकोविट’ के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए डॉक्टरों को तोहफों पर खर्च की राशि पर व्यावसायिक व्यय के लाभ के दावा के खिलाफ आयकर अधिकारियों के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था।
कंपनियां बोलीं- ये तोहफे मुफ्त नहीं होते, दवा के दाम में वसूलती हैं लागत
पीठ ने कहा, ये उपहार तकनीकी रूप से ‘मुफ्त’ नहीं हैं। कंपनियां इनकी लागत दवा के दाम में वसूलती हैं। अंत में इन तोहफों की कीमत मरीज अदा करता है। यह एक स्थायी सार्वजनिक रूप से हानिकारक चक्र है। इस तरह की दवाओं की सलाह करने का असर ‘प्रभावी जेनेरिक दवाओं’ पर पड़ता है। इस तरह के आदान-प्रदान पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर बनी संसदीय स्थायी समिति ने भी संज्ञान लिया गया था।
डॉक्टर और दवा कंपनियां एक दूसरे के पूरक
जस्टिस भट ने कहा, डॉक्टर और दवा कंपनियां चिकित्सा के पेशे में एक दूसरे के पूरक और सहायक हैं। इसलिए समकालीन वैधानिक व्यवस्थाओं और नियमों के मद्देनजर उनके आचरण को विनियमित करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, डॉक्टरों का रोगियों के साथ एक अर्ध-विश्वसनीय संबंध है। डॉक्टर के नुस्खे को रोगी अंतिम शब्द मानता है। भले ही वह उसकी लागत वहन करने में सक्षम न हो। डॉक्टरों में विश्वास का स्तर ऐसा है। इस पर ऐसी प्रथा के चलते मरीज को महंगी कीमत पर दवा खरीदने के लिए मजबूर करने का यह खेल गैरकानूनी है।