बैंक कर्मचारियों की अनियमितता को नरमी से नहीं निपटा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने यह टिप्पणी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में गंभीर अनियमितता के लिए एक बैंक क्लर्क की बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखते हुए की। पीठ ने कहा कि कर्मचारी इस बीच अपने पद से सेवानिवृत्त हो गया, केवल इसलिए उसे उस कदाचार से मुक्त नहीं जा सकता जो उसने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किया।
पीठ ने कहा कि कर्मचारी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति की गंभीरता को देखते हुए उसकी बर्खास्तगी की सजा को किसी भी तरह से चौंकाने वाला नहीं कहा जा सकता है। कर्मचारी 1973 में क्लर्क-कम-टाइपिस्ट के तौर पर बैंक सेवा में शामिल हुआ था। सेवाकाल के दौरान गंभीर अनियमितताओं के चलते उसे 7 अगस्त 1995 में निलंबित कर दिया गया।
पीठ ने कहा कि 2 मार्च 1996 में उसके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया। बैंक ने अपने नियमों के तहत अनुशासनात्मक जांच कराई जिसमें जांच अधिकारी ने आरोपों को सही पाया। उसे 6 दिसंबर 2000 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। साथ ही अपीलीय प्राधिकरण ने भी उसकी अपील खारिज कर दी। पटना हाईकोर्ट ने भी फैसले को बरकरार रखा। कर्मचारी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।